सामंतों के जमाने में चारण और भाट हुआ करते थे । कलिकाल में ये जिम्मेदारी मीडिया का एक बड़ा वर्ग उठा रहा है। इसमें चारण भी हैं और भाट भी। दोनों का काम एक ही है लेकिन शैली अलग-अलग होती है। मै चारण और भाटों को एक जाति के रूप में नहीं बल्कि एक ख़ास विधा के कलाकार के रूप में मान्यता देता आया हूँ । ये दोनों प्रजाति के लोग कवि हृदय होने के साथ-साथ ही मौखिक इतिहास लेखक भी होते है। इन्हें इनकी इसी कला के चलते जागीरें भी मिलीं और ये जागीरदार हो गए ।बाद में इन्होने अपनी कला को लिपिबद्ध भी किया।
सामंतों का प्रारंभिक इतिहास खासतौर पर [ मध्ययुगीन काल से लेकर 19वीं शताब्दी तक,] मुख्य रूप से चारणों द्वारा रचित है। चारण और राजपूतों का संबंध इतिहास में बहुत गहरा है। चूंकि चारण राजपूतों के साथ-साथ युद्धों में भाग लेते थे, वे न केवल उन युद्धों के साक्षी थे बल्कि समकालीन राजपूत जीवन का हिस्सा बनने वाले कई अन्य अवसरों और प्रकरणों के भी साक्षी थे। ऐसे युद्धों और घटनाओं के बारे में लिखे गए काव्य ग्रन्थों में दो गुण समाहित थे: बुनियादी ऐतिहासिक सत्य और विशद, यथार्थवादी और सचित्र वर्णन बढ़ा चढ़ाकर ; विशेष रूप से नायकों, साहसी उपलब्धियों और युद्धों का। कलिकाल में ये चारण और भाट मीडिया की शक्ल में आपके सामने हैं ।
अपने जमाने के मशहूर शायर वलीउल्लाह मुहिबकहते हैं कि-
इश्क़िया कहे शे’र ओ या मदह-ओ-मनाक़िब
आलम का बनवाड़ा कहे शाइर नहीं है भाट
उस जमाने में भी चारण और भाट का काम घटिया माना जाता था और कलिकाल में भी। चारणों और भाटों के लिए उनका काम हर काल में सम्मान और स्वाभिमान का रहा है। जो जितना ज्यादा खुशामदी और यशोगान करने में दक्ष होता है उसे उतना ज्यादा इनाम-इकराम मिलना चाहिए। मिल रहा है। चारण और भाट न हों तो दिल्ली का ही नहीं हर सूबे का दरबार सूना हो जाये। पहले चरण अपने-अपने सामंतों से बाबस्ता होते थे, उनके बीच ये काम खानदानी तौर से होता था ,इसलिए उनमें प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती थी ,बल्कि ये काम विरासत का माना जाता था।किन्तु अब जमाना बदल गया है , कलिकाल में चरण और भाट का काम भी प्रतिस्पर्द्धा का हो गया है। जो जितना ज्यादा खुशामदी और यशोगानकर्ता होता है उसे उतना ज्यादा सम्मान और अनुदान मिलता है। हमारे यहां तो आज से चार दशक पहले तक किसी भी विवाह को तब तक पूरा नहीं माना जाता था ,जब तक की बरात में भाट साथ न हो । हमारे पुश्तैनी भाट कुकरगांव [जालौन ] के राव साहब थे ,हम सब उन्हें राव मामा कहते थे। वे हमारे कुंवे के हर विवाह में हमारे कुल कि विरुदावली गाकर सुनते थ। मंडप के नीचे पहरावन के लिए बारातियों का नाम उनके पिता और गांव के साथ लेकर पुकारने का काम भी भाटों का होता था।
बहरहाल चारण और भाट का जिक्र इसलिए करना पड़ा क्योंकि गए रोज देश के अनेक मीडिया घरानों ने एक सर्वे जारी किया है जिसे नाम दिया गया ‘ मूड आफ दी नेशन’ । नेशन यानि राष्ट्र ,यानि मुल्क ,यानि देश ,यानि वतन का मूड भांपना आसान नहीं होत। फिर भी कुछ लोग हैं जो दावा करते हैं कि वे नेशन का मूड भांप सकते हैं। वे ढोल बजा-बजाकर नेशन का मूड बता रहे हैं कि यदि आज चुनाव हो जाएँ तो फलां साहब की पार्टी सत्ता में आएगी और फलां की दूकान बंद हो जाएगी। मूड आफ दी नेशन में नेताओं की लोकप्रियता का प्रतिशत भी बताया जा रहा है। अब चूंकि आने वाले दिनों में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होना है इसलिए इस सर्वे का आना जरूरी था,लेकिन नेशन में बहुत से लोग हैं जो इन सर्वेक्षणों को तवज्जो नहीं देते ,लेकिन बहुत से ऐसे लोग और दल भी हैं जो इन सर्वेक्षणों के लिए मोटा ‘ नेमनूक ‘ सर्वेयरों को देते हैं।
