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भोले के जयकारों और मंत्रोचार के बाद बंद हुये चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट

-संजय चौहान

हेमकुण्ड साहिब के कपाट बंद होने के उपरांत चार धामों और पंच केदार के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। छह महीने के उपरांत शीतकाल के लिए चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट वैदिक मत्रोच्चार के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिये गये हैं। इस अवसर पर बाबा का धाम भोले के जयकारों से गुंजयमान हो गया। आज ही भगवान रुद्रनाथ जी की उत्सव विग्रह डोली अपने शीतकालीन प्रवास गोपेश्वर के गोपीनाथ के मंदिर में पहुंचेगी। इस दौरान सैकड़ो भक्त भगवान के आगमन पर उनकी आरती उतारेगें और दर्शन करेंगें। अब 6 महीने के बाद ग्रीष्मकाल में ही रूद्रनाथ के कपाट खुलेंगे।

रुद्रनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो कि पञ्चकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। यहाँ पूजे जाने वाले शिव जी के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ कहते हैं। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है, जहाँ शिवजी गर्दन टेढ़े किये हुए विराजमान हैं। माना जाता है कि, शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है, यानी अपने आप प्रकट हुई है और अब तक इसकी गहराई का पता नहीं लग पाया है। यहां भगवान शिव के रुद्र और शांत दोनों रूपों के दर्शन भक्तों को प्राप्त होते हैं। शीतकाल में बाबा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में भक्तों को 6 महीने तक दर्शन देते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पांडवों पर गोत्र हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव की आराधना की। मगर भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने भगवान शिव का पीछा किया तो उत्तराखंड के पंचकेदारों में भगवान शिव ने पांडवों को अपने शरीर के पांच अलग-अलग हिस्सों के दर्शन कराए। रुद्रनाथ में जब पांडवों को शिव के मुख दर्शन हुए तब जाकर उन्हें गोत्र हत्या से मुक्ति मिली।

सती पार्वती ने जब अपने पिता के यहां आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रण न देने का समाचार सुना तो उन्होंने आक्त्रोशित होकर उसी यज्ञ कुण्ड में अपने जीवन की आहुति दे दी।

रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि, यहां के सौन्दर्य को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। इसके चारों ओर शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार व मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा, ब्रह्मकमल भी यहां की घाटियों में बहुतायत में मिलते हैं।

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