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जिला चापलूसनगर के चाटुकार शहर के किस्से – 1, एक किस्सागोई

व्यंग्य 

एक जिला काफी चर्चाओं में आ गया। चापलूसनगर अपने आप में अनोखा जिला बनकर लोगों के सामने आ गया। जब जिले का नाम चापलूसनगर हो तो फिर शहर पर भी प्रभाव पड़ा और इस चापलूसनगर जिले में एक शहर चाटुकार शहर घोषित कर दिया गया। चापलूसनगर और चाटुकार शहर नाम पड़ने के पीछे यहां के निवासियों का सबसे बड़ा योगदान है। 

चापलूसनगर जिले में चापलूसी अपने चरम पर पहुंच गयी थी।दरअसल इस जिले में जब भी कोई अधिकारी तबादला होकर आता तो उसका प्रमुख ध्येय होता कि वह इस जिले में बेहतर प्रशासन देगा। लेकिन जिले में आते ही उस अधिकारी को तेज तर्रार और कर्मठ की उपाधि मिल जाती। अधिकारी भी हैरत में पड़ जाते कि अभी तो मेरी कार्यशैली देखी नहीं और मुझे तमगे पर तमगे मिल रहे हैं। ऐसे में अधिकारी भी समझ जाते कि इस जिले में काम की कोई कीमत नहीं है। तो फिर ख्वामखां काहे को अपना दिमाग लगाये। तमाम संगठन अधिकारी के स्वागत में बुके लेकर पहुंच जाते और अधिकारी की प्रशंसा के पुल बांध देते।

ऐसे लोगों और संगठनों जिनमें राजनीतिक और सामाजिक संगठन भी शामिल हैं, में सबसे ज्यादा संख्या चापलूसनगर जिले के चाटुकार शहर की थी। इस विचित्र शहर को देखने की अधिकारी ने ठानी। तुरंत अपने सरकारी वाहन से अधिकारी जी चाटुकार शहर के दौरे पर निकल पड़े। शहर के भीतर सीमा में प्रवेश करते ही उन्हें गड्ढे, सड़कों पर गंदगी, रेलवे क्रासिंग पर भयंकर जाम दिखाई दिया। अधिकारी महोदय को लगा कि चाटुकार शहर के लोग इन समस्याओं से निजात पाने के लिए उनसे दरख्वास्त करेंगे और वह गंभीरता से उन्हें सुलझाने का प्रयास करेंगे।

खैर जाम से जूझते और भारी अतिक्रमण वाली सड़कों से गुजरते हुए अधिकारी महोदय चाटुकार शहर में तैनात अपने मातहत स्थानीय अधिकारी के कार्यालय में पहुंचे। जहाँ अपने स्वागत की तैयारी देखकर वह अवाक रह गये। शहर भर के तमाम संगठन वहां पहले से ही मौजूद थे। हर संगठन उनका स्वागत करने और उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए आतुर नजर आ रहा था।

एक मंच सजाया गया था। दरअसल चाटुकार शहर के लोगों को मंच सजाने और स्वागत करने का बड़ा शौक था। मंच पर संबोधन के दौरान संगठनों के प्रतिनिधि अधिकारी महोदय के सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। अनेक बार तो अधिकारी अपने अंदर उन गुणों और खूबियों को ढूंढने की कोशिश कर रहे थे जो उनके सम्मान में चाटुकार शहर के लोग बता रहे थे।

इस दौरान अधिकारी महोदय इस बात का इंतजार करते रहे कि चाटुकार शहर का कोई तो बंदा ऐसा होगा जो शहर की समस्या उनके सामने रखेगा लेकिन लगता था कि चाटुकार शहर के लोगों को समस्या से दिक्कत की जगह उनके सम्मान में कसीदे गढ़ने की ज्यादा फिक्र थी। 

बहरहाल चापलूसनगर के इस नये अधिकारी के लिए यह अलग ही अनुभव था। अभी तो ये शुरूआत थी उनके लिए। आगे के किस्से अगली किश्त में

डिस्क्लेमर – यह एक काल्पनिक किस्सागोई है। इसका किसी वास्तविक शहर या अधिकारी या लोगों से संबंध नहीं है। यह संयोग हो सकता है कि आपको यह किस्से वास्तविक लगे। (विनोद भगत – संपादक) 

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