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नतीजों से पहले नए यादवत्व की स्थापना@राकेश अचल

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

देश में 4 जून को आने वाले लोकसभा चुनाव परिणामों से पहले सत्तारूढ़ दल में नए प्रयोग तेजी से चल रहे है । सत्तारूढ़ दल हाल ही में संघ से छोड़-छुट्टी का ऐलान कर ही चुका है और अब लगता है कि भाजपा ने पार्टी की सरकारों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विकल्प के तौर पर मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को नए यादव नेता के रूप में स्थापित करने की मुहिम शुरू कर दी है। भाजपा और उसके नेतृत्व वाला गठबंधन चाहे सरकार बना पाए या न बना पाए लेकिन अब उसे योगी जी किसी भी सूरत में बर्दाश्त होने वाले नहीं है।

पिछले दो महीने की गतिविधियों की समीक्षा के बाद ये तथ्य सामने आया है कि मोशा की जोड़ी 4 जून के बाद यदि सबसे पहले किसी के आभामंडल को कम करेगी तो वो होंगे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। योगी जी ने अपने तरीके से उत्तर प्रदेश को बनाया है और और प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में उनका कथित सुशासन मॉडल की तरह लोकप्रिय हो रहा है ,और यही मोशा की जोड़ी को बर्दाश्त नहीं। लोकसभा चुनावों के हर चरण में भाजपा प्रत्याशियों ने यदि मोशा के बाद किसी नेता की मांग की है तो वो नाम है योगी आदित्यनाथ का। अब नाथ मोशा के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी बनकर उभरे हैं। पहले उनकी जगह केन्दीय मंत्री नितिन गडकरी का नाम सबसे ऊपर लिया जाता था।

जानकार बताते हैं कि चुनाव के पांचवें चरण के बाद जहाँ-जहाँ से योगी की मांग आयी,वहां-वहां मोशा की जोड़ी ने विकल्प के तौर पर मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को भेजा । खासतौर पर यादव बाहुल्य वाले राज्यों और चुनाव क्षेत्रों में। मोहन यादव हालाँकि अभी प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह आम जनता के मामा नहीं बन पाए हैं किन्तु भाजपा नेतृत्व उन्हें योगी के स्थान पर पार्टी का नया यादव नेता बनाने में जरूर रूचि ले रही है। डॉ मोहन यादव ने भी योगी की तरह प्रदेश में अल्पसंख्यक को हड़काना शुरू कर दिया है । हाल ही में उन्होंने प्रदेश के मुस्लिमों को चेतावनी दी है कि यदि किसी ने भी सड़कों पर नमाज पढ़ने की कोशिश की तो उसकी खैर नहीं।

डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बने छह महीने से ज्यादा का समय हो गया है,लेकिन उनकी पहचान अभी तक मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित नहीं हो पायी है ,लेकिन एक यादव नेता के रूप में स्थापित होने में उन्हें ज्यादा कामयाबी मिली है। मोशा की जोड़ी ने उन्हें अप्रत्याशित रूप से शिवराज सिंह चौहान की जगह मप्र का मुख्यमंत्री बनाया था ,जबकि राज्य विधानसभा का चुनाव चौहान के चेहरे और उनकी सरकार की उपलब्धियों के आधार पर ही लड़ा गया था । कहा जाता है कि शिवराज सिंह का कद एक मुख्यमंत्री के रूप में तो बड़ा हो ही चुका था लेकिन वे लोगों को [ पार्टी के भीतर भी और बाहर भी ] प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी का विकल्प लगने लगे थे ,इसलिए उन्हें राज्य सत्ता से बेदखल कर दिया गया । अब वे पहले की तरह मात्र एक लोकसभा सदस्य की हैसियत में रहेंगे । सरकार बनने पर जरूर उन्हें नरेंद्र सिंह तोमर के प्रदेश वापस आने से हुई रिक्त कुर्सी दी जा सकती है।

चुनाव के छठवें चरण को पार कर चुकी भाजपा का नेतृत्व इस बात को लेकर बहुत सतर्क है की पार्टी में कोई भी चूहे से बिल्ली बनकर मोशे की जोड़ी की तरफ म्याऊं न करे। मोशा कोई जोड़ी ने चुन-चुनकर चूहे से बिल्ली बनने की कोशिश कर रहे तमाम नेताओं को कमजोर कर दिया है। चूहों को बिल्ली बनाने वाले आरएसएस से भी मोशा ने तर्के -ताल्लुक करने के संकेत दे दिए हैं। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्ढा के जरिये ये कहलाया जा चुका है कि भाजपा को अब संघ की जरूरत नहीं है। संघ अपनी बिल्ली को अपने ऊपर म्याऊं करते हुए देखकर खुद सन्निपात में हैं। संघ नेतृत्व को खुद ये आशंका है कि यदि 4 जून के बाद भाजपा फिर से बहुमत में आयी तो मोशा संघ को ही कहीं अपना चूहा न बना ले ! संघ की पशोपेश देखते ही बनती है।

अब तक मिले संकेतों से लगता है कि भाजपा का सत्ता में बने रहना आसान नहीं है ,किन्तु ‘ मोदी है तो मुमकिन है ‘ के नारे के साथ भाजपा सत्ता सिंहासन पहुंच भी सकती है। पिछले साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने ये चमत्कार करके दिखा भी दिया था। जब पूरा देश पांच में से तीन राज्यों में कांग्रेस की वापसी का राग अलाप रहा था तब भाजपा ने पांच में से चार पर अपना कब्जा बना लिया था। तमाम अटकलें गलत साबित हो गयीं थीं। मुमकिन है कि लोकसभा चुनाव में भी यही सब फिर से दोहराया जाये। आखिर भाजपा को 400 पर करना है।

बहरहाल अभी सभी की नजर 25 मई को समाप्त हुए मतदान के छठवें चरण के बाद अंतिम चरण पर टिकी हुईं है।अंतिम चरण में जिन राज्यों में मतदान होना है उन राज्यों की यादव बाहुल्य वाली सीटों पर मोशा मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रही है । योगी से भी ज्यादा महत्व मोहन जी को दिया जा रहा है । खुद योगी जी भी इस तब्दीली को महसूस कार रहे हैं। अब देखना ये होगा कि देश में अगला मॉडल गुजरात का चलेगा या उत्तर प्रदेश का ? उत्तर प्रदेश का चलेगा या मध्यप्रदेश का ?आप भी इस तब्दीली पर नजर रखियर और बताइये की आपको या महसूस होता है ?
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

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