
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक
सुर्खियां लगातार बदलती रहतीं है । कभी कोई सुर्खी में तो कभी कोई सुर्खी में। सुर्खियां आदि और अनंत हैं। इनके आगे हर कोई नतमस्तक है । मोदी जी की गारंटी की तरह सुर्ख़ियों की कोई गारंटी नहीं है। कौन सी सुर्खी ,कितने दिन तक सुर्ख रहेगी ये कोई नहीं जानता । परमात्मा भी नहीं। परमात्मा खुद सुर्ख़ियों में आता-जाता रहता है। आयाराम- गयाराम की तरह। 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा वाली सुर्खी केवल पांच दिन चल पायी। पांच दिन बाद ही इसकी जगह बिहार के गयाराम यानि नितीश बाबू ने ले ली।
भारतीय राजनीति में कामयाब रहने के लिए लगातार नयी सुर्ख़ियों की जरूरत पड़ती है। जो राजनीतिक दल इस हकीकत को जानता है वो कामयाब रहता है ,जिस राजनीतिक दल को सुर्खियां पैदा करना नहीं आता उसकी कामयाबी हमेशा संदिग्ध रहती है। अर्थात आप कह सकते हैं कि ‘ सुर्खी’ आज की राजनीति का अभिन्न अंग है। मुमकिन है कि सुर्ख़ियों को लेकर मेरी मान्यता से आप सहमत न हों किन्तु मै अपनी मान्यताओं से पीछे नहीं हटता यद्यपि मै अपनी मान्यताएं किसी पर थोपता भी नहीं हूँ।
दुनिया के बहुत कम देश और राजनीतिक दल ऐसे हैं जो सुर्ख़ियों से परहेज करते हो। फिलवक्त मुझे तो ऐसा कोई राजनीयतिक दल दिखाई नहीं देता । जैसे रहीमदास जी कहते थे कि – पानी बिन सब सून ‘ वैसे ही मै कहता हूँ कि सियासत में -‘ सुर्खी बिन सब सून ‘ है जहाँ सुर्खी नहीं वहां कुछ नहीं। सुर्खी सियासत का मुख्य अवयव है। जैसे शरीर का मुख्य अवयव रक्त है वैसे ही सियासत का मुख्य अवयव सुर्खी है । दोनों का रंग एक जैसा है। भारतीय राजनीति में सुर्ख़ियों में रहने की कला दुसरे दलों को कांग्रेस ने सिखाई थी ,लेकिन दुर्भाग्य से अब कांग्रेस खुद ही इस कला को भूल बैठी है। और इसका नतीजा भी आप साफ़ देख रहे है। कांग्रेस बीते एक दशक से सत्ता से बाहर है।
भारतीय लोकतंत्र में कामयाबी के लिए धर्मनिरपेक्ष्ता या धर्मपरायणता उतनी महत्वपूर्ण चीज नहीं है ,जितनी की सुर्खी में रहने की कला है । आज के दौर में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से ज्यादा कोई दूसरा जनता ‘ सुर्खीहस्त ‘ नहीं है। ‘ सुर्खीहस्त ‘शब्द ‘ सिद्धस्त ‘ बिरादरी में नया-नया शामिल कर रहा हूँ। आगे चलकर ये बहुप्रचलित भी हो सकता है। पिछले दस साल में माननीय मोदी जी ने देश को जितनी सुर्खियां दी हैं उतनी सुर्खियां नेहरू गांधी की तीन पीढ़ियां भी मिलकर नहीं दे पायीं। देश को सुर्ख़ियों के मामले में सबसे जयादा समृद्ध पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने किया था । वे अभूतपूर्व प्रधानमंत्री थीं । श्रीमती गांधी के बाद अनेक प्रधानमंत्री आये और चले गए लेकिन उनका मुकाबला यदि किसी एक ने किया तो वे हैं देश के 14 वे प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी। मोदी जी दो बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं और तीसरी तथा अंतिम बार प्रधानमंत्री बनने की तैयरी कर रहे हैं।
सुर्खियां बनाना फिर उन्हें बटोरना यदि किसी नेता को सीखना है तो उसे माननीय मोदी जी के गुरुकुल में दाखिला ले लेना चाहिए। मोदी जी खुद भी सुर्ख़ियों में रहते हैं और अपने पदचिन्हों पर चलने वालों को भी सुर्ख़ियों में बनाये रखते है। ताजा उदाहरण बिहार का है । मोदी जी यदि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे तो अपने अनुयायी नीतीश कुमार को भी उन्होंने नौवीं बार बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। नितीश इससे पहले आईएनडीआईए के संयोजक बनकर सुर्ख़ियों में आये थे ,लेकिन उन्हें उससे भी ज्यादा सुर्खी आईएनडीआईए से बाहर निकलकर माननीय मोदी जी के साथ खड़े होकर मिली है। नीतीश बाबू को इसके लिए मेरी समझ से अगले वर्ष ‘ भारतरत्न ‘ सम्मान मिलना चाहिए। कर्पूरी ठोकर के बाद वे ही बिहार के ऐसे एकमात्र नेता हैं जिन्होंने अपने परिवार को बढ़ने के बजाय किसी दुसरे के परिवार की फ़िक्र की। पहले लल्लुओ के परिवार को मौक़ा दिया और अब संघ परिवार को मौक़ा देने जा रहे हैं।
विषय से हटे बिना मै आपको बताना चाहता हूँ की जो सुर्ख़ियों में नहीं है उसे राजनीति छोड़ देना चाहिये । मेरा मश्विरा खासतौर पर ओडिशा के मुख्यमंत्री पटनायक साहब को है । उन्हें शायद सुर्ख़ियों से एलर्जी है। उनसे जायदा तो सुर्ख़ियों में ममता बहन रहतीं हैं,,माया बहन रहतीं हैं। कांग्रेस के राहुल गांधी भी अच्छेखासे सुर्खीबाज है। वे सुर्खियों के मामले में हमेशा माननीय मोदी जी को लगातार टक्कर देते रहते हैं उन्हें सुर्ख़ियों में रहना और सुर्खियां बटोरना आता है। जब मणिपुर जल रहा था [ आज भी जल रहा है ] तब मणिपुर न जाकर माननीय मोदी जी ने जितनी सुर्खियां बटोरीं थीं उससे जयादा सुर्खियां मणिपुर जाकर राहुल बाबा ने बटोर li थीं। आज भी राहुल बाबा भारत की सड़कों पर अपनी न्याय यात्रा के जरिये सुर्खियां बटोरने के अभियान में लगे हैं।
हकीकत ये है कि सुर्खियां निशुल्क नहीं मिलती । सुर्ख़ियों में रहने के लिए अंटी ढीली करना पड़ती है । नेता तो छोड़िये सुर्ख़ियों में रहने के लिए बाबाओं तक को अंटी ढीली करना पड़ती है । आप टीवी चैनल्स की सुर्खियां देखकर अनुमान लगा सकते हैं की कौन ,कितना खर्च करता है सुर्ख़ियों पर ? बेचारे रामदेव को भी पैसा देना पड़ता है सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए । आखरी बात ये है की आप जब एक सृखी प्रधान देश के मतदाता हैं तो आपको भी फैसला करते वक्त सुर्ख़ियों को ध्यान में रखना चाहीये । अनुमान लगना चाहिए की कौन सी सुर्खी झूठी है और कौन सी सच्ची । आप हमेशा सच्ची और टिकाऊ सुर्खी के साथ रहिये ।
@ राकेश अचल
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