संकलनकर्ता विनोद भगत
काशीपुर की स्थापना की सही तिथि विवादित है और कई इतिहासकारों ने इस बिन्दु पर भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किए हैं। बिशप हीबर ने सर्वप्रथम अपनी पुस्तक, ट्रेवल्स इन इंडिया में लिखा कि काशीपुर की स्थापना ५००० साल पहले (लगभग ३१७६ ईसा पूर्व में) काशी नामक देवता ने की थी। सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने अपनी पुस्तक, द अन्सिएंट जियोग्राफी ऑफ़ इंडिया में हीबर के विचारों को सिरे से नकारते हुए लिखा “बिशप को अपने मुखबिर से धोखेबाज़ी मिली, क्योंकि यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि यह नगर आधुनिक है। इसे चम्पावत के राजा देवी-चन्द्र के अनुयायी काशीनाथ द्वारा १७१८ ई में बनाया गया है”।बद्री दत्त पाण्डेय ने अपनी पुस्तक “कुमाऊँ का इतिहास” में कनिंघम के विचारों का विरोध करते हुए दावा किया है कि नगर १६३९ में ही स्थापित हो चुका था।नगर में प्राप्त सिक्कों और अन्य अवशेषों से पता चलता है कि यह क्षेत्र दूसरी शताब्दी के आसपास कुणिंद राजवंश के अधीन था।

कान्ति प्रसाद नौटियाल ने अपनी पुस्तक, “आर्केलॉजी ऑफ़ कुमाऊँ” में गोविषाण का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “कुमाऊँ क्षेत्र में ढिकुली, जोशीमठ तथा बाड़ाहाट के साथ-साथ गोविषाण भी कुणिंद राज्य के प्रमुख नगरों में से एक रहा होगा।” कुछ वर्ष पश्चात गुप्त राजवंश का शासन स्थापित होने से पहले इस क्षेत्र पर कुषाणों, कुणिंद और यादवों (यौद्धेय) द्वारा आक्रमण का भी उल्लेख है।गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद राजा हर्ष (६०६-६४१ ईसवी) ने गोविषाण को अपना सामन्ती राज्य बना लिया। उस समय के कई खंडहर अभी भी शहर के पास विद्यमान हैं। माना जाता है कि काशीपुर कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केन्द्र था।प्राचीन नगर गोविषाण के अवशेषहर्ष काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहाँ आया था। ह्वेनसांग के अनुसार “मादीपुर से ६६ मील की दूरी पर गोविषाण नामक स्थान था जिसकी ऊँची भूमि पर ढाई मील का एक गोलाकार स्थान था। यहां उद्यान, सरोवर एवं मछली कुंड थे। इनके बीच ही दो मठ थे, जिनमें सौ बौद्ध धर्मानुयायी रहते थे। यहाँ ३० से अधिक हिन्दू धर्म के मंदिर थे। नगर के बाहर एक बड़े मठ में २०० फुट ऊँचा अशोक का स्तूप था। इसके अलावा दो छोटे-छोटे स्तूप थे, जिनमें भगवान बुद्ध के नख एवं बाल रखे गए थे। इन मठों में भगवान बुद्ध ने लोगों को धर्म उपदेश दिए थे। १८६८ में भारत के तत्कालीन पुरातत्व सर्वेक्षक सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इन वस्तुओं की खोज हेतु इस स्थान का दौरा किया किन्तु इन मठों में उन्हें ये वस्तुएँ, खासकर भगवान बुद्ध के नख एवं बाल नहीं मिले।

