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राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल होने को लेकर संत-धर्माचार्यों में तनातनी

शब्द दूत डेस्क

अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता अदालत ने भले साफ कर दिया है, लेकिन इसके लिए ट्रस्ट गठन का रास्ता आसान नहीं लग रहा। सरकार ने अभी इसकी कवायद नहीं शुरू की है, लेकिन शीर्ष संत-धर्माचार्यों में ट्रस्ट का मुखिया बनने और इसमें शामिल होने को लेकर तनातनी सामने आ गई है। विवाद इस स्तर तक पहुंच गया है कि साधु-संत अपने विरोधियों के खिलाफ न सिर्फ अपशब्द बोल रहे हैं, बल्कि हिंसक संघर्ष तक की नौबत है।

हाल में खबर आई कि राम जन्मभूमि न्यास के महंत नृत्यगोपालदास पर कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी के बाद उनके समर्थकों ने तपस्वी छावनी के संत परमहंसदास पर हमला बोल दिया। पुलिस ने परमहंसदास को निकाला। इसके बाद आचरण की बात उठाते हुए तपस्वी छावनी ने उन्हें निष्कासित कर दिया।

विवाद में सिर्फ यही दो पक्ष नहीं हैं। पहले से चल रहे तीन ट्रस्टों के अलावा अयोध्या के प्रभावशाही संत और धर्माचार्यों में भी कटुता बढ़ रही है।

श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास के बाद निर्मोही अखाड़ा ने ट्रस्ट में न सिर्फ शामिल होने, बल्कि अध्यक्ष या सचिव पद की मांग कर दी है। महंत और अखाड़ा- दोनों की मांगों पर केंद्र ने जिला प्रशासन से रिपोर्ट और दस्तावेज मंगाए हैं। अयोध्या मंदिर ट्रस्ट का मामला गृह मंत्रालय के बाद अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय देख रहा है।

राममंदिर निर्माण के लिए तीन ट्रस्ट- श्रीरामजन्मभूमि न्यास, श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास और श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास में दावेदारी गरमाई हुई है। निर्मोही अखाड़े की ओर से पीएमओ को मांग पत्र भेजा गया है। जबकि, श्रीरामजन्मभूमि न्यास का कहना है कि नया ट्रस्ट बनाने की जरूरत नहीं है। हमें ही मंदिर का काम सौंपा जाए।

सबसे पुराना ट्रस्ट श्रीरामजन्मभूमि न्यास है, जो वर्ष 1985 में विश्व हिंदू परिषद की देख-रेख में बना था और यही ट्रस्ट कारसेवकपुरम में कई सालों से मंदिर निर्माण के लिए पत्थर तराशने का काम कर रहा है।

दूसरा ट्रस्ट रामालय ट्रस्ट है, जो विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद वर्ष 1995 में बना था और इसके गठन के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव की भूमिका मानी जाती है। रामालय ट्रस्ट का गठन साल 1995 में द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती समेत 25 धर्माचार्यों की मौजूदगी में अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए किया गया था। इसके गठन में श्रृंगेरीपीठ के धर्माचार्य स्वामी भारती भी शामिल थे।

अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास का कहना है कि श्रीरामजन्मभूमि न्यास, अयोध्या एक्ट 1993 से पहले का बना है, जिसकी वजह से पात्रता नहीं रखता। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास के अध्यक्ष महंत जन्मेजय शरण रामालय की कार्यकारिणी सदस्य भी हैं। दोनों ट्रस्ट के महंतों का तर्क है कि निर्मोही अखाड़े को सिर्फ ट्रस्ट में जगह देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ट्रस्ट का दायित्व संभालने के लिए नहीं।

वृंदावन के संतों ने भी राम मंदिर ट्रस्ट में स्थान देने की मांग उठाई है। कालीदह स्थित अखंड दया धाम में इसी हफ्ते संत-महंतों की धर्मसभा में केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति पहुंची। इस धर्मसभा में आठ प्रस्ताव पास किए गए, जिसमें राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए जाने वाले ट्रस्ट में वृंदावन के दो संतों को स्थान देने की मांग की गई।

तीसरा ट्रस्ट जानकीघाट बड़ा स्थान के महंत जन्मेजय शरण के नेतृत्व में बना श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास है। ये तीनों ही ट्रस्ट अपने- अपने नेतृत्व में मंदिर निर्माण ट्रस्ट बनाने के लिए दबाव बना रहे हैं।

सरकार द्वारा गठित किए जाने वाले ट्रस्ट का मॉडल कैसा हो, इसको लेकर अलग-अलग तरह के तर्क सामने आ रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को ट्रस्ट का स्वरूप तय करना है। सरकार के पास वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, तिरुपति बाला जी, बद्रीनाथ के साथ शैव संप्रदाय के सोमनाथ मंदिर व काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के मॉडल हैं, जिनमें सीईओ जैसे पद हैं। इन ट्रस्टों में स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर संत-धर्माचार्य तक शामिल हैं। सरकार कहीं से शामिल नहीं हो सकती। ऐसा सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है। सरकार विस्तार से लेकर वित्तीय व्यवस्था साधु-संतों के हवाले न करके भले ही अपने हाथ में धर्मार्थ कार्य विभाग के जरिए रख सकती है।

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