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पंचायत चुनाव नतीजे: कांग्रेस के लिए संतोषजनक, लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए संकेत मानना जल्दबाजी

@विनोद भगत

उत्तराखंड में हाल ही में संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। इन नतीजों ने जहां एक ओर कांग्रेस खेमे में हल्की सी उम्मीद की किरण जगाई है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए यह परिणाम विशेष उत्साहजनक नहीं कहे जा सकते। हालांकि यह कहना कि कांग्रेस ने प्रदेश में वापसी की ओर कदम बढ़ा लिया है, शायद जल्दबाज़ी होगी।

दरअसल, पंचायत चुनावों की अपनी एक विशिष्ट प्रकृति होती है। इन चुनावों में दलों की भूमिका परोक्ष होती है और चुनाव चिन्ह भी पार्टी आधारित नहीं होते। ऐसे में प्रत्याशी अपने व्यक्तिगत प्रभाव, सामाजिक संबंध, स्थानीय मुद्दों और विकास कार्यों के आधार पर जनता से समर्थन हासिल करते हैं।

पंचायत चुनावों में यह सर्वविदित है कि मतदाता प्रत्याशी की छवि, उनके व्यवहार और उनके द्वारा किए गए कार्यों को आधार बनाकर वोट करता है। इस चुनाव में “कौन किस पार्टी से है” यह अक्सर मतदाता के लिए गौण बन जाता है। यही कारण है कि जिन उम्मीदवारों को कांग्रेस समर्थक माना जा रहा है, उनकी जीत को कांग्रेस की जीत के रूप में आंकना भ्रामक हो सकता है।

भले ही यह चुनाव पूरी तरह से पार्टी आधारित न हो, फिर भी भाजपा के लिए यह एक संकेत जरूर है कि उसकी जमीनी पकड़ कुछ क्षेत्रों में कमजोर हो रही है। सरकार की नीतियों, स्थानीय नेताओं की कार्यशैली और आमजन के मुद्दों को लेकर जो असंतोष सामने आया है, उस पर ध्यान देना जरूरी होगा।

कांग्रेस इन परिणामों से संतुष्ट दिख रही है और उन्हें एक सकारात्मक संकेत के रूप में ले रही है। लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि यह जीत “कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों” की है, न कि सीधे कांग्रेस की। इसका मतलब यह हुआ कि प्रत्याशियों ने अपने दम पर चुनाव लड़ा और जीता, न कि कांग्रेस की सांगठनिक शक्ति या नीति-प्रभाव के बल पर।

विधानसभा चुनाव अभी दो वर्ष दूर हैं। इतने लंबे समय में राजनीतिक समीकरण कई बार बदल सकते हैं। इन पंचायत नतीजों को आधार बनाकर अगर कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव की जीत की भविष्यवाणी करने लगे, तो यह एक रणनीतिक भूल हो सकती है। पार्टी को चाहिए कि वह इन परिणामों को एक अवसर के रूप में देखे, और संगठनात्मक स्तर पर अपनी कमज़ोरियों को दूर करने की दिशा में कार्य करे।

वास्तव में आगामी नगर निकाय चुनाव ही वह चुनाव होंगे जो आगामी विधानसभा चुनाव की हवा का कुछ अंदाज़ा देंगे। वहां प्रत्याशी पार्टी चिन्ह पर लड़ते हैं और नगरों-कस्बों में मतदाता की सोच में दलगत आधार पर मतदान का रुझान अपेक्षाकृत अधिक होता है। ऐसे में कांग्रेस को चाहिए कि वह पंचायत चुनाव में मिली सफलता को आत्ममंथन और संगठनात्मक मजबूती के अवसर में बदले, न कि आगामी बड़ी जीत का मुगालता पाल ले।

उत्तराखंड पंचायत चुनावों में कांग्रेस को मिली सफलता उत्साहवर्धक है, लेकिन इसे आगामी विधानसभा चुनाव का संकेत मान लेना नासमझी होगी। भाजपा को भी इन नतीजों से सीख लेते हुए ज़मीनी कार्यकर्ता और जनसरोकारों की ओर अधिक ध्यान देना होगा। कुल मिलाकर, यह चुनाव प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों के लिए आत्मचिंतन और कार्ययोजना बनाने का एक अवसर है — न कि किसी भ्रम का आधार।

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