अपनी रिपोर्ट में कनिंघम ने गोविषाण को किसी प्राचीन राज्य की राजधानी बताया, जिसकी सीमाओं का विस्तार वर्तमान उधमसिंहनगर, रामपुर तथा पीलीभीत जनपदों तक था।आठवीं शताब्दी आते आते यह नगर कत्यूरी राजवंश के अधीन आ गया, जिनकी राजधानी कार्तिकेयपुरा में थी। ग्यारहवीं शताब्दी में कत्यूरी राजवंश के विघटन के बाद यह क्षेत्र पहले स्थानीय सरदारों के और फिर दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन आ गया। तेरहवीं शताब्दी में कुमाऊँ के शासक गरुड़ ज्ञान चन्द (१३७४–१४१९) ने दिल्ली के सुल्तान से भाभर तथा तराई क्षेत्रों को उपहार स्वरूप पाकर उन पर अधिकार स्थापित किया।
रुद्र चन्द (१५६८–१५९७) के शासनकाल में काठ तथा गोला के नवाब ने तराई क्षेत्रों पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु रुद्र चन्द ने उनके आक्रमण को निष्फल कर दिया। इसके बाद तराई क्षेत्रों को परगना का दर्जा देकर यहां एक अधिकारी की नियुक्ति की गई, और उसके निवास के लिए रुद्र चन्द ने रुद्रपुर नगर की स्थापना करी। रुद्र चन्द के बाद बाज बहादुर चन्द (१६३८–१६७८) ने रुद्रपुर के पश्चिम में बाजपुर नगर की स्थापना कर तराई के मुख्यालय वहां स्थानांतरित करने का एक विफल प्रयास किया।
देवी चन्द (१७२०–१७२६) के शासनकाल में तराई के लाट काशीनाथ अधिकारी ने अपने निवास के लिए काशीपुर में महल का निर्माण करवाया, तथा तराई का मुख्यालय रुद्रपुर से यहां स्थानांतरित कर दिया।काशीपुर में अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक चन्द राजवंश का शासन रहा। १७७७ में काशीपुर के अधिकारी, नन्द राम ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया और काशीपुर राज्य की स्थापना की। इसके २४ वर्ष बाद १८०१ में काशीपुर के तत्कालीन शासक, शिव लाल ने यह राज्य अंग्रेजों को सौंप दिया था, जिसके बाद काशीपुर ब्रिटिश भारत में एक राजस्व मण्डल बन गया।

इसी समय में काशीपुर राज्य के राजकवि गुमानी पन्त ने इस नगर की विशेषताओं पर एक कविता भी लिखी थी, जिसमें उन्होंने नगर में बहती ढेला नदी, और मोटेश्वर महादेव मन्दिर का वर्णन किया है। १८१४ में आंग्ल गोरखा युद्ध छिड़ने पर ब्रिटिश सेना ने काशीपुर में पड़ाव डाला था, और कुमाऊँ क्षेत्र के अपने सभी अभियानों के लिए इस नगर का प्रयोग आधार पड़ाव के रूप में किया था। १० जुलाई १८३७ को काशीपुर को मुरादाबाद जनपद में शामिल किया गया और फिर १९४४ में बाजपुर, काशीपुर तथा जसपुर नगरों को काशीपुर नामक एक परगना में पुनर्गठित किया गया। काशीपुर को बाद में संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के तराई जनपद का मुख्यालय बनाया गया।१८९१ में नैनीताल तहसील को कुमाऊँ जनपद से स्थानांतरित कर तराई के साथ मिला दिया गया, और फिर इसके मुख्यालय को काशीपुर से नैनीताल में लाया गया था।
१८९१ में ही कुमाऊँ और तराई जनपदों का नाम उनके मुख्यालयों के नाम पर क्रमशः अल्मोड़ा तथा नैनीताल रख दिया गया, और काशीपुर नैनीताल जनपद में एक तहसील तथा परगना भर रह गया। २० वीं सदी के प्रारम्भ में काशीपुर नगर रेल नेटवर्क से भी जुड़ गया था। रेल निर्माण के बाद नगर के विकास में तेजी आयी, और काशीपुर तथा रामनगर कुमाऊँ के प्रमुख व्यापारिक केंद्र बनकर उभरे। १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के बाद काशीपुर और नैनीताल जनपद के अन्य भाग संयुक्त प्रांत का हिस्सा बनें रहे, जिसका नाम बाद में उत्तर प्रदेश राज्य हो गया था।

३० सितंबर १९९५ को नैनीताल जनपद के तराई क्षेत्र की चार तहसीलों (किच्छा, काशीपुर, सितारगंज तथा खटीमा) को मिलाकर उधम सिंह नगर जनपद का गठन किया गया, और इसका मुख्यालय रुद्रपुर को बनाया गया। ९ नवंबर २००० को भारत की संसद द्वारा उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २००० को पारित किया गया, जिसके बाद काशीपुर नवनिर्मित उत्तराखण्ड राज्य का भाग बन गया, जो भारत गणराज्य का २७वां राज्य था। उत्तराखण्ड राज्य के गठन के बाद दीक्षित आयोग की एक रिपोर्ट में नगर को भूगोल तथा जलवायु, जल उपलब्धता, भूमि की उपलब्धता, प्राकृतिक जल निकासी और निवेश इत्यादि मापदंडों के आधार पर राज्य की राजधानी के लिए दूसरा सबसे उपयुक्त स्थान पाया था।
२७ जनवरी २०१३ को उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री, विजय बहुगुणा ने रुड़की और रुद्रपुर के साथ-साथ काशीपुर को भी नगर निगम बनाने की घोषणा की,और २८ फरवरी २०१३ को आधिकारिक अधिसूचना जारी होने के बाद काशीपुर नगर पालिका का उच्चीकरण करके इसे नगर निगम का दर्जा दिया।

