झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद विभिन्न राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। राज्य में लगभग 19 सीटें ऐसी हैं जहां हल्का से भी वोटों में स्विंग चुनाव के नतीजों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है।
साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में इन 19 सीटों पर हार-जीत का अंतर 5000 से कम मतों का था। इन 19 में से अधिकतर सीटें भाजपा-आजसू गठबंधन के खाते में आई थीं। ऐसे में यदि इन सीटों पर यदि हल्का सा भी वोटिंग पैटर्न में बदलाव होता है तो भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। एक विश्लेषण के अनुसार साल 2014 में राज्य की 23 फीसदी सीटों पर हार-जीत का फासला 5000 से कम वोटों का था।
इन सीटों में बड़कागांव, टोरपा, सरायकेला, जामा, नीरसा, भवनाथपुर, बागोडर, लोहरदग्गा, डाल्टनगंज, पनकी, सिमडेगा, टुंडी, राजमहल, बोरियो, सिसई, गुमला, दुमका, जारमुंडी और मनिका शामिल है। इनमें से 5 सीटें ऐसी थी जिन पर हार जीत का अंतर 1000 से कम मतों से हुआ था।
इसी तरह 5 अन्य सीटों पर हार और जीत का अंतर महज 1000-2000 वोटों के बीच था। साल 2014 में करीबी मुकाबलों वाली 19 सीटों में अधिकतर भाजपा-आजसू गठबंधन के हिस्से में आई थीं। इनमें से भाजपा को 8 और आजसू को 2 सीटें मिली थीं। वही विपक्षी दलों, कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 3-3 सीटों पर जीत हासिल की थी।
विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन की बात करें तो 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य की 81 सीटों में भाजपा ने सबसे अधिक 35 सीटें जीती थीं। इससे पहले 2009 में भाजपा के खाते में महज 18 सीटें आई थीं। उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 17 सीटें जीती थी। वहीं ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन को 5 सीटें मिली थीं। 18 सीटें अन्य के खाते में आई थीं। साल 2014 में भाजपा के वोट शेयर में 2009 के 20 फीसदी के मुकाबले 11 फीसदी की बढ़तरी हुई थी।
भाजपा को 2014 में 31 फीसदी मत मिले थे। वहीं, जेएमएम के वोट शेयर में भी साल 2009 के मुकाबले 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। साल 2009 में जेएमएम को 16 फीसदी जबकि साल 2014 में 20 फीसदी मत मिले थे। वहीं 2009 के मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर 12 फीसदी से घट कर 10 फीसदी पर आ गया था।