Breaking News

जनादेश का स्वागत दरियादिली से कीजिये@जनता किसे करेगी सत्ता से “एक्जिट”, वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की बेबाक कलम से

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

अदावत की राजनीति के युग में रविवार 3 दिसंबर का दिन पांच राज्यों में जनादेश का दिन है। इस जनादेश का स्वागत दरियादिली के साथ किया जाना चाहिए ,क्योंकि इन पांच राज्यों से मिलने वाला जनादेश देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों के साथ ही देश की राजनीति का भी भविष्य तय करने वाला हो सकता है । इस जनादेश में एक तरफ नफरत है तो दूसरी तरफ मुहब्बत । एक तरफ जनता से जुड़े मुद्दे हैं तो दूसरी तरफ जाति,धर्म की पारम्परिक राजनीति।

भारत के मीडिया घरानों और स्वतंत्र यूट्यब चैनलों ने तो अपने-अपने सर्वेक्षणों के जरिये मध्य प्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,तेलंगाना और मिजोरम में जिसकी सरकार बनाना थी सो बना दी। इसमें जनादेश कहीं नहीं है ।

ये सर्वेक्षण धनादेश से उपजे हैं। जिन लोगों और संस्थाओं ने सर्वेक्षण किये हैं उन्होंने मतदान नहीं किया और जो मतदान नहीं करता उसे सरकार बनाने का हक भी नहीं होता,लेकिन समय बिताने के लिए करना है कुछ काम की तर्ज पर जिसे जो करना था उसने वो किया। मतदान करने वाली जनता भौंचक है । राजनीतिक दल चकित हैं। विश्लेषकों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रहीं हैं क्योंकि जनादेश की असल सूरत कोई नहीं जानता । जनादेश इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन नाम की ‘सिमसिम ‘ में कैद है। उसके खुलने में अब कुल जमा 24 घंटे बाक़ी रह गए हैं।

एक जमाना था जब जनादेश को लेकर उत्सुकता चरम पर होती थी । जनादेश का पता लगाने में ही पूरा दिन और आधी रात तक लग जातीं थी,लेकिन अब जमाना बदल गया है। मशीन ही मतों की गणना करती है। मशीन ही मतों का योग बताती है। मशीन की विश्वसनीयता पर लगे प्रश्नचिन्हों के बावजूद उसी से लोकतंत्र का सबसे बड़ा यज्ञ कराया जाता है। फिर भी घालमेल की आशंकाएं बनी रहतीं है। क्योंकि मशीनों के अलावा भी कुछ लोगों को कागज के मतपत्रों के जरिये मतदान की सुविधा केंद्रीय चुनाव आयोग कराता है। सत्तारूढ़ दलों पर अक्सर इन्हीं मतपत्रों में धांधली कर जनादेश से छेड़छाड़ का आरोप लगता है। बात चुनाव आयोग से होती हुई अदालतों तक पहुँचती है। इस तरह की एक नहीं अनेक नजीरें हैं। इस बार भी ऐसा नहीं होगा ,कहना कठिन है क्योंकि मध्यप्रदेश के बालाघाट में निर्धारित समय से पहले डाक मतपत्र खुलने और गिनने की शिकायतें प्रकाश में आयीं थीं।

रविवार को प्रकट होने वाले जनादेश में जनता की रूचि -अभिरुचि का पता चलेगा । पता चलेगा कि जनता सत्ता प्रतिष्ठान के कामकाज से खुश है या नाखुश ! पता चलेगा कि उसे ‘ फ्रीबीज ‘ यानि रेवड़ियां पसंद हैं या जुमले। पता चलेगा कि जनता मणिपुर की आग से झुलसी या नहीं झुलसी। पता चलेगा कि परिवारवाद जनता को पसंद है या नही।? जनता ये भी बताएगी कि केंद्रीय मंत्रियों के भ्र्ष्टाचार के वीडियो वायरल होने के बाद मतदाता को प्रभावित करते हैं या नहीं ? यानि बहुत सी ऐसी बातों का पता देने वाले हैं ये जनादेश ,जो अभी तक कोई नहीं जानता। लोकतंत्र में जनादेश का महत्व सर्वोपरि है,क्योंकि इसे सभी राजनीतिक दलों को शिरोधार्य करना पड़ता है । भले ही राजनीतिक दलों के मन में विनम्रता हो या विवशता।

