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जयंती पर विशेष :कालजयी साहित्यकार गौरा पंत “शिवानी” का रचना संसार, कृतित्व और व्यक्तित्व पर एक नजर

@शब्द दूत ब्यूरो(17 अक्टूबर 2024)

गौरापंत शिवानी का जन्म राजकोट (गुजरात) में हुआ था। आधुनिक अग्रगामी विचारों के समर्थक पिता श्री अश्विनीकुमार पाण्डे राजकोट स्थित राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल थे, जो कालांतर में माणबदर और रामपुर की रियासतों में दीवान भी रहे। माता और पिता दोनों ही विद्वान, संगीत प्रेमी और कई भाषाओं के ज्ञाता थे। साहित्य और संगीत के प्रति गहरी रुझान ‘शिवानी’ को उनसे ही मिली। शिवानी जी के पितामह संस्कृत के प्रकांड विद्वान-पं. हरिराम पाण्डे, जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में धर्मोपदेशक थे, परम्परानिष्ठ और कट्टर सनातनी थे। महामना मदनमोहन मालवीय से उनकी गहन मित्रता थी। वे प्रायः अल्मोड़ा तथा बनारस में रहते थे, अतः अपनी बड़ी बहन तथा भाई के साथ शिवानी जी का बचपन भी दादाजी की छत्रछाया में उक्त स्थानों पर बीता। उनकी किशोरावस्था शान्तिनिकेतन में, और युवावस्था अपने शिक्षाविद् पति के साथ उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों में बीती। पति के असामयिक निधन के बाद वे लम्बे समय तक लखनऊ में रहीं और अन्तिम समय में दिल्ली में अपनी बेटियों तथा अमरीका में बसे पुत्र के परिवार के बीच अधिक समय बिताया। उनके लेखन तथा व्यक्तित्व में उदारवादिता और परम्परानिष्ठता का जो अद्भुत मेल है, उसकी जड़ें इसी विविधमयतापूर्ण जीवन में थीं।

शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलने वाली ‘नटखट’ नामक एक बाल पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘गोरा’ पुकारते थे। उनकी ही सलाह, कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। ‘शिवानी’ की पहली लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में धर्मयुग में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक अनवरत चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएं ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृतात्मक आख्यान हैं।

1979 में शिवानी जी को पद्मश्री से अलंकृत किया गया। उपन्यास, कहानी, व्यक्तिचित्र, बाल उपन्यास, और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ, से निकलने वाले पत्र ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवनी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास-66 गुलिस्तां कालोनी के द्वार लेखकों, कलाकारों, साहित्य प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग से जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।

कृतियाँ :- उपन्यास । कहानी-संग्रह । विविध ।

उपन्यास :- अतिथि, श्मशान चंपा, चल खुशरो घर आपने, सुरंगमा, भैरवी, रतिविलाप, चौदह फेरे, पूतोंवाली, कालिंदी, मायापुरी, जालक, कृष्णकली, हे दत्तात्रेय, कैंजा, सूखा गुलाब, यात्रिक।

कहानी-संग्रह :- मधुयामिनी :- (मधुयामिनी, प्रतिशोध, मरण सागर पारे, गजदन्त, मित्र, दादी, भीलनी, चलोगी चन्द्रिका ?, गान्धारी), अपराजिता :- (दंड, मन का प्रहरी, श्राप, लिखूँ…?, मेरा भाई, अपराजिता, निर्वाण, सौत, तीन कन्या, चन्नी, धुआँ), भिक्षुणी :- (तोमार जे दोक्खिन मुख, ज्यूडिथ से जयन्ती, भिक्षुणी, मामाजी, अनाथ, भूल, सती, मौसी, प्रतीक्षा, लाटी), विप्रलब्धा :- दो स्मृति-चिह्न, विप्रलब्धा, शायद, ज्येष्ठा, शपथ, घंटा, ‘के’, पुष्पहार), करिए छिमा :- (स्वप्न और सत्य, चार दिन की, कालू, माई, करिए छिमा, जिलाधीश, दो बहनें, मसीहा, मेरा बेटा), चिर स्वयंवरा :- (उपहार, केया, चीलगाड़ी, पिटी हुई गोट, चिरस्वयंवरा, मास्टरनी, भूमि-सुता, विनिपात), लाल हवेली :- (गूँगा, लाल हवेली, शिबी, नथ, गहरी नींद, खुदा हाफिज, ठाकुर का बेटा, मणिमाला की हँसी, फिरबे की ? फिरबे ?, मँझले दद्दा, टोला), कस्तूरी मृग :- (कस्तूरी मृग, माणिक, तर्पण, जोकर, रथ्या, शर्त), स्वयंसिद्धा :- (स्वयंसिद्धा, अभिनय, कौन, गैंडा, बदला, दर्पण), दो सखियाँ :- (उपप्रेती, दो सखियाँ, चाँचरी, पाथेय, बन्द घड़ी), अपराधी कौन :- (अपराधी कौन, जा रे एकाकी, छिः मम्मी, तुम गन्दी हो, साधो, ई मुर्दन कै गाँव, अलख माई, चाँद), राधिका सुंदरी :-(राधिका सुंदरी, चालाक लोमड़ी और भालू, बुद्धिमान बकरी, बिल्ली और मूसारानी, घमंडी हाथी, और बुद्धिमान चूहा, पिद्दी और हाथी।

विविध :- आमादेर शांतिनिकेतन (संस्मरण), सुनहुँ तात यह अकथ कहानी (संस्मरण), एक थी रामरती (संस्मरण), स्मृति-कलश (संस्मरण), मरण सागर पारे (संस्मरण) काल के हस्ताक्षर (संस्मरण)।

(साभार लेख)

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