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चेतावनी : भारत के सात राज्यों की 47 करोड़ आबादी खतरे में

प्रदूषण की समस्या से सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) ही नहीं जूझ रहा है, बल्कि गंगा-सिंधु नदियों का संपूर्ण मैदानी क्षेत्र इसकी चपेट में है। क्लाईमेट ट्रेंड द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण की घातक परत के कारण सात राज्यों की करीब 47 करोड़ की आबादी खतरे में है। रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब तक सिंधु-गंगा मैदानी क्षेत्र एयरोसोल का बड़ा केंद्र बन गया है। ये एयरसोल प्राकृतिक भी हैं और मानव जनित भी। बड़ी मात्रा में रासायनिक रूपांतरण के जरिये भी पीएम 2.5 का निर्माण हो रहा है जो लंबे समय तक वायुमंडल में टिके रहते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार गंगा और सिंधु के मैदानों में पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में छाई एयरोसोल की परत में कुदरती कण जैसे समुद्री लवण, धूल, कोहरा और प्राकृतिक सल्फेट हैं। जबकि मानवजनित कणों में कालिख, औद्यौगिक सल्फेट,ब्लैक कार्बन आदि शामिल हैं।

वैसे मानव जनित कणों की उत्पति हर क्षेत्र में अलग-अलग है जो उस क्षेत्र की गतिविधियों पर निर्भर है। लेकिन कुदरती कणों और मानव जनित कणों में रसायनिक रूपांतरण भी होता है। इस मौके पर आयोजित कार्यशाला में आईआईटी दिल्ली के सहायक प्रोफेसर सॉगनिक डे समेत कई विशेषज्ञों ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए प्रदूषण के स्रोतों को खत्म करना होगा और पूरे एयरशेड को लेकर क्षेत्रीय रणनीति बनानी होगी। लेकिन चिंता की बात यह है कि सरकार द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में कई प्रदूषित शहर नहीं हैं। इसके अलावा प्रदूषण के स्रोतों को खत्म करने के संसाधनों की कमी है।

सर्दियों में करीब 50 फीसदी पीएम 2.5 रासायनिक प्रक्रिया से ही निर्मित होता है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा सल्फरडाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, वोलाटाइल आर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी) और पोलीसाइकिल एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) आदि के पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) में तब्दील होने के कारण होता है।

चाहे प्राकृतिक हों या मानवजनित, गंगा मैदानों में एक घाटीनुमा इलाके से बाहर नहीं निकल पाने के कारण पूरी सर्दियों के दौरान मैदानी इलाकों में जमे रहते हैं। सर्दी का मौसम शुरू होते ही बायोमास और अपशिष्ट के जलाने से ब्लैक कार्बन और कार्बनिक कण धुएं के रूप में निकलते हैं और गंगा के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं। यह धुआं, वाहनों, कारखानों आदि से प्रदूषण के साथ मिलकर एक मोटी घातक धुंध बनाता है।

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