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उत्तराखंड में मदरसा व्यवस्था पर धामी सरकार का बड़ा फैसला, बनेगा अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण

@शब्द दूत ब्यूरो (17 अगस्त 2025)

देहरादून। पुष्कर सिंह धामी सरकार ने देवभूमि उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त कर मुख्यधारा की शिक्षा व्यवस्था से जोड़ने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत कैबिनेट ने उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (USAME) के गठन को मंजूरी दी है। माना जा रहा है कि आगामी वर्षों में मदरसा शिक्षा व्यवस्था की जगह राज्य की सामान्य शिक्षा व्यवस्था ले लेगी।

राज्य में वर्तमान में 452 पंजीकृत मदरसे संचालित हैं, जबकि 500 से अधिक मदरसे बिना मान्यता के चल रहे थे। सरकार ने इनमें से 237 मदरसों पर ताला जड़ दिया है। इससे पहले अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने मदरसों में छात्रवृत्ति और मिड डे मील योजनाओं में भारी अनियमितताओं का खुलासा भी किया था। इसी परिप्रेक्ष्य में धामी सरकार ने मदरसों को सीधे अपने अधीन लाने का फैसला लिया है।

उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025 के तहत गठित होने वाला प्राधिकरण अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देने, शैक्षिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और उनसे जुड़े मामलों का प्रबंधन करेगा। इसमें एक अध्यक्ष और 11 सदस्य होंगे, जिन्हें सरकार नामित करेगी। अध्यक्ष अल्पसंख्यक समुदाय का अनुभवी शिक्षाविद होगा।

विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, 1 जुलाई 2026 से उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और अरबी-फारसी मदरसा मान्यता विनियमावली, 2019 निरस्त मानी जाएंगी। इसके बाद मदरसों को 2026-27 शैक्षणिक सत्र से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के लिए प्राधिकरण से पुनः मान्यता लेनी होगी। साथ ही, अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को पंजीकृत निकाय द्वारा संचालित होना अनिवार्य होगा और इनमें गैर-अल्पसंख्यक छात्रों की संख्या 15% से अधिक नहीं हो सकेगी।

नई व्यवस्था के तहत सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, मुस्लिम और पारसी सभी अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देने का प्रावधान होगा। अब तक केवल मुस्लिम समुदाय के धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता मिलती थी। इसके साथ ही अल्पसंख्यक बच्चों को उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद के माध्यम से मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने की कवायद भी शुरू की गई है।

यह फैसला राज्य में शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और गुणवत्ता लाने के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

 

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