@विनोद भगत
शहर की सुबह कुछ अलग थी। आज न तो गाड़ियों का शोर सबसे पहले सुनाई दिया, न ही मोहल्ले की अम्मा का ‘दूध वाला आया?’ वाला स्वर। बल्कि हर गली-मोहल्ले से एक ही आवाज़ गूंज रही थी –
“हम आवारा नहीं हैं… हमें आवारा बनाया गया है!”
जी हां, यह आवाज़ इंसानों की नहीं, बल्कि कुत्तों, बिल्लियों, गायों, गधों और यहां तक कि कौवों तक की थी। सबके चेहरे पर रोष और आंखों में आत्मसम्मान की आंच थी। स्थानीय पार्क में एक आपात ‘पशु पंचायत’ बुलाई गई थी, जिसमें मुख्य एजेंडा था – ‘अस्मिता पर हमला’।
कुत्ता भाई, जो इस आंदोलन के प्रवक्ता बने, ने माइक (यानी एक पुराना टूटा माइक, जिसे किसी शादी में छोड़ा गया था) संभालते हुए कहा –
“दोस्तों! हमें आवारा कहना हमारे अस्तित्व पर सीधा प्रहार है। क्या हम जन्म से सड़कों पर पैदा होते हैं? नहीं! हमें किसी ने पालने से इंकार किया, किसी ने छोड़ दिया, किसी ने घर से निकाला। असली आवारा तो वो इंसान हैं जो जिम्मेदारी से भागते हैं। कार्रवाई तो उन पर होनी चाहिए।”
बिल्ली बहन ने तुरंत समर्थन में अपनी ‘म्याऊं’ ठोंकी और कहा –
“जब मोहल्ले में कोई बच्चा अपने माता-पिता को छोड़ दे, तो उसे ‘आवारा बेटा’ नहीं कहते, बल्कि ‘नालायक’ कहते हैं। लेकिन हमें सीधे आवारा घोषित कर दिया जाता है, वो भी बिना सुनवाई के। यह कहां का न्याय है?”
गाय माता ने शांत किंतु ठोस स्वर में कहा –
“इंसान हमें दूध निकालने तक पालता है, फिर बूढ़ा होते ही सड़क पर छोड़ देता है। और फिर हमें ही आवारा कहता है। यह तो वही बात हुई – खुद गड्ढा खोदना और फिर उसमें हमें धकेल देना।”
सभा में मौजूद गधा जी ने व्यंग्य करते हुए कहा –
“हम तो सोच रहे हैं कि इंसानों के लिए ‘आवारा शब्द सम्मान समारोह’ रखा जाए, क्योंकि असली आवारागर्दी का पेटेंट उन्हीं के पास है। बिना प्लानिंग शहर बढ़ाना, कचरा सड़कों पर फेंकना, पालतू को फैशन के हिसाब से रखना और फिर छोड़ देना – यह सब कोई हमसे सीखे?”
सभा का नारा था –
“आवारा कहकर अपमान बंद करो, जिम्मेदार इंसानों को कटघरे में लाओ!”
इस आंदोलन की ख़ास बात यह थी कि यहां कोई जात-पात, नस्ल या प्रजाति का भेदभाव नहीं था। कुत्ता, बिल्ली, गाय, गधा, सभी एकजुट थे। यहां तक कि मोहल्ले का तोता भी पेड़ की डाली पर बैठकर नारे लगा रहा था – “असली आवारा – इंसान!”
अंत में पशु पंचायत ने यह प्रस्ताव पारित किया कि जब तक इंसान अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, तब तक ‘आवारा’ शब्द का इस्तेमाल उनके लिए ही किया जाएगा। और जानवर गर्व से कहेंगे – “हम तो बस इंसानों की गलती के शिकार हैं।”
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