पश्चिम बंगाल में हुए कंचनजंगा रेल हादसे के लिए मै कांग्रेस की तरह रेल मंत्री अश्विनी वैश्य को जिम्मेदार नहीं मानता । मेरे ख्याल से इस हादसे के लिए केवल और केवल भगवान जिम्मेदार है क्योंकि रेल उन्हीं के भरोसे ही चल रही है। ये देश भूल चुका है कि देश में कोई रेल महकमा भी है और उसका कोई मंत्री भी होता है। पिछले दस साल से चूंकि हर नई रेल सेवा की हरी झंडी केवल अविनाशी भगवान के हाथ से ही हिलते हुए देखी है इसलिए मै जिम्मेदार भी उन्हीं को मानता हूँ।
नया इतिहास बनाने और पुराने इतिहास को बदलने की बीमारी से ग्रस्त सरकार ने सात साल पहले 2017 में रेल बजट को आम बजट में मिला दिया था । इस ऐतिहासिक फैसले के बाद रेल मंत्रालय और रेल मंत्री की हैसियत अपने आप समाप्त हो गयी। आजादी के बाद से लेकर 2017 तक यानि कुल 70 साल तक रेल मंत्रालय का बजट अलग आता था । आम बजट से पहले आता था और रेल बजट का भी उसी बेसब्री से इंतिजार किया जाता था जितना कि आम बजट का किया जाता था। रेल भारत का सबसे बड़ा महकमा जो ठहरा। लेकिन 2017 में देश के लिए रेल अचानक महत्वहीन हो गयी। जिस रेल के महकमे के पास १२ लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं वो रेल महकमा बेजान मान लिया गया ।
इसलिए तत्कालीन वित्तमंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली को रेल बजट को आम बजट में विलीन करना पड़ा। सरकार की मंशा के आगे जेटली की भला क्या चलती। आखिर चलती का नाम गाडी जो होता है।
स्वतंत्र भारत में जान मथाई से लेकर आज के अश्विनी वैष्णव तक कुल 40 रेल मंत्री हुए लेकिन जैसी फजीहत भारत के भाजपा शासनकाल में रेल मंत्रियों कीहुई किसी किन्हीं हुई। डीवी सदानंद गौड़ा,सुरेश प्रभु और पीयूष गोयल को भी देश रेल मंत्री के रूप में जानता था ,लेकिन 2019 के बाद से कौन किस विभाग का मंत्री है ये पता ही नहीं चलता क्योंकि सबके ऊपर अविनाशी जी है । वे ही हरी झंडी दिखते हैं ,वे ही नारियल फोड़ते हैं ,वे ही भूमिपूजन और उद्घाटन करते है। रेल मंत्री की तो छोड़िये पिछले पांच साल में तो राष्ट्रपति की भी कोई हैसियत इस देश में नहीं रही। बहरहाल बात रेल महकमे की चल रही था । कांग्रेस के जमाने में अंतिम रेल मंत्री रहे श्री मल्लिकार्जुन खरगे साहब का कहना है कि हमारी भाजपा सरकार ने रेल महकमे का कबाड़ा कर दिया है। एक पूर्व रेल मंत्री यदि कोई आरोप लगता है तो कोई माने या न मने हम तो मानते हैं कि उसकी बात में कोई दम होगा।
हम उन लोगों में से हैं जिन्होंने ललित नारायण मिश्र ,कमलापति त्रिपाठी,मधु दंडवते,टी ऐ पई ,केदार पण्डे ,प्रकाश चाँद सेठी ,एबीए गनी खान चौधरी, चोधरी बंशी लाल ,मोहसिना किदवई,माधवराव सिंधिया,जार्ज फर्नाडिस ,जनेश्वर मिश्र ,सीके जफर शरीफ,रामविलास पासवान ,नीतीश कुमार ,राम नाइक ,ममता बनर्जी ,लालू प्रसाद , दिनेश त्रिवेदी, मुकुल राय ,सीपी जोशी ,और मल्लिकार्जुन खड़गे को रेल मंत्री के रूप में देखा ह। कुछ रेल मंत्रियों से तो हमारा सीधा दोस्ताना भी रहा ,लेकिन इनमें से किसी ने अपनी हरी झंडी अपने आकाओं को फुल टाइम के लिए नहीं सौंपी। सबने अपने ढंग से रेल महकमे को नयी ऊंचाइयां दीं। अनेक रेल मंत्रियों के कार्यकाल में घपले-घोटाले भी हुए लेकिन रेल मंत्रालय का स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार रहा ,लेकिन जब से रेल बजट आम बजट में विलीन हुआ है ,तभी से रेल मंत्रालय भी जैसे अस्तित्वहीन हो गया। भारत की रेल अब आम आदमी की रेल नहीं रही। दिनेश त्रिवेदी तो उन रेल मंत्रियों में से थे जिन्हे रेल बजट पेश करते हुए इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि वे रेल को जनता कि रेल बनाना चाहते थे। वो किस्सा अलग है।
