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चारधाम यात्रा में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएँ: आखिर क्यों नहीं रूक पा रही? एक विश्लेषण, सीएम धामी ने दिखाई सख्ती दिये कड़े निर्देश

@विनोद भगत

हिमालय की पर्वत-श्रृंखलाओं पर बसे चारधाम — केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री — हिंदुओं की अटूट श्रद्धा के केंद्र हैं। लेकिन इन तीर्थों तक पहुंचने की कठिन चढ़ाइयों को ‘हेलीकॉप्टर सेवा’ ने जब सरल बनाया, तो मानो स्वर्ग धरती से कुछ ही मिनट की दूरी पर आ गया।

परंतु इस यात्रा में हो रही दुर्घटनाओं से एक सवाल खड़ा हो गया है। इधर मई–जून 2025 की घटनाओं ने श्रद्धा की इस ऊंचाई को भय और बहस की गहराई में गिरा दिया।

2025 की चारधाम यात्रा में  8 मई 2025 को गंगोत्री मार्ग में गंगनानी क्षेत्र में श्रद्धालुओं से भरा हेलीकॉप्टर मौसम की अनदेखी और संकरी घाटियों के कारण दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इस भयावह  हादसे में छह की मौत हो गई। स्थानीय लोगों का कहना था कि पायलट आखिरी क्षणों तक हेलीकॉप्टर को नदी में गिरने से बचाते रहे — शायद इसलिए कोई बड़ा विस्फोट नहीं हुआ। लेकिन घाटी की चट्टानों से टकरा कर हेलीकॉप्टर टुकड़ों में बिखर गया। आज 15 जून को केदारनाथ की ओर लौटते समय फिर ‘त्रासदी की उड़ान’ साबित हुई। BELL 407 हेलीकॉप्टर — आर्यन एविएशन का — केदारनाथ से गौरीकुंड लौटते समय अचानक आसमान से लहराता हुआ गिर पड़ा। जिसमें7 की मौत हुई। 5 श्रद्धालु, एक बच्चा और पायलट।प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हेलीकॉप्टर पहले एक पेड़ से टकराया, फिर रोटर के टुकड़े बिखर गए। सब कुछ महज 10 सेकंड में खत्म हो गया।

अन्य 3 घटनाएं जो मई–जून 2025) में हुई। हालांकि इसमें कोई हताहत नहीं हुआ ये राहत की बात रही। एक बार रोटर हेलीपैड पर खड़े वाहन से टकराया, एक एयर-एम्बुलेंस क्रैश-लैंडिंग में बाल-बाल बची, एक फ्लाइट तकनीकी कारण से इमरजेंसी लैंडिंग करवाई गई। इन घटनाओं में कोई जान हानि नहीं हुई, लेकिन यात्रियों में भय व्याप्त हो गया।

आखिर क्यों हो रही हैं ये दुर्घटना। एक प्रमुख कारण है वातावरणीय अस्थिरता, हिमालय में एक ही दिन में 4 मौसम — तेज धूप, कोहरा, बर्फबारी और गरज — पायलटों को निर्णय लेने का समय नहीं देता।

एक पायलट का कहना है कि “हमें उड़ान भरने से पहले हर सेकेंड का मौसम डेटा चाहिए — और वो हमारे पास नहीं है”। अत्यधिक यात्री दबाव भी एक कारण है। मई–जून में हर घंटे 300 से अधिक हेलीकॉप्टर उड़ानें हो रही थीं। छोटे हेलीपैड, सीमित टेकऑफ-स्पेस और तकनीकी स्टाफ की कमी ने खतरे को बढ़ा दिया।

निजी ऑपरेटरों की लापरवाही भी कम जिम्मेदार नहीं है। दरअसल कई ऑपरेटर कम प्रशिक्षित पायलट, पुरानी मशीनें और “गुणवत्ता से ज़्यादा संख्या” नीति अपना रहे थे।डीजीसीए ने हादसों के बाद कुछ कंपनियों को ब्लैकलिस्ट भी कियाह

एक और महत्वपूर्ण सवाल जो खड़ा हुआ है कि क्या श्रद्धा की उड़ान बेहद जोखिम भरी यात्रा में बदल रही है?क्या तीर्थयात्रा अब बाजार बन गई है, जहाँ सुरक्षा नियमों की कुर्बानी मुनाफे के नाम पर दी जाती है?।

डीजीसीए ने हालांकि इस ओर कुछ कदम उठाए हैं। 10 जून 2025 को केदारनाथ रूट पर प्रति घंटे उड़ानों की सीमा 300 से घटाकर 150 की गई।हेलीकॉप्टर कंपनियों से सख्त SOP लागू करने को कहा गया। कई ऑपरेटरों की सेवाएं रोकी गईं।

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अब इस ओर सख्ती का रूख अपनाते हुए आज कड़े निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को निर्देशित किया है कि तकनीकी विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाए, जो हेली संचालन की सभी तकनीकी व सुरक्षा पहलुओं की गहन समीक्षा कर एसओपी तैयार करेगी। यह समिति यह सुनिश्चित करेगी कि हेली सेवाओं का संचालन पूरी तरह से सुरक्षित, पारदर्शी और निर्धारित मानकों के अनुसार हो।

इसके साथ ही, मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिए हैं कि राज्य में पूर्व में हुई हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं की जांच के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति पूर्व में हुई हेली दुर्घटनाओं के साथ ही आज के हेली क्रेश की भी हर पहलू की गहनता से जांच कर अपनी रिपोर्ट देगी। यह समिति प्रत्येक घटना के कारणों की गहराई से जांच करेगी और दोषी व्यक्तियों या संस्थाओं की पहचान कर उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की संस्तुति करेगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में हेली सेवाओं का महत्व तीर्थाटन, आपदा प्रबंधन और आपातकालीन सेवाओं के लिए अत्यधिक है, इसलिए इनमें सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। राज्य सरकार ने हेलीकॉप्टर संचालन के लिए विशेषज्ञ समिति गठित की है जो सुरक्षा ढांचा फिर से डिज़ाइन करेगी।

चारधाम की यात्रा आत्मा को छूने वाली होती है। लेकिन आस्था और सुविधा के इस संगम में यदि सुरक्षा पीछे छूट जाए तो यह ‘श्रद्धा से बलिदान’ में बदल सकती है।

2025 की हेलीकॉप्टर घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि अगर तकनीक, पर्यावरण और प्रशासन की तिकड़ी एकजुट न हो — तो आस्था की यह यात्रा कभी भी दुर्घटना का मंज़र बन सकती है। अब समय आ गया है कि श्रद्धालु भी हेलीकॉप्टर सुविधा की जगह पारंपरिक यात्रा को अपनाने पर विचार करें?

क्या तीर्थ के अनुभव को ‘तेज’, ‘संक्षिप्त’ और ‘आसान’ बनाने के लोभ से हम उसका अर्थ खो रहे हैं?

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