@शब्द दूत ब्यूरो (19 जून 2025)
वाशिंग्टन। पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने व्हाइट हाउस में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की सिफ़ारिश की है, जिसे गहरे कूटनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इसी कारण व्हाइट हाउस ने मुनीर को एक निजी लंच के लिए आमंत्रित किया — इस बैठक में ट्रंप की भूमिका को शांतिपूर्ण मध्यस्थता के रूप में सराहा गया ।
यह लंच 18 जून 2025 को व्हाइट हाउस के कैबिनेट रूम में आयोजित हुआ, जिसमें प्रेस को आमंत्रित नहीं किया गया था ।
बयान: व्हाइट हाउस प्रवक्ता एना केली ने कहा कि मुनीर ने ट्रंप को “भारत–पाकिस्तान के बीच एक संभावित परमाणु युद्ध टालने” के लिए नोबेल शांति पुरस्कार का पात्र बताया, जिसके सम्मान में उन्हें आदरपूर्वक आमंत्रित किया गया ।
ट्रंप ने मीडिया से कहा: “मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोका,” और उन्होंने अपने दृष्टिकोण की पुष्टि करते हुए कहा कि “दो परमाणु शक्तियां मुझसे बेहद प्रेरित हैं” ।
वहीं, भारत ने इस दावे का खंडन किया है। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश सचिव विक्रम मिस्री का कहना है कि मई 2025 में स्थायी युद्धविराम रक्षा अधिकारियों के माध्यम से स्वतः स्थापित हुआ, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से।
कई विश्लेषकों की राय में यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप को “शांति निर्माता” के रूप में परिभाषित करने की दिशा में रणनीतिक कोशिश है, जिसे नोबेल पुरस्कार के पक्ष में समर्थन मिल सके ।
हालांकि भारत और अन्य विशेषज्ञ इस पहल को एक द्विपक्षीय मसले में बाहरी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं, और इसे पाकिस्तान-यूएस कूटनीति को मजबूत करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है ।
ट्रंप को पहले भी 2018–2020 में मौजूदा नॉर्वेजियन सांसदों द्वारा न्यूक्लियर डील्स और मध्य पूर्व कारनामों जैसे बीमा समझौतों (Abraham Accords) के लिए नामांकित किया गया था ।
वर्तमान में वे 2025 की सूची में भी शामिल हैं, जिसमें उन्हें पाकिस्तानी आर्मी चीफ़ मुनीर की सक्रिय सिफ़ारिश के बाद गहराई से दबाव के बीच नामांकित किया गया है ।
– पाकिस्तानी सेना प्रमुख की इस पहल ने ट्रंप के शांतिदूत के रूप में प्रचार को अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण दिया।
– संदर्भित घटनाक्रम को भारत ने स्पष्ट रूप से अस्वीकार किया है, नामांकन की सक्रियता को चेतावनी के रूप में भी देखा जा रहा है।
– ट्रंप का यह कदम नोबेल क्षितिज तक पहुंचना चाहते रणनीतिक मंच का हिस्सा हो सकता है, जिसे बेहतर समझे जाने की आवश्यकता है।
यह विषय दक्षिण एशिया और मध्यपूर्व में चल रही कूटनीतिक जटिलताओं का एक महत्वपूर्ण प्रतीकत्व है। रिक्तियों और शब्दश: बयानबाजी को देखते हुए, भविष्य में इस नामांकन को नोबेल कमेटी द्वारा कैसे दिखा जाएगा—यह देखना अभी बाकी है।
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