@शब्द दूत ब्यूरो (29 अप्रैल 2024)
काशीपुर । दिवंगत कवियत्री अपूर्वा कुशवाह के द्वितीय काव्य संग्रह मानस पटल का विमोचन बीती शाम यहाँ रामनगर रोड स्थित एक होटल में संपन्न हुआ। काव्य संग्रह का विमोचन साहित्यिक संस्था दर्पण द्वारा आयोजित एक काव्य संध्या में किया गया।
साहित्य दर्पण की मासिक काव्य संध्या का आयोजन डा. पुनीता कुशवाहा के सौजन्य से किया गया। उनकी दिवंगत पुत्री अपूर्व कुशवाहा घनाक्षरी के द्वितीय कविता संग्रह मानस पटल का विमोचन समारोह की अध्यक्षता डॉक्टर यशपाल सिंह रावत तथा संचालन ओम शरण आर्य चंचल ने किया। समारोह का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। सर्वप्रथम सरस्वती वंदना कुमारी अनुश्री भारद्वाज ने मधुर स्वर में प्रस्तुत की ।
इस अवसर पर कवियों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया। कवि जितेंद्र कुमार कटियार- लड़ सकती हूं मैं भी तुमसे, दुर्गा की अवतारी हूं, ना समझो तुम अबला मुझको, मैं हिंदुस्तां की नारी हूं। कवि डॉ सुरेंद्र शर्मा मधुर-तेरी जो भी यह शान है प्यारे, दर्द का ही समान है प्यारे। कवि कैलाश चंद्र यादव- तेरी हर बात अच्छी है तेरा हर काम अच्छा है, मगर कैसे कह दूं मैं की दिल का तू सच्चा है। कवि मुनेश कुमार शर्मा- कर्म आदमी को इंसान बना देते हैं, कर्म ही है उसको शैतान बना देते हैं। कवि डा. यशपाल रावत पथिक- अभिलाषा हो आशा तुम हो, मेरे मन की भाषा तुम हो, अल्लाहादित करती हर सुख से, सुख की अजब पिपासा तुम हो । कवि ओम शरण आर्य चंचल- वाटिका में चलो घूम आये प्रिये, क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले, गीत हर प्यार का आओ गायें प्रिये क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले। कवि कुमार विवेक मानस- ज़रा ज़रा सी बातों पर परिवार बदलते देखे हैं, खून के गहरे रिश्तों के व्यवहार बदलते देखे हैं। कवि प्रतोष मिश्रा-हमको ये लगता है हम ज्ञानी हो गए, जब से हमने बेटी पाई हम अभिमानी हो गए। कवि गंगाराम विमल- आपकी राहों पर निगाहें गड़ा के रोता रहा, आंखें पथरा गई हैं इसका मूल्य क्या देंगे। कवि शेष कुमार सितारा-आज हमारे मन ने सोचा कुछ पिछली अपनी यादों में जी लें। कवि हेमचंद्र जोशी- अब किसको याद करके बुलाते हो पिताजी, मेरे बिना आप कैसे रह पाते हो पिताजी। कवि वी. के. मिश्रा- संगीत का मेला है तुम गीत बन के आना, आकर के फिर ना जा बस दिल में समा जाना। कवित्री डॉक्टर सविता पांडे- आग जलाओ तपन नहीं हो, वर्पन हो पर घर्षण ना हो, दही जमे और माखन निकले, पर उसमें कोई मंथन ना हो। कवि राम अवतार वर्मा राम- रोते-रोते कट गए रास्ते हंसते-हंसते जाना है और ना कोई दूजी इच्छा एक तुझे ही पाना है।
कवि कैलाश जोशी पर्वत- सुकवि रे गीत लिख ऐसा कि उर उत्साह भर जाए, पढ़े जन शब्द जो तेरे दुखों को दूर कर जाए। कवित्री डॉक्टर रीता सचान- सृष्टि की संरचना नवजीवन जनना छूट गया कुछ मगर आगे है बढ़ाना, झंझावातों से न कभी हारी हूं शक्ति हूं उससे पहले मैं एक नारी हूं। कवित्री कु. अनुश्री भारद्वाज- है धरोहर बन गए शब्द मेरे अमृत्व के, मैं सदा जीवित रहूंगी कृतियों में सदा मेरे। श्रीमती मंजुल मिश्रा स्वप्न जो संजोये मैंने आंखों की चादर में, भर दिया तूने उस मंथन को एक छोटी सी गागर में।
काव्य संध्या में बी.पी. कोटनाला, बी. डी. पांडे, डा. इशा रावत, डा. संतोष कुमार पंत, डॉ. स्नेह लता मौर्या, श्रीमती रागिनी शर्मा, श्रीमती कुमकुम सक्सेना, श्रीमती रचना माथुर, श्रीमती किरण चौहान, विनोद भगत नवल सारस्वत, विश्वास कुशवाहा, श्रीमती सावित्री कुशवाहा, ज्ञानेंद्र कुमार सक्सेना, डॉक्टर महेंद्र जोशी, अर्चना, आरती कुशवाहा, ज्ञानेंद्र सिंह हिंदुस्तानी, राजेंद्र सिंह रावत,डा. शकीबा ज़बीन सिद्दीकी डॉक्टर रीता देवी आदि उपस्थित थे।