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पहले चरण में कम मतदान प्रतिशत भाजपा के लिए खतरे की घंटी या..? देखिए वीडियो विश्लेषण

@शब्द दूत ब्यूरो (20 अप्रैल 2024)

नयी दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में कम प्रतिशत मतदान के क्या मायने हैं? क्या ये सत्ताधारी भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। पार्टी की इतनी जी-तोड़ मेहनत के बावजूद आम मतदाता मतदान केंद्रों तक कम संख्या में क्यों पहुंचा?

इसका एक कारण यह रहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं में पूरा आत्मविश्वास था कि उसका वोटर भारी संख्या में वोट करेगा। इसलिए इस बार भाजपा की ओर से डोर टू डोर संपर्क करने की ज्यादा आवश्यकता महसूस नहीं की गई। हालांकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की कमोबेश यही स्थिति रही।

लेकिन कम मतदान से भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता बढ़ गई है। जब से राष्ट्रीय राजनीति में मोदी युग आया है तबसे लगातार वोट प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली थी। 2014 और 2019 के चुनाव के बाद यह पहली बार हुआ है कि मत प्रतिशत घटा है। अब यह भाजपा के लिए खतरा है या विपक्ष के लिए यह तो परिणाम ही बतायेंगे। उधर बीजेपी ने इस चुनाव को अपने लिए बड़की आसान मान लिया है। उसकी तरफ से इस बात के दावे लगातार होते रहे हैं कि पार्टी आसानी से लक्ष्य तक पहुंच जाएगी।

लोकसभा चुनाव के लिए 7 चरण में देश में मतदान होने हैं. पहले चरण के लिए देश की 21 राज्यों की 102 सीटों पर लगभग 64 प्रतिशत वोट डाले गए हैं। पिछले चुनाव की तुलना में मतदान का प्रतिशत इस चुनाव में कम देखने को मिला है। पिछले चुनाव में लगभग 70 प्रतिशत मतदान हुए थे. देश में त्रिपुरा को छोड़कर किसी भी राज्य में मतदान का आंकड़ा 80 प्रतिशत तक नहीं पहुंचा है। सबसे अधिक त्रिपुरा में 80.6 प्रतिशत वोट डाले गए। बंगाल में लगभग 78 प्रतिशत मतदान की सूचना है. वहीं पूरे देश में सबसे कम मतदान बिहार में देखने को मिला. बिहार में महज 47.50 प्रतिशत वोटिंग की खबर है। ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि वोटर्स मतदान केंद्र तक क्यों नहीं पहुंचे?

बीजेपी की तरफ से यह मान लिया गया था कि वह  अपने मजबूत राज्य यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पहले से ही बेहतर हालात में है।  वहीं उसे उम्मीद है कि इन राज्यों में वो एक बार फिर शानदार प्रदर्शन करेगी और 2014, 2019 की तरह ही शानदार प्रदर्शन करेगी। हालांकि मतदान प्रतिशत में हुई बड़ी गिरावट के बाद बीजेपी नेतृत्व की परेशानी बढ़ सकती है।

बीजेपी इस चुनाव में दक्षिण भारत को लेकर काफी उत्साहित रही है और वहां ज्यादा समय और ध्यान भी दिया है। मिशन साउथ को लेकर बेहद एक्टिव नजर आयी है।  पीएम मोदी की तरफ से दक्षिण के राज्यों में लगातार सभा की जा रही है। बीजेपी को 370 के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किसी भी हालत में दक्षिण भारत के राज्यों में भी उत्तर भारत की सफलता के साथ ही अच्छा प्रदर्शन करना होगा। हालांकि ऐसे में सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या मिशन साउथ के चक्कर में बीजेपी की तैयारी राजस्थान, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में कमी रह गयी।

बीजेपी के मजबूत राज्यों में भी वोटर्स में क्यों नहीं है। उत्साही? बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर लगभग 53 प्रतिशत मतदान हुए थे वहीं इस चुनाव में लगभग 47 प्रतिशत वोट ही पड़े हैं। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो इस चरण में जिन सीटों पर मतदान हुए हैं उन सीटों पर पिछले चुनाव में लगभग 67 प्रतिशत मतदान हुए थे। वहीं इस बार 57 प्रतिशत वोट ही पड़े हैं। मध्य प्रदेश में भी पिछले चुनाव की तुलना में इस चुनाव में वोट प्रतिशत में भारी गिरावट देखने को मिले हैं।

मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव में 75 प्रतिशत वोट डाले गए थे वहीं इस चुनाव में महज 63 प्रतिशत वोट पड़े हैं। राजस्थान में 2019 के चुनाव मे 64 प्रतिशत वोट पड़े थे वहीं इसबार यह आंकड़ा महज 57 प्रतिशत के आसपास रहा है।

पिछले 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिले है। जब-जब मतदान प्रतिशत में कमी हुई है 4 बार सरकार बदल गयी है। वहीं एक बार सत्ताधारी दल की वापसी हुई है. 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी। जनता पार्टी की जगह कांग्रेस की सरकार बन गयी। वहीं 1989 में एक बार फिर मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गयी और कांग्रेस की सरकार चली गयी। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी। 1991 में एक बार फिर मतदान में गिरावट हुई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गयी। 1999 में मतदान में गिरावट हुई लेकिन सत्ता में परिवर्तन नहीं हुआ। वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला।

हालांकि एक तरफ जहां कम मतदान को लेकर कुछ जानकार बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं।वहीं कुछ आंकड़ें बताते हैं कि चुनाव में कम मतदान होना इस बात के संकेत हो सकते हैं कि जनता बदलाव नहीं चाहती है। कई बार ऐसा राज्यों के चुनावों में देखा गया है कि जब बंपर वोटिंग हुई है तो सत्ता में बदलाव हुए हैं। सरकार को बदलने के लिए अधिक मतदान होते रहे हैं।कम मतदान का लाभ सत्ताधारी दलों को मिला है।

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