नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चार साल बाद वैसे बैंक डिफाल्टरों के विवरण जारी कर दिए हैं, जिसने जानबूझकर बैंकों का लोन नहीं लौटाया है। इनमें से कुछ तो देश छोड़कर फरार हो चुके हैं। रिज़र्व बैंक ने ‘द वायर’ को सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में 30 बड़े बैंक डिफॉल्टरों के विवरण दिए हैं। मई 2019 में दाखिल आरटीआई आवेदन के जवाब में रिजर्व बैंक ने 30 अप्रैल 2019 तक 30 बड़े डिफाल्टरों के विवरण दिए हैं। इन 30 कंपनियों के पास कुल 50,000 करोड़ रूपये से ज्यादा का बकाया है। इनमें हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी और नीरव मोदी की कंपनियों के भी नाम हैं।
सिबिल डेटा के मुताबिक दिसंबर 2018 तक 11,000 कंपनियों के पास कुल 1.61 लाख करोड़ से ज्यादा की रकम का बकाया है। रिज़र्व बैंक द्वारा जारी विलफुल डिफॉल्टर का डेटा केंद्रीयकृत बैंकिंग प्रणाली डेटाबेस से आता है जिसे सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इन्फॉरमेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स कहा जाता है। यह पांच करोड़ से ऊपर की उधारी देने वाले सभी उधारकर्ताओं की क्रेडिट जानकारी का एक केंद्रीयकृत पुल है।
रिजर्व बैंक ने 30 डिफाल्टर कंपनियों की लिस्ट और उनपर कुल बकाया राशि का विवरण दिया है लेकिन यह नहीं बताया है कि कितनी राशि बैड लोन है। RBI लिस्ट के मुताबिक गीतांजलि जेम्स 5044 करोड़ की रकम के साथ सबसे ऊपर है, जबकि डायमंड पॉवर इन्फ्रास्ट्रक्चर 869 करोड़ रुपये के साथ सबसे आखिरी पायदान पर है। गीतांजलि जेम्स के अलावा लिस्ट में रोटोमैक ग्लोबल, जूम डेवलपर्स, डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग्स, विनसम डायमंड्स, आरईआई एग्रो, सिद्धि विनायक लॉजिस्टिक्स और कुडोस केमी के भी नाम शामिल हैं। इन सभी कंपनियों या उनके प्रवर्तकों पर पिछले पांच वर्षों में सीबीआई या ईडी ने भी नकेल कसी है।
विलफुल डिफॉल्टर लिस्ट में अन्य कई कंपनियों के नाम भी शामिल हैं। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इनके प्रमोटरों की ओर से भी कोई गलत काम किया गया है या नहीं। ऐसी कंपनियों में एबीजी शिपयार्ड, रूचि सोया इंडस्ट्रीज, हनुंग टॉयज एंड टेक्सटाइल्स, एस कुमार्स नेशनवाइड और केएस ओल्स लिमिटेड शामिल है। बता दें कि दिसंबर 2017 में आईडीबीआई बैंक ने रूचि सोया इंडस्ट्रीज को विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया था। इनमें से कुछ कंपनियां कथित रूप से उस सूची का हिस्सा हैं जो आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को दी थीं। राजन ने कथित तौर पर जांच एजेंसियों द्वारा बैंक फ्रॉड के मामले में त्वरित कार्रवाई कराने के मकसद से एक सूची पीएमओ में दी थी।