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आपसे ज्यादा तो एक पान वाला कमाता है, आईएएस अधिकारियों से जब बोले थे शेषन

चुनाव आयोग में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद मसूरी की लाल बहादुर शास्त्री अकादमी ने उन्हें आईएएस अधिकारियों को भाषण देने के लिए बुलाया। शेषन का पहला वाक्य था, “आपसे ज़्यादा तो एक पान वाला कमाता है।” उनकी साफ़गोई ने ये सुनिश्चित कर दिया कि उन्हें इस तरह का निमंत्रण फिर कभी न भेजा जाए।

शेषन अपनी आत्मकथा लिख चुके थे लेकिन वो इसे छपवाने के लिए तैयार नहीं थे। क्योंकि उनका मानना था कि इससे कई लोगों को तकलीफ़ होगी। उनका कहना था, “मैंने ये आत्मकथा सिर्फ़ अपने संतोष के लिए लिखी है।”

शेषन 1955 बैच के आईएएस टॉपर थे। भारतीय नौकरशाही के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बावजूद वो चेन्नई में यातायात आयुक्त के रूप में बिताए गए दो सालों को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय मानते
थे।

उस पोस्टिंग के दौरान 3000 बसें और 40,000 हज़ार कर्मचारी उनके नियंत्रण में थे। एक बार एक ड्राइवर ने शेषन से पूछा कि अगर आप बस के इंजन को नहीं समझते और ये नहीं जानते कि बस को ड्राइव कैसे किया जाता है, तो आप ड्राइवरों की समस्याओं को कैसे समझ पाएंगे।

शेषन ने इसको एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने न सिर्फ़ बस की ड्राइविंग सीखी बल्कि बस वर्कशॉप में भी काफ़ी समय बिताया। अब वे इंजनों को बस से निकाल कर उनमें दोबारा फ़िट कर सकता थे। एक बार उन्होंने बीच सड़क पर ड्राइवर को रोक कर स्टेयरिंग संभाल लिया और यात्रियों से भरी बस को 80 किलोमीटर तक चलाया।

ये शेषन का ही बूता था कि उन्होंने चुनाव में पहचान पत्र का इस्तेमाल आवश्यक कर दिया। नेताओं ने उसका ये कह कर विरोध किया कि ये भारत जैसे देश के लिए बहुत ख़र्चीली चीज़ है। शेषन का जवाब था कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए गए तो 1 जनवरी 1995 के बाद भारत में कोई चुनाव नहीं कराए जाएंगे। कई चुनावों को सिर्फ़ इसी वजह से स्थगित किया गया क्योंकि उस राज्य में वोटर पहचानपत्र तैयार नहीं थे।

उनकी एक और उपलब्धि थी उम्मीदवारों के चुनाव ख़र्च को कम करना। उनसे एक बार एक पत्रकार ने पूछा था, “आप हर समय कोड़े का इस्तेमाल क्यों करना चाहते हैं?”

शेषन का जवाब था, “मैं वही कर रहा हूं जो कानून मुझसे करवाना चाहता है। उससे न कम न ज़्यादा। अगर आपको कानून नहीं पसंद तो उसे बदल दीजिए। लेकिन जब तक कानून है मैं उसको टूटने नहीं दूंगा।”

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