काशीपुर नगर में ऐतिहासिक व धार्मिक महत्त्व के कई महत्वपूर्ण स्थल हैं। एक ओर उज्जैन किला जहाँ नगर के समृद्ध अतीत को दर्शाता है, तो वहीं दूसरी ओर नगर में स्थित महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा मां बालासुन्दरी के मन्दिर नगर पर हिन्दू संस्कृति की अभिन्न छाप का चित्रण करते हैं। द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के अन्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं।
गोविषाण के पुराने किले को उज्जैन कहा जाता है। उज्जैन किले की दीवारें ६० फुट ऊँची हैं, और इसमें प्रयोग हुई ईंटें १५x१०x२.५ इंच की हैं। इस किले में उज्जैनी देवी की मूर्ति स्थापित है। इस किले के पास ही मोटेश्वर महादेव का मन्दिर है, जिसे शिव के बारह उप-ज्यार्तिलिंगों में से एक माना जाता है।
भीम द्वारा स्थापित किया गया मोटेश्वर मंदिर मान्यतानुसार इस मन्दिर की स्थापना द्वापर युग में भीम ने गुरु द्रोणाचार्य व अपने परिवार के पूजा-अर्चना के लिए कराई थी।तभी से इस ऐतिहासिक मन्दिर में पूजा-अर्चना व जलाभिषेक होता आ रहा है। मन्दिर के समीप ही द्रोण सागर है, जिसे पाण्डवों ने गुरू द्रोणाचार्य को गुरूदक्षिणा के रूप में देने के लिये बनाया था।यह ६०० वर्ग फुट का है, और इसके किनारे कई देवी-देवताओं के मन्दिर हैं। द्रोणसागर को अब भारतीय पुरातत्व विभाग का संरक्षण प्राप्त है।