पिछले कुछ वर्षों में जनादेश ‘ गरीब की जोरू ‘ की तरह हो गया है । जनादेश आता किसी के पक्ष में है और ले कोई उड़ता है। चंबल में इस तरह के व्यवहार को ‘ अपहरण ‘ कहते हैं। अपहृत व्यक्ति को तो आप फिरौती देकर मुक्त भी करा सकते हैं किन्तु ‘ जनादेश ‘ को नहीं। जनादेश को जनादेश की फिरौती देकर ही मुक्त कराया जा सकता है। जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं उनमें से एक मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ दल के पास ‘अपहृत जनादेश ‘ ही था। अब देखना ये है कि इसे नया जनादेश मुक्त करा पाता है या नहीं ? देश में जनादेश को बंधक बनाने का ये सबसे बड़ा उदाहरण है। 2018 में जनादेश कांग्रेस के पक्ष में था किन्तु 2020 में भाजपा ने इसका अपहरण कर लिया । लापरवाही कांग्रेस की थी, जनता की नहीं।

छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जनादेश सत्तारूढ़ दलों की और से कि गयी जनसेवा के आधार पर आने वाला है। इन दोनों राज्यों में कोई उलझन नहीं है । सत्तारूढ़ दलों के नायक जनता के सामने थे,जबकि विपक्ष में खड़ी भाजपा कि और से अंत तक भावी नायक के चेहरों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही। यहां माननीय प्रधानमंत्री ने एक तरह से खुद चुनाव लड़ा और जनता को सेवा की गारंटी दी। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ और राजस्थान में माननीय प्रधानमंत्री जी की लोकप्रियता और विश्वसनीयता कि परीक्षा का परिणाम जनादेश के रूप में आने वाला है। तेलंगाना में सत्तारूढ़ वीआरएस को अपने ऊपर लगे परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्ति के आधार पर जनादेश हासिल करना है । यहां विपक्ष में कांग्रेस भी है और भाजपा भी । कांग्रेस से तेलंगाना का पुराना रिश्ता है जबकि भाजपा कांग्रेस के मुकाबले तेलंगाना की जनता के लिए नई-नवेली है।

इसी साल नफरत की आग में झुलसे मणिपुर के पड़ौसी राज्य मिजोरम के चुनाव में भी जनादेश का आधार राज्य के मौजूदा गठबंधन की सरकार के कामकाज से ज्यादा केंद्र सरकार का कामकाज होगा,क्योंकि मणिपुर की आग का धुंआ उड़कर मिजोरम तक पहुंचा है । मिजोरम ने मणिपुर की पीड़ा को आंशिक रूप से सहा भी है । मिजोरम में वैसे भी भाजपा को सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी भी नहीं मिले थे और भाजपा के भाग्यविधाता माननीय प्रधानमंत्री भी वहां अपनी टीम के साथ चुनवा प्रचार करने नहीं गए। एक तरह से भाजपा ने मिजोरम में आत्मसमर्पण कर दिया था।

देश के पांच राज्यों की जनता सत्ता से किसे ‘ एक्जिट ‘करती है और किसे ‘ इन ‘ ये ही देश की उत्सुकता का कारण है । यदि इन राज्यों में भाजपा जीतती है तो देश रामराज की और आगे बढ़ेगा ,देश में धर्मध्वजा फिर से फहराई जाएगी और यदि कांग्रेस जीतती है तो देश में एक बार फिर धर्मनिरपेक्षता की चिड़िया खुली हवा में सांस लेगी। देश को पटरी पर लाना या न लाना राजनितिक दलों के बजाय जनता के हाथ में है । जनता एक इंजिन की सरकार से काम चलना चाहती है या दो इंजिन वाली सरकार उसे पसंद है ये भी इन पांच राज्यों के जनादेश से तय हो जाएगा। बस सभी को सिमसिम के खुलने का इन्तजार है । ‘एक्जिट पोल तो सिमसिम के खुलने से पहले ही अपनी बात कह चुके हैं।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

Website Design By Mytesta +91 8809666000

Check Also

संसद में नोटों की गड्डियों का रहस्य@कभी लहराई गई तो अब…. वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की बेबाक कलम से

🔊 Listen to this भारतीय संसद हर मामले में दुनिया की दूसरी सांसदों से अलग …

googlesyndication.com/ I).push({ google_ad_client: "pub-