@शब्द दूत ब्यूरो (22 जुलाई 2025)
नदियों में सिल्ट (गाद) की अत्यधिक मात्रा आने से पनबिजली उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सिल्ट की अधिकता से टरबाइन में रगड़ उत्पन्न होती है, जिससे उपकरणों के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण है कि सुरक्षा की दृष्टि से कई जलविद्युत परियोजनाएं आंशिक या पूर्ण रूप से बंद करनी पड़ी हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, सामान्य स्थिति में नदियों से आने वाली सिल्ट की मात्रा नियंत्रित स्तर पर होती है, लेकिन भारी बारिश और भूस्खलन के चलते अचानक इसकी मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। इससे जलाशयों और टरबाइनों में सिल्ट जम जाती है, जिससे टरबाइनों की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है और उपकरणों की उम्र भी कम हो जाती है। टिहरी, कोटेश्वर, धौलीगंगा और पातालगंगा जैसी परियोजनाएं इस समस्या से जूझ रही हैं।
सिल्ट की समस्या से निपटने के लिए परियोजना संचालकों को नियमित अंतराल पर सिल्ट फ्लशिंग की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है, जिसमें टरबाइनों को बंद कर पानी के साथ सिल्ट को बाहर निकाला जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ परियोजनाओं में अत्याधुनिक फिल्टर सिस्टम और डेसिल्टिंग चैंबर लगाए गए हैं, जो सिल्ट को रोकने में मदद करते हैं। फिर भी मानसूनी दौर में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है।
बिजली उत्पादन में आ रही गिरावट से राज्य की ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित हुई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जलविद्युत परियोजनाओं की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए जलाशयों के ऊपरी क्षेत्रों में वनीकरण, भूस्खलन नियंत्रण और सिल्ट ट्रैपिंग संरचनाओं को विकसित करना आवश्यक है। यदि समय रहते ठोस उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में जलविद्युत उत्पादन पर इसका और गंभीर असर पड़ सकता है।
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