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‘खामोश’ कितना फिल्मी, कितना पॉलिटिकल… शत्रुघ्न सिन्हा ने पहली बार कब बोला ये डायलॉग?

@शब्द दूत ब्यूरो (27 अप्रैल 2024)

खामोश…! बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा इस सिग्नेचर डायलॉग डिलीवरी के लिए विख्यात हैं. शायद फिल्मों में लोगों ने उनको जितनी बार खामोश बोलते नहीं देखा-सुना होगा, उससे कहीं ज्यादा वो टीवी इंटरव्यूज में खामोश बोलते देखे-सुने गए हैं. सिनेमा से सियासत में आए हैं लिहाजा उनका यह डायलॉग जितना फिल्मी है, उतना ही पॉलिटिकल भी. अनेक मौकों पर कइयों को खामोश कर चुके हैं तो कई बार खुद भी खामोश हुए हैं. सवाल फिल्मी हो,राजनीतिक या फिर पर्सनल- जिसका वो जवाब नहीं देना चाहते, उसके आगे खास अंदाज में बोलते हैं- खामोश…! इसके बाद फिर एक जोरदार ठहाका. यही उनका स्टाइल है. पर्दे पर जितने मस्तमौला, राजनीति के मैदान में भी उतने ही मेलोड्रामाई. लेकिन इस खामोश की भी अपनी एक कहानी है.

कहते हैं हर स्टाइल की कहीं ना कहीं से शुरुआत होती है. लिहाजा इस ‘खामोश’ का भी अपना आरंभ है जो प्रचंड बना हुआ है. आखिर शत्रुघ्न सिन्हा ने फिल्मी पर्दे पर पहली बार कब बोला ‘खामोश’ डायलॉग? यकीन मानिये इसका जवाब खुद शत्रुघ्न सिन्हा के पास भी नहीं है. कई सार्वजनिक मंचों पर उनसे यह सवाल किया जा चुका है लेकिन हर बार उनका एक ही जवाब- याद नहीं. अगर आप लोग इसे खोजकर निकाल सकें तो हमें भी बताएं. हालांकि ‘खामोश’ बोलने की उनकी ये शैली एक दिग्गज फिल्मी हस्ती से प्रेरित है, जिसका उन्होंने बखूबी जिक्र किया है, लेकिन इसे सदाबहार अंदाज देने की शुरुआत आखिर कब से हुई, आइये इसे खोजते हैं.

किस्सा-ए-एनीथिंग बट खामोश

आमतौर पर फिल्मी सितारे राजनीतिक रोल बहुत गंभीरता से नहीं निभाते लेकिन बिहारी बाबू उनमें से नहीं. उन्होंने संसदीय राजनीति के मिजाज को बखूबी समझा और संसद से सड़क तक अपने भीतर और बाहर सियासी तापमान को बरकरार रखा. जब-जब बोलना जरूरी समझा, खामोश नहीं रहे. 1991 में राजनीति में प्रवेश के बाद से ही जितने सिनेमाई रहे उतने ही सियासी भी. दस्तक दिल्ली में दी लेकिन दिल बिहार के लिए धड़कता था. फिलहाल बिहार के बदले बंगाल से आवाज बुलंद कर रहे हैं. वो ऐसे फिल्म कलाकार हैं, जो दो बार केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. लिहाजा पब्लिक लाइफ में उनकी हर संवादअदायगी का खास मतलब है. आगे चलकर उनका यह सिग्नेचर डायलॉग उनकी पर्सनाल्टी का हिस्सा बन गया. व्यक्तित्व का यह प्रभाव बियॉन्ड द स्क्रीन था. यही वजह है कि जब भारती प्रधान ने अंग्रेजी में उनकी ऑटोबायोग्राफी लिखी तो उसका टाइटल भी रखा गया- एनीथिंग बट खामोश.

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