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काशीपुर : ऐसे में कैसे होगी “सारथी” की हिफाजत

@विनोद भगत

काशीपुर । कुमाऊं पुलिस उपमहानिरीक्षक जगतराम जोशी भले ही पुलिसिंग में सुधार के लिए नये-नये प्रयोग कर रहे हैं। लेकिन उसके कितने सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे ये देखने वाली बात है। एक समय अपने ऐसे ही सुधारों को लेकर दिल्ली पुलिस आयुक्त किरन बेदी पूरे देश में चर्चाओं में रही थी। पुलिस का चेहरा आमतौर पर आम आदमी के लिए डरावना माना जाता है। लेकिन सवाल ये कि क्या वाकई जगतराम जोशी पुलिस की इसी छवि को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।

जगतराम जोशी ने उधमसिंह नगर के काशीपुर के रामलीला मैदान में आयोजित जनसंवाद कार्यक्रम में सामुदायिक पुलिसिंग की शुरुआत की। जिसमें काशीपुर सर्किल में जनता के बीच में से सारथी बनाने की शुरुआत की। इस मौके पर डी आई जी जगतराम जोशी ने अपने संबोधन में बताया कि सारथी बनाने का उद्देश्य पुलिस और जनता के बीच समन्वय बनाना है। सारथी अपने क्षेत्र में हो रही गतिविधियों से संबंधित थाने तथा कोतवाली को जानकारी मुहैय्या करायेगा ताकि अवैध कार्यों को रोका जा सके। अब उपमहानिरीक्षक साहब को ये कौन समझाये कि सारथी की सूचना तो उनका पुलिस वाला ही लीक कर देगा। ऐसे में सारथी की जान पर ही बन आयेगी।

साथ ही डीआईजी जोशी ने इस बात पर जोर दिया कि सारथी होने का मतलब यह नहीं लगाया जाये कि वह खुद को समाज से अलग समझ कर पुलिस द्वारा दिये गये परिचय पत्र का दुरुपयोग करते हुए जनता को डराने-धमकाने में उपयोग करने लगे। यदि ऐसा पाया गया तो उस सारथी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यहां ये ध्यान देने योग्य बात है कि आखिर सारथी की पहचान गुप्त रही ही कहां? 

इस पूरी कवायद में खास बात यह रही कि सारथी बनते ही लोगों ने डीआईजी और पुलिस अधिकारियों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डालनी शुरू कर दी। मतलब साफ था कि रुआब दिखाने की शुरुआत हो गयी थी। जबकि सारथी को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए था। एक तरफ तो पुलिस ने कहा कि सूचना देने वाले का नाम गोपनीय होगा लेकिन दूसरी तरफ सार्वजनिक रूप से सारथी। अब कोई मसला होता है तो सारथी की ओर शक जायेगा मतलब सारथी की दुश्मनी तय है।

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