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गढ़वाल लोकसभा सीट: सैनिक बाहुल्य सीट पर सियासी घमासान, जीत नहीं होगी आसान

@शब्द दूत ब्यूरो (26 मार्च, 2024)

उत्तराखंड की गढ़वाल लोकसभा सीट को सैनिक बाहुल्य सीट भी माना जाता है। आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड की इस लोकसभा सीट में सैनिक और पूर्व सैनिक काफी बड़ी मात्रा में वोट डालते हैं। यही वजह है कि इस बार ये माना जा रहा है कि सैनिक बाहुल्य इस सीट पर उलटफेर की संभावना है। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी चुनाव मैदान में हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस के गणेश गोदियाल ताल ठोक रहे हैं।

सैनिक बाहुल्य गढ़वाल संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश को दो और उत्तराखंड को पांच मुख्यमंत्री दे चुका है। मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, देश के पहले चीफ ऑफ आर्मी डिफेंस स्टाफ विपिन रावत और मौजूदा सीडीएस अनिल चौहान भी यहीं से हैं। कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने अदम्य साहस का प्रदर्शन किया था। इसी गढ़वाल सीट पर भाजपा हैट्रिक और कांग्रेस वापसी की जंग लड़ रही है।

बदरीनाथ-केदारनाथ की भूमि गढ़वाल ने 1973 में हेमवती नंदन बहुगुणा के रूप में यूपी को मुख्यमंत्री दिया था। यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यमकेश्वर, गढ़वाल से हैं। साथ ही उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र रावत और तीरथ रावत के रूप में पांच मुख्यमंत्री दे चुका है। उत्तराखंड के गठन के बाद भाजपा 2004, 2014 और 2019 में तीन बार यह सीट जीत चुकी है। इस बार भाजपा के पास हैट्रिक लगाने का मौका है। दूसरी और कांग्रेस को 2009 के आम चुनाव के बाद यहां जीत का इंतजार है, पार्टी यहां वापसी के लिए लड़ाई लड़ रही है।

गढ़वाल सीट पर कांग्रेस ने लगातार पांच बार जीत दर्ज की है। 1951 से 1967 तक लगातार चार बार भक्तदर्शन यहां से सांसद रहे जबकि 1971 में कांग्रेस के प्रताप सिंह चुनाव जीते। 1977 में आपातकाल के बाद कांग्रेस का तिलिस्म टूटा। तब भारतीय लोक दल के प्रत्याशी जगतनाथ शर्मा ने कांग्रेस के चंद्रमोहन सिंह नेगी को 1,04,583 मतों से हराया था। हालांकि, 1980 में कांग्रेस ने इस सीट पर एक बार फिर कब्जा कर लिया। हेमवती नंदन बहु‌गुणा इस पर पहली बार जीते थे।

इंदिरा गांधी से खटपट के बाद हिमालय पुत्र के नाम से मशहूर हेमवती नंदन बहु‌गुणा ने 1981 के अंत में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। साल 1982 में गढ़वाल सीट के लिए हुए उपचुनाव में बहुगुणा निर्दलीय मैदान में उतरे। उनका मुकाबला कांग्रेस के चंद्रमोहन सिंह नेगी से था। इंदिरा गांधी ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। पूरे देश की निगाहें इस चुनाव पर थी। अंततः कांग्रेस ने यहां पर कांग्रेस को पटखनी दी और वे चुनाव जीत गए।

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