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जेएनयू के करीब चालीस प्रतिशत छात्रों के परिवार की मासिक आमदनी 12000 से भी कम

नई दिल्ली। दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों का फीस वृद्धि को लेकर लगातार प्रदर्शन जारी है। छात्रों ने भारी पुलिस बल की मौजूदगी में विश्वविद्यालय से संसद की तरफ मार्च निकालने की कोशिश की। जेएनयू के ये छात्र हॉस्टल मेन्युअल में हुए बदलाव और फीस वृद्धि को लेकर पिछले कई दिनों से मार्च कर रहे हैं।

जेएनयू में हुई इस फीस वृद्धि के बाद से जेएनयू हॉस्टल में जो छात्र अकेले एक कमरे में रहते हैं उन्हें हर माह का 600 रुपये देना होगा जो कि पहले 20 रुपये होता था, वहीं जो छात्र टू सीटर कमरे में रहते हैं उन्हें महीने का 100 रुपये देना होगा जो कि पहले 10 रुपये होता था। हालांकि इस वृद्धि को आंशिक रूप से कम करके 200 और 100 रुपये किया गया था।

वहीं इस फीस वृद्धि को लेकर जो सबसे बड़ा विवाद है वह हॉस्टल मेस की एक बार की सिक्योरिटी फीस को लेकर है जो कि पहले 5,500 थी जिसे बढ़ाकर 12,000 रुपये कर दिया गया है, वहीं स्टूडेंट्स को मेस सर्विस चार्ज के तौर पर 1700 रुपये भी देने होंगे। जहां इस बात की बहस छिड़ी हुई है कि छात्रों को फीस में इतनी छूट देनी चाहिए या नहीं, असल मुद्दा यह है कि जेएनयू में बड़ी तादाद में छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं।

मनी कंट्रोल की रिपोर्ट की मानें तो छात्रों की फीस में हुई इस तरह की वृद्धि इन परिवारों को सीधी चोट पहुंचाएगी। उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए 10 से 11 हजार सालाना खर्च करने होंगे। होस्टल फीस के अलावा छात्रों को बिजली और पानी के लिए भी पैसे देने होंगे।

वहीं दूसरी तरफ बात यह भी है कि विश्वविद्यालय में होने वाली आय और उसके खर्च में काफी अंतर है। साल 2017-18 में यूनिवर्सिटी की कमाई 383.62 करोड़ थी वहीं खर्च 556.14 करोड़ था। वहीं अकादमिक में सिर्फ 10.99 करोड़ रुपये की आय हुई जबकि सब्सिडी में 352 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

जेएनयू में फीस कम करने का एकमात्र मकसद गरीब तबके के छात्रों को कम फीस में बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराना है। जेएनयू में छात्रों की विविधता वहां की सबसे बड़ी ताकत है लेकिन बढ़ी हुई फीस का इस पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।

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