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काशीपुर : कूड़ा बीनने वाले बच्चों की “कचरे से कला” कलात्मक प्रतिभा हो रही उजागर, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी गीता धामी करेंगी कला प्रदर्शनी का अवलोकन

@शब्द दूत ब्यूरो (07 अगस्त 2025)

काशीपुर। कूड़ा बीनने वाले और दिव्यांग बच्चों की ज़िंदगी में आया बदलाव अब एक नई मिसाल बनता जा रहा है। कभी जो बच्चे कबाड़ में जिंदगी तलाशते थे, आज वही बच्चे बेकार समझी जाने वाली वस्तुओं से रोजमर्रा की उपयोगी और कलात्मक चीजें बनाकर समाज के सामने अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं। यूएसआर इंदु समिति द्वारा संचालित इस प्रशिक्षण अभियान ने न केवल इन बच्चों का आत्मविश्वास लौटाया है, बल्कि उन्हें एक नई पहचान भी दी है – एक कलाकार की।

इस प्रेरक कार्य को प्रदेश स्तर पर पहुंचाने के लिए डी बाली ग्रुप की डायरेक्टर और समाजसेवी श्रीमती उर्वशी दत्त बाली ने मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी की धर्मपत्नी श्रीमती गीता पुष्कर धामी को देहरादून स्थित उनके आवास पर इन बच्चों द्वारा निर्मित कलात्मक वस्तुएं दिखाईं। इन कलाकृतियों को देखकर श्रीमती धामी न केवल अभिभूत हुईं बल्कि भावुक भी हो गईं। उन्होंने स्वयं काशीपुर आकर इन बच्चों से मिलने की इच्छा जताई और उर्वशी दत्त बाली के आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया।

श्रीमती बाली वर्षों से गरीब, असहाय और दिव्यांग बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत रही हैं। वह इन बच्चों को मंच देने, उनके बनाए उत्पादों की प्रदर्शनी आयोजित करने और जनमानस को उनके हुनर से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनका मानना है कि समाज को ऐसे बच्चों को केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि अवसर देने की जरूरत है।

यूएसआर इंदु समिति के संदीप और आयुषी नागर के मार्गदर्शन में इन बच्चों ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि सही प्रशिक्षण, सहयोग और अवसर मिले, तो कोई भी बच्चा समाज के लिए बोझ नहीं, बल्कि उसकी शक्ति बन सकता है। बच्चों की मेहनत और आत्मविश्वास ने इस परियोजना को एक क्रांतिकारी सामाजिक पहल का रूप दे दिया है।

श्रीमती बाली कहती हैं, “‘कचरे से कला’ की यह यात्रा सिर्फ पुनर्चक्रण की नहीं, बल्कि पुनर्जीवन की है। इन बच्चों ने यह दिखा दिया कि प्रतिभा किसी परिस्थिति की मोहताज नहीं होती।”

श्रीमती गीता धामी की प्रस्तावित यात्रा न केवल इन बच्चों के हौसले को नई उड़ान देगी, बल्कि पूरे प्रदेश को यह संदेश भी देगी कि बदलाव संभव है – यदि समाज हाथ थामने को तैयार हो। यह पहल आज सिर्फ एक प्रशिक्षण केंद्र की कहानी नहीं रही, यह एक समाज की चेतना और करुणा की पहचान बन चुकी है।

 

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