माता बालासुन्दरी का मन्दिर, जिसे चैती देवी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है, काशीपुर का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के चारों ओर १५ अन्य पूजनीय स्थल भी हैं। इसी मन्दिर के पास नवरात्रियों में चैती मेला लगता है। इस मन्दिर का शिल्प मस्जिद के समान है, जिससे प्रतीत होता है कि इसे संभवतः मुगल साम्राज्य के समय में बनाया गया होगा। नगर में जागेश्वर महादेव का एक मन्दिर भी है, जो २० फुट ऊँचा है। नगर के उत्तर में तुमरिया बाँध स्थित है। १९६१ में बना यह बाँध १० किलोमीटर लम्बा है।
काशीपुर-रामनगर मार्ग पर नगर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर गिरिताल नमक एक तालाब स्थित है। काशीपुर क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस ताल के एक सिरे पर पर्यटक आवास गृह का निर्माण करवाया गया था, और कुछ वर्ष पहले तक स्थानीय लोग इस ताल में नौका विहार करते देखे जा सकते थे। तालाब के चारों ओर मंदिरों की शृंखला है, जिनमें से एक मां महिषासुर मर्दिनी देवी का मन्दिर भी है। मन्दिर परिसर में भगवान शंकर, लक्ष्मी-नारायण, सत्यनारायण, राधा-कृष्ण, सीता-राम, हनुमान, गायत्री, और सरस्वती की, जबकि मुख्य द्वार पर शनि व ब्रह्मदेव की प्रतिमाऐं स्थापित है। मान्यता है कि पांडव काल में यहां पर ऋषि-मुनियों के मठ हुआ करते थे, जहां वे देवी की आराधना करते थे।
इनके अतिरिक्त भी काशीपुर में कई प्रसिद्ध मन्दिर हैं, जिनमें चैती स्थित खोखराताल देवी मन्दिर, मोहल्ला लोहरियान स्थित माँ मनसा देवी मन्दिर, माँ गायत्री देवी मन्दिर, पक्काकोट स्थित मां काली देवी मन्दिर, सिंघान स्थित श्री दुर्गा मन्दिर, मुखर्जीनगर स्थित शीतला माता मन्दिर, गिरीताल स्थित मां चामुंडा देवी मन्दिर, पुष्पक विहार स्थित श्री सीताराम एवं माँ चामुंडा देवी मन्दिर व सुभाष नगर स्थित काली माता मन्दिर प्रमुख हैं।
काशीपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद में स्थित एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार इस नगर की कुल जनसंख्या १,२१,६२३ है, जबकि काशीपुर तहसील की कुल जनसंख्या २,८३,१३६ है। इस प्रकार, जनसंख्या की दृष्टि से काशीपुर कुमाऊँ में तीसरा और उत्तराखण्ड में छठा सबसे बड़ा नगर है। उधम सिंह नगर जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित यह नगर भारत की राजधानी, नई दिल्ली से लगभग २४० किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में, और उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी, देहरादून से लगभग २०० किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
काशीपुर को पुराने समय में गोविषाण या उज्जयनी नगरी भी कहा जाता था, और हर्ष के शासनकाल (७ वीं शताब्दी) से पहले यह नगर कुणिंद, कुषाण, यादव, और गुप्त समेत कई राजवंशों के अधीन रहा। इस जगह का नाम काशीपुर, चन्दवंशीय राजा देवी चन्द के एक पदाधिकारी काशीनाथ अधिकारी के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे १६-१७ वीं शताब्दी में दोबारा नए सिरे से बसाया था। १८ वीं शताब्दी तक यह नगर कुमाऊँ राज्य में रहा, और फिर यह नन्द राम द्वारा स्थापित काशीपुर राज्य की राजधानी बन गया। १८०१ में यह नगर ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, जिसके बाद १८१४ के आंग्ल-गोरखा युद्ध में कुमाऊँ पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार स्थापित करने में इस नगर द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी गयी थी। १९ वीं शताब्दी के मध्य में काशीपुर को कुमाऊँ मण्डल के तराई जिले का मुख्यालय बना दिया गया।
ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र की अर्थव्यस्था कृषि तथा बहुत छोटे पैमाने पर लघु औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित रही है। काशीपुर को कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केन्द्र भी माना जाता है। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व काशीपुर नगर में जापान से मखमल, चीन से रेशम व इंग्लैंड के मैनचेस्टर से सूती कपड़े आते थे, जिनका तिब्बत व पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापार होता था। बाद में प्रशासनिक प्रोत्साहन और समर्थन के साथ काशीपुर शहर के आसपास तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। वर्तमान में नगर के एस्कॉर्ट्स फार्म क्षेत्र में छोटी और मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए एक एकीकृत औद्योगिक स्थल (इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट) निर्माणाधीन है।

वैदिक काल में काशीपुर नगर का नाम उज्जैनी (उज्जयनी / उज्जयनी नगरी) तथा यहां से बहने वाली ढेला नदी का नाम स्वर्णभद्रा था। हर्ष काल में इसे गोविषाण कहा जाने लगा। गोविषाण शब्द दो शब्दों “गो” (गाय) और “विषाण” (सींग) से बना है, और इसका अर्थ “गाय की सींग” है। प्राचीन समय में गोविषाण को तत्कालीन समय की राजधानी व समृद्ध नगर कहा गया है। वर्तमान काशीपुर नगर की स्थापना काशीनाथ अधिकारी ने की थी, जो चम्पावत के राजा देवी चन्द के अंतर्गत तराई क्षेत्र के लाट (अधिकारी) थे। उनके नाम पर ही इसे काशीपुर कहा जाने लगा।
भौगोलिक रूप से काशीपुर कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में स्थित है, जो पश्चिम में जसपुर तक तथा पूर्व में खटीमा तक फैला है। कोशी और रामगंगा नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित काशीपुर ढेला नदी के तट पर बसा हुआ है। १८७२ में काशीपुर नगरपालिका की स्थापना हुई, और २०११ में इसे उच्चीकृत कर नगर निगम का दर्जा दिया गया। यह नगर अपने वार्षिक चैती मेले के लिए प्रसिद्ध है। महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा माँ बालासुन्दरी के मन्दिर, उज्जैन किला, द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं।