Breaking News

लिव-इन रिलेशनशिप एक गंभीर अनुत्तरित सवाल : क्या यह भारतीय संस्कृति में स्वीकार्य है?

@विनोद भगत

समकालीन भारतीय समाज तीव्र गति से सामाजिक बदलावों के दौर से गुजर रहा है। पारंपरिक विवाह संस्था की जगह अब लिव-इन रिलेशनशिप जैसे विकल्पों पर भी विचार होने लगा है। लेकिन क्या यह संबंध भारतीय संस्कृति की स्वीकृति प्राप्त कर पाते हैं? यह प्रश्न न केवल सामाजिक, बल्कि नैतिक, सांस्कृतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी विचारणीय है।

लिव-इन रिलेशनशिप का अर्थ है कि दो वयस्क, विवाह किए बिना सहमति से एक साथ पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसमें भावनात्मक और शारीरिक संबंध दोनों शामिल होते हैं, परंतु सामाजिक या धार्मिक विवाह की मान्यता नहीं होती।

भारतीय संस्कृति में विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का संबंध माना गया है। यह एक संस्कार है—सप्तपदी, वचनबद्धता, समाज की स्वीकृति और धर्म के अनुरूप जीवन-यात्रा का आरंभ। ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप विवाह की उस गहराई को नकारता प्रतीत होता है।

ग्रामीण भारत और पारंपरिक शहरी समाज में लिव-इन रिलेशन को आज भी संदेह और अपवित्रता की दृष्टि से देखा जाता है। कई बार इसे “चरित्रहीनता” से जोड़ दिया जाता है, विशेषकर जब इसमें स्त्री की भागीदारी हो। हालांकि महानगरों और शिक्षित वर्ग में यह धीरे-धीरे सामान्य होता जा रहा है।

भारत का संविधान किसी भी दो वयस्कों को सहमति से साथ रहने की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन को ‘राइट टू लाइफ’ के तहत मान्यता दी है, बशर्ते दोनों वयस्क हों और संबंध जबरदस्ती पर आधारित न हो। महिला साथी को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा भी प्राप्त है।

लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिक जीवनशैली का प्रतीक बनते जा रहे हैं। युवा वर्ग स्वतंत्रता, करियर, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है, जबकि पारंपरिक मूल्य सामूहिकता, परिवार और सामाजिक मान्यता पर आधारित हैं। यह टकराव ही इसे विवादास्पद बनाता है।

लिव-इन संबंधों में स्पष्टता और उत्तरदायित्व की कमी कई बार समस्याएं उत्पन्न करती है—अस्थिरता, भावनात्मक आघात, और कानूनी पेचिदगियाँ। यदि लिव-इन को समाज में जगह देनी है, तो इसके लिए सामाजिक संवाद, पारदर्शिता और नैतिक जवाबदेही की आवश्यकता होगी।

लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति में पूर्णतः स्वीकार्य नहीं हैं, परंतु वे सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा हैं। संस्कृति कोई स्थिर ढांचा नहीं, बल्कि समय के साथ बदलने वाला जीवंत प्रवाह है। अगर संबंधों में सम्मान, पारदर्शिता और जिम्मेदारी हो, तो ऐसे नए सामाजिक प्रयोगों को भी धीरे-धीरे स्वीकृति मिल सकती है।

ये एक अंतहीन बहस है। सबके अपने अपने तर्क हो सकते हैं। भारतीय संस्कृति की शुचिता और पवित्रता को त्याग कर हम अपनी गौरवशाली परंपरा से विमुख होकर कहाँ जायेंगे? यह गंभीर रूप से विचारणीय सवाल है। उत्तर हमें ही खोजना होगा।

 

Check Also

बड़ी खबर: रूद्रपुर में इंदिरा चौक पर बनी अवैध मजार को आज तड़के एन एच व प्रशासन ने बुलडोजर से ध्वस्त किया, देखिए वीडियो

🔊 Listen to this @शब्द दूत ब्यूरो (22 अप्रैल 2025) रूद्रपुर। यहां  इंदिरा चौक पर …

googlesyndication.com/ I).push({ google_ad_client: "pub-