@शब्द दूत ब्यूरो (21 सितंबर 2025)
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड हर साल प्राकृतिक आपदाओं की भीषण मार झेल रहा है। गर्मियों में जंगल की आग और बरसात में दरकते पहाड़ों से जान-माल का नुकसान अब आम हो गया है। शिवालिक और हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं, जिन्हें देवभूमि की धरोहर माना जाता है, कभी भी कहर बरपा सकती हैं।
उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सचेत डैशबोर्ड पर दर्ज आंकड़े इस गंभीर स्थिति को उजागर करते हैं। वर्ष 2015 से 2025 तक राज्य में 27,197 आपदाओं की घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 14,237 घटनाएं अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की थीं। इस दौरान 5,830 भूस्खलन हुए, जिनमें 3,839 लोगों की मौत, 6,207 लोग घायल और 312 लोग लापता हुए। इन आंकड़ों में 2013 की केदारनाथ आपदा शामिल नहीं है, जिसमें अकेले 4,400 से अधिक लोग मारे गए या लापता हुए थे।
वार्षिक घटनाओं पर नजर डालें तो 2015 में 224 घटनाएं हुईं जिनमें 54 लोगों की मौत हुई, जबकि 2018 सबसे भयावह वर्ष रहा जब 5,056 घटनाओं में 720 लोगों की जान गई। 2023 में आपदाओं का आंकड़ा 4,990 तक पहुंच गया जिसमें 497 मौतें हुईं। मौजूदा साल 2025 में अब तक (20 सितंबर तक) 2,199 घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें 1,034 भूस्खलन शामिल हैं। इस वर्ष अब तक 260 लोगों की मौत, 566 लोग घायल और 96 लोग लापता हो चुके हैं।
इन आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित जिले पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, टिहरी, पौड़ी और चंपावत हैं। वहीं इस बार देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और उधम सिंह नगर भी बुरी तरह प्रभावित हुए, जहां दर्जनों लोगों की मौत हुई और मकान, दुकानें व होटल बरसाती नदियों के तेज बहाव में बह गए।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वीकार किया कि प्राकृतिक आपदाएं राज्य के लिए हर साल बड़ी चुनौती हैं। उन्होंने कहा, “ये ऐसी आपदाएं हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना कठिन है। कभी जंगल की आग तो कभी बादल फटना, कभी बिना चेतावनी के पहाड़ दरक जाना, ऐसी परिस्थितियां हमारे सामने खड़ी हो जाती हैं। बावजूद इसके सरकार लगातार प्रभावितों की मदद कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार संपर्क में रहकर हमारा हौसला बढ़ा रहे हैं।”
उत्तराखंड की इस सच्चाई ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि देवभूमि सिर्फ आध्यात्मिक केंद्र ही नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रकोप के खिलाफ हर पल संघर्षरत भूमि भी है।
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