@शब्द दूत ब्यूरो (01 सितंबर 2025)
काशीपुर। शहर में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दिन-ब-दिन चिंताजनक होती जा रही है। शहर में एक के बाद एक अस्पताल और नर्सिंग होम धड़ल्ले से खुल रहे हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश न तो स्वास्थ्य मानकों पर खरे उतरते हैं और न ही इनके पास पर्याप्त चिकित्सक उपलब्ध हैं। हालात यह हैं कि बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर अस्पताल तो खोल दिए गए, लेकिन जिन डॉक्टरों के नाम वहाँ प्रदर्शित किए गए हैं, वे अस्पताल में मौजूद ही नहीं रहते।
स्थानीय लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी तब तक इंतजार करते हैं जब तक किसी मरीज के साथ कोई अनहोनी न हो जाए। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है। सवाल यह है कि आखिर विभाग ऐसे अस्पतालों की मनमानी और मरीजों की जिंदगी से हो रहे खिलवाड़ पर आंखें मूंदे क्यों बैठा है।
मरीजों और उनके परिजनों का आरोप है कि इन अस्पतालों में इलाज के नाम पर खुलेआम लूट हो रही है। बिना जरूरत के महंगे टेस्ट लिखे जाते हैं, दवाइयां मनमानी कीमत पर बेची जाती हैं और फीस वसूली में भी कोई पारदर्शिता नहीं है। कई बार तो इलाज में लापरवाही के चलते मरीज असमय मौत का शिकार हो जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद न तो इन अस्पतालों पर कोई ठोस कार्रवाई होती है और न ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई देखने को मिलती है। हालांकि सभी अस्पतालों को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता कुछ ऐसे भी अस्पताल और नर्सिंग होम हैं जो मानवता को जिंदा रखे हुए हैं।
जनता में आक्रोश इस बात को लेकर भी है कि जब सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव है, तो लोग मजबूरी में निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। लेकिन यहाँ भी उन्हें भरोसेमंद इलाज की जगह शोषण और असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। शहरवासियों का कहना है कि यदि स्वास्थ्य विभाग ने जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले दिनों में हालात और गंभीर हो सकते हैं।
फिलहाल, सवाल जस का तस बना हुआ है—आखिर काशीपुर में इलाज के नाम पर चल रहे इस ‘धंधे’ पर कब लगाम लगेगी और जनता को सही मायनों में स्वास्थ्य सेवाएं कब मिलेंगी?
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