सरकार जो कुछ करती है सोच-समझकर करती है । भाजपा सरकार ने रेल बजट को भी आम बजट में नीति आयोग की सिफारिश पर मिलाया। लेकिन इसका खमियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है । देश में रेल सेवा इतनी अस्त-व्यस्त है की लिखना कठिन है । भारत के रेलवे स्टेशन पांच सितारा बनाये जा रहे है। लेकिन रेल स्वयं का स्तर लगातार गिर रहा है। पैंसेंजर रेलों और जनता डिब्बों की संख्या में लगातार कमी की जा रही ह। अब देश के अधिकांश छोटे रेल स्टेशनों पर कोई रेल नहीं रूकती। दूर-दराज के गावों को जोड़ने वाली पैसेंजर रेलों को जान-बूझकर बंद कार दिया गया है। सरकार का सारा ध्यान रेल को ख़ास लोगों की रेल बनाने पर है । रेल किराये-भाड़े में अंधाधुंध इजाफा और रेल रियायतों में लगातार कटौती ने जनता का सहाय बना दिया है । सड़क परिवहन टोल टैक्स की वजह से पहले से ही मंहगा है। और ले-देकर रेल बची थी उसे भी सरकार ने जनता के लिए अलभ्य कर दिया।
मुझे याद है कि 2022 में कुल 140367.13 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। रेलवे के बजट में सरकार ने बढ़ोतरी की थी। तब 20 हजार करोड़ से अधिक की बढ़ोतरी रेल बजट में हुई इसी दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा था कि अगले 3 सालों में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लैस 400 वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा। पिछले रेल बजट के एलान के दौरान वित्तमंत्री ने राष्ट्रीय रेल योजना 2030 की भी घोषणा की थी। इस योजना के तहत रेलवे के विकास के लिए प्लान तैयार किया गया। इसमें रेल सुविधाओं को नया रूप दिये जाने का एलान किया गया था। इसके लिए केंद्र ने एक लाख करोड़ के निवेश करने की बात की थी. दिसंबर 2023 तक रेलवे की बड़ी लाइन का 100 फीसदी विद्युतीकरण पूरा कर लिया जाएगा।
निसंदेह रेल के क्षेत्र में सरकार लगातार काम कर रही है लेकिन ये काम जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं है। मैंने दुनिया कि तमाम बड़ी रेल सेवाओं का सुख भोगा है। इस बिना पर मै कह सकता हूँ कि हमारे लिए अभी रेल सेवन को विश्व स्तरीय बनाना किसी ख्वाब से कम नहीं है । हम वंदे और नमो रेलों में ही उलझे रहेंगे । डिब्बों के रंग केसरिया करते रहेंगे ,लेकिन न बुलट ट्रेन चला पाएंगे और न पैसेंजर रेलें । सरकार के पास इस बात का कोई जबाब नहीं है कि आबादी के अनुपात में पैंसेंजर रेलों कि संख्या में कितनी बृद्धि कि गई ? हकीकत ये है कि पैसेंजर रेलों कि संख्या लगातार कम कि जा रही है । सरकार रेलों को जनता कि सुविधा के लिए नहीं बल्कि अपनी आमदनी और अपनों को लाभ देने के लिए चलना चाहती है ,इसीलिए रेल दुर्घटओं कि संख्या बढ़ रही है । रेलों के ऐसी फेल हो रहे है। उनमें आग लग रही है । रेल फाटकों पार हादसे बढ़ रहे हैं ,लेकिन सरकार के आंकड़े इन सबको झुठला देते हैं।
भविष्य में कंचनजंगा जैसे हादसों कि पुनरावृत्ति न हो इसके लिए सरकार के साथ ही आपको भगवान से भी प्रार्थना करना पड़ेगी अन्यथा भारत में रेल सफर कष्टप्रद,उबाऊ,झिलाऊ और महंगा ही होता जायेगा । देश के सीनियर सिटीजन ,महिलाएं रियायत के लिए रिरियाते ही रह जायेंगे। सरकार ने कोविड काल में जनता से जो कुछ छीना था उसे वो शायद ही कभी वापस करे।जनरल डिब्बों में शीतल जल और स्टेशन पर कुल्हड़ में सत्तो का मिलना भी अब एक ख्वाब जैसा है।
@ राकेश अचल
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