@शब्द दूत ब्यूरो (16 अप्रैल 2024)
काशीपुर। रानीखेत से रोजगार की तलाश में 24 साल पहले काशीपुर आये राजेन्द्र प्रसाद तिवारी ने इन 24 सालों में नौकरी भी करी और खुद का छोटा मोटा व्यवसाय भी किया। नौकरी में आज लगी कल छूटी वाले हालात को देखते हुए उन्होंने खुद का कोई काम करने का निश्चय किया।काशीपुर में सैनिक कालोनी में रह रहे राजेन्द्र तिवारी से आज शब्द दूत से एक संक्षिप्त वार्ता हुई जिसमें उन्होंने अपने संघर्ष और मेहनत की कहानी बताई।
उनके पास हुनर तो था लेकिन कोई काम करने के लिए पैसे की भी आवश्यकता थी। लेकिन राजेन्द्र तिवारी ने हिम्मत नहीं हारी और सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया। काम तो काम था। पर राजेंद्र तिवारी के हौसले बुलंद थे। उनके पास खाना बनाने का हुनर था। उन्हें पर्वतीय समाज के घरों में आयोजित होने वाले धार्मिक समारोहों में भोजन तैयार करने का काम मिलने लगा। दरअसल राजेन्द्र तिवारी उन घरों में उन लोगों के लिए खाना बनाते थे जो कि पर्वतीय घरों में भीतर की रसोई में बने ख़ाना ही खाते थे। राजेन्द्र तिवारी ऐसे समारोहों में सौ डेढ़ सौ लोगों के लिए खाना बनाया करते। इसी दौरान जब वह बड़े कैटरिंग वालों को उसी कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों के लिए खाना बनाते देखते तो उनके मन में आया कि जब वह सौ डेढ़ सौ लोगों के खाना बना सकते हैं तो इन कैटरिंग वालों की तरह खुद अपने व्यवसाय को वृहद रूप क्यों नहीं दे सकते?
यहीं से राजेन्द्र तिवारी ने अपने सपनों को साकार करना शुरू कर दिया। थोड़ी बहुत पैसे की समस्या उनकी एक कमेटी की सदस्यता से दूर हो गई। जहां पैसे जमा होते और उसके सदस्यों को मामूली ब्याज पर ऋण मिल जाता और फिर राजेन्द्र तिवारी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे धीरे उन्हें कैटरिंग के बड़े काम मिलते गये। उनके भोजन की गुणवत्ता और स्वाद ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ा दिया। आज राजेन्द्र तिवारी कैटरिंग के व्यवसाय में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। जो राजेन्द्र तिवारी कभी नौकरी करते थे और कभी सब्जी भी बेची आज वह संतोषजनक रूप से अपने व्यवसाय में आगे बढ़ रहे हैं, अपने साथ कुछ अन्य लोगों कारीगरों को भी रोजगार दे रहे हैं।
राजेन्द्र तिवारी सफलता की ओर बढ़ रहे हैं और इस सफलता में उन्हें अपने परिवार खासकर पुत्रों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।