प्रेरणास्रोत – दोस्त की सड़क दुर्घटना में मौत ने उसे बना दिया हेलमेट मैन

भैरू सिंह राठौड़

बिहार के कैमूर भभुआ जिला थाना रामगढ़ ग्राम बगाढ़ी का निवासी राघवेंद्र कुमार हेलमेट मैन बनने की कहानी ग्रेटर नोएडा दिल्ली से शुरुआत होती हैl वहां पर लॉ की पढ़ाई कर रहा थे। राघवेंद्र कुमार बताते हैं कि मेरे साथ रूम पार्टनर कृष्ण कुमार इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था हम दोनों दोस्ती के साथ काफी मित्रता थी।

जब वह फाइनल ईयर में था इंजीनियरिंग के उसका एक रोड एक्सीडेंट हेलमेट नहीं पहनने के कारण मृत्यु  हो गई।  वह मां बाप की इकलौती संतान था। 
बुढ़ापे का उनका ही सहारा था और अपने माता-पिता का प्यारा था। इस एक हादसे ने मुझे काफी झकझोर कर रख दिया। 

आए दिन ऐसी घटना हर दिन देखने को मिलती है सिर्फ एक छोटी सी गलती की वजह से सड़क सुरक्षा जागरूकता की कमी और हेलमेट ना लगाने के प्रति ऐसी घटना आज हर गली में सुनने को मिलती है। मैंने इस घटना से सबक लेकर लोगों को जागरूक करने की अभियान चलाना शुरू किया। 

यह हादसा  मेरे दोस्त के साथ 2014 में हुआ था। 2015 से लोगों को हेलमेट देना जागरूक चालू किया। जब हेल्मेट लोग मेरे हाथ में देखते थे तो उनके चेहरे पर खुशी के पल होते थे। आज उनका दिन बहुत अच्छा था कि रास्ते में उनको किसी अजनबी ने हेलमेट दे दिया। और मेरे लिए तो  यह सुकून देता था। जब मेरे दोