@शब्द दूत ब्यूरो (05 अक्टूबर 2025)
हल्द्वानी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष को समाज जागरण और राष्ट्रनिर्माण के संकल्प के साथ मना रहा है। इसी कड़ी में हल्द्वानी में आयोजित स्वयंसेवक एकत्रीकरण कार्यक्रम में संघ के सह सर कार्यवाह आलोक जी ने कहा कि “अब समय है स्वदेशी, परिवार प्रबोधन, समरसता, पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्र के प्रति समर्पण का।” उन्होंने कहा कि संघ 101वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है और इस अवसर पर हर घर तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब समाज में “पंच परिवर्तन” के कार्यक्रम के माध्यम से पांच प्रमुख सामाजिक व वैचारिक बदलावों पर काम करेगा। उन्होंने कहा कि इन परिवर्तनों की शुरुआत स्वयं से करनी होगी।
पंच परिवर्तन के पांच आयामों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा —
1. स्व का बोध (स्वदेशी जीवन शैली): अपनेपन, आत्मनिर्भरता और स्थानीय संसाधनों के उपयोग पर बल देकर राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से सशक्त बनाना।
2. नागरिक कर्तव्य: हर नागरिक को अपने कर्तव्यों, सामाजिक जिम्मेदारियों और कानून के पालन के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।
3. पर्यावरण संरक्षण: जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच पृथ्वी, जल, वायु और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हेतु जिम्मेदार जीवनशैली अपनाना आवश्यक है।
4. सामाजिक समरसता: समाज के सभी वर्गों के बीच भेदभाव मिटाकर सौहार्द और भाईचारे को मजबूत करना।
5. कुटुंब प्रबोधन: परिवार को संस्कारों और संवाद की पहली इकाई मानते हुए रिश्तों की गरिमा और सहयोग को बढ़ावा देना।
श्री आलोक ने कहा कि इन पांच आयामों के माध्यम से संघ सामाजिक समरसता, पर्यावरण सुरक्षा, परिवार और राष्ट्रीय कर्तव्यों को सुदृढ़ कर एक सशक्त भारत की नींव रखना चाहता है।
अपने संबोधन में उन्होंने कुमायूं के दिवंगत स्वयंसेवकों शोबन सिंह जीना, दान सिंह बिष्ट, शिव शंकर अग्रवाल और सूरज प्रकाश अग्रवाल का भी स्मरण किया।
कार्यक्रम से पहले स्वयंसेवकों ने योग प्रदर्शन किया। मंच पर डॉ. नीलांबर भट्ट, वेद प्रकाश अग्रवाल, विवेक कश्यप, प्रांत संघ चालक बहादुर सिंह बिष्ट और वरिष्ठ स्वयंसेवक 93 वर्षीय जगन्नाथ पांडेय उपस्थित रहे। कार्यक्रम की व्यवस्थाओं में सह प्रांत प्रचारक चंद्रशेखर जी, प्रांत व्यवस्था प्रमुख भगवान सहाय, सेवा भारती के धनीराम जी, नरेंद्र जी और जितेंद्र जी सहित अन्य स्वयंसेवक सक्रिय रहे।
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