विनोद भगत
काशीपुर /देहरादून। उत्तराखंड में अटल आयुष्मान घोटाले को लेकर दर्ज एफआईआर निरस्त की जा रही हैं। मामले में लगातार हो रही छीछालेदर से राज्य के अटल आयुष्मान योजना के अधिकारी बैकफुट पर आ गये हैं। ऊधमसिंह नगर के सभी सूचीबद्ध निजी चिकित्सालयों के विरूद्ध अटल आयुष्मान योजना के राज्य स्वास्थ्य अभिकरण के अध्यक्ष दिलीप कोटिया ने पुलिस महानिदेशक देहरादून को इस आशय का पत्र लिखा हैं कि कथित आरोपी चिकित्सालयों पर लगाये गये जुर्माना राशि जमा होने के बाद उनके विरुद्ध दर्ज एफआईआर की आवश्यकता नहीं रह गई है।
शब्द दूत दो सप्ताह पूर्व ही इस घोटाले में अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठा चुका है।
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बता दें कि शब्द दूत पहले ही लिख चुका है कि आयुष्मान घोटाले में अधिकारियों की बड़ी लापरवाही रही जिसके चलते यह घोटाला हुआ। जिन चिकित्सालयों को आयुष्मान योजना के अधिकारियों ने ही प्रशस्ति पत्र दिये और उनके बिल पास किये उन्हीं अस्पतालों के विरूद्ध एफआईआर दर्ज कराके खुद इस योजना के अधिकारी फंसते नजर आ रहे थे। उधर शब्द दूत तथा देहरादून के कुछ समाचार पत्रों में इस घोटाले को लेकर प्रकाशित समाचारों को केन्द्र में पीएमओ को भी ट्वीट किया गया था। माना जा रहा कि वहाँ से भी अधिकारियों से इस योजना को लेकर हो रहे घोटालों पर सवाल पूछे जा रहे थे। जिस पर स्थानीय अधिकारी जबाब नहीं दे पा रहे थे। इसके अलावा मामला तब केन्द्र में और चर्चा में आया जब इस मामले में सबसे लंबी एफआईआर दर्ज होने का शोर मचा।
अटल आयुष्मान योजना के राज्य स्वास्थ्य अभिकरण अध्यक्ष दिलीप कोटिया ने कहा है कि ऊधमसिंहनगर में इस योजना में सूचीबद्ध अस्पतालों में आस्था हास्पिटल काशीपुर, कृष्ण अस्पताल रूद्रपुर, अली नर्सिंग होम काशीपुर, देवकीनंदन अस्पताल काशीपुर, तथा एम पी मेमोरियल अस्पताल काशीपुर पर क्रमशः 168200 रूपये, 167400 रूपये, 478800 रूपये, 324550 रूपये तथा 1852700 रूपये का जुर्माना लगाया गया था। पत्र में कहा गया है कि इन सभी अस्पतालों ने जुर्माना राशि जमा कर दी है। इसलिए इनके खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस ले ली जाये।
पर अब सवाल उठता है इन सभी अस्पतालों की उस प्रतिष्ठा का जो इतने दिनों की कवायद में खराब हुई। जब जुर्माना जमा करने से मामला निपट रहा था तो एफआईआर दर्ज कराने में जल्दबाजी क्यों की गई? राज्य में काफी चर्चित इस घोटाले में अधिकारियों की भूमिका पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। गौरतलब है कि सभी अस्पतालों के बिल इस योजना के अधिकारियों ने ही पास किये थे। तो फिर खाली अस्पतालों पर ही कार्रवाई क्यों की गई? और फिर मामला वापस कैसे? दोषी अस्पताल हैं या अधिकारी?