हमारे आदि गुरु प्रो प्रकाश दीक्षित कसर कहा करते थे कि चारण साहित्य की शैली अधिकतर वर्णनात्मक है और इसे दो रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। कथात्मक और प्रकीर्ण काव्य। चारण साहित्य के कथात्मक काव्यरूप को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे, रास, रासौ, रूपक, प्रकाश, छंद, विलास, प्रबंध, आयन, संवाद, आदि। इन काव्यों की पहचान मीटर से भी कर सकते हैं जैसे, कवित्त, कुंडलिया, झूलणा, निसाणी, झमाल और वेली आदि। प्रकीर्ण काव्यरूप की कविताएँ भी इनका उपयोग करती हैं।डिंगलभाषा में लिखे गए विभिन्न स्रोत, जिन्हें बात (वार्ता), ख्यात, विगत, पिढ़ीआवली और वंशावली के नाम से जाना जाता है। चरण और भाटों को अमरत्व का वरदान है शायद ,क्योंकि ये हर युग में पाए जाते हैं। आगे भी इनके नष्ट होने कि कोई संभावना मुझे दिखाई नहीं देती।
दरअसल नेशन आफ दी मूड नाम के इन सर्वेक्षणों का मकसद नेशन का मूड बदलना होता है। नेताओं का खराब मूड फ्रेश करना होता है। नेशन हाल ही में हुए चुनावों के बाद से बदले हुए मूड में है । नेशन यानीं मुल्क यानि देश यानि वतन ने पिछले जून में आये चुनाव परिणामों से सत्तारूढ़ दलों का मूड खराब कर दिया है ,इसलिए कोशिश की जा रही है कि हरियाणा और जम्मो-कश्मीर विधानसभा के चुनावों के जरिए दलों और नेताओं का मूड ठीक करा दिया जाये। आज के चारण और भाट अपनी टीआरपी के लिए काम नहीं करते । वे अपनी पसंद के दलों और नेताओं के लिए काम करते हैं। जो जितना नेम-नूक देता है ,उसका उतना यशगान कर दिया जाता है। हमारे जमाने में ये काम बहुत सीमित मात्रा में था,अब ये लघु और कुटीर उद्योग ही नहीं बल्कि एक महा उद्योग हो चुका है।
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नेशन आफ दी मूड ‘ के जरिये उन राजनीतिक दलों को होने वाले विधानसभा चुनावों में आगे बताया जा रहा है जो वाकई में बहुत पीछे हैं।नेशन आफ दी मूड बनाने वाले नहीं जानते कि अब लड़ाई पानीपत की नहीं सोनीपत की है । कठुआ और ऊधमपुर की है। इस लड़ाई में मोदी की गारंटी नहीं है ,राहुल कि गारंटी भी नहीं है । लोग गारंटी चाहते हैं लेकिन उनसे जो अभी भी थोड़ा-बहुत विश्वसनीय बने हुए हैं। नेशन आफ दी मूड’ पर सोशल मीडिया भारी पड़ रहा है। छोटे-छोटे न्यूओज पोर्टल और यूट्यूब चैनल बड़े-बड़े सेट लेत चैनलों के झूठ कि धज्जियां उड़ाते दिखाई दे रही है। हालाँकि ऐसा करने वालों को भी जदीद किस्म का चारण और भाट माना जाता है। हमारे मित्रगण हमें भी इसी श्रेणी में रखने से नहीं चूकते।
सवाल ये है कि क्या सचमुच इन चैनलों में इतनी कूबत है कि ये देश का मूड भांप सकें ? मुझे लगता है कि ये सब मिलकर देश के मतदाता की आँखों में धूल झौंकने की कोशिश कर रहे हैं ,इन सर्वेक्षणों के जरिये। मेरी समझ में ये सब सर्वेक्षण एक धोखा है । एक छल हैं और एक मृगमरीचिका हैं। इन सबने मिलकर अखबार द्वारा वर्षो की कोशिश से कमाई गयी विश्वसनीयता का भट्टा बैठा दिया है। ये ‘ भपोले ‘[ भांपने वाले ] लोकतंत्र कि जड़ों में भी मठा डाल रहे हैं। ये जघन्य अपराध है लेकिन इसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता में कोई अनुच्छेद ,कोई धारा नहीं है जिसके तहत मुकदमा चलाया जा सके। हमारा जमाना था जब लोग अखबारों में छपी बात को ब्रम्हवाक्य मानकर भरोसा करते थे,तब आज का बहुमुखी मीडिया नहीं था । सेटेलाइट चैनल नहीं थे, यूट्यूब चैनल नहीं थे । ब्लागर नहीं थे। अब सब हैं, लेकिन भरोसे लायक कोई नहीं रह गया है।
जब ये चैनल नहीं थे तब जो चारण-भाट थे । वे बहुत वोकल और बेशर्म थे । कांग्रेस में जैसे देवकांत बरुआ थे वैसे ही मोदी युग में शिवराज सींग चौहान हुए। आप इन नामों कि फेहरिश्त अपनी सुविधा से घटा-बढ़ा सकते हैं। आज के चारण और भाट गफलत में है। विभ्र्म है उनके सामने। वे सोचते हैं कि -मोदी को सराहूं या राहुल को ? शिंदे को सराहूं या उद्धव ठाकरे को। ममता को सराहूं या बंगाल के राज्य पाल को ? यानि ये यक्ष प्रश्न है कि कौन ? किसे सराहना चाहता है और सराहना चाहता है ?
@ राकेश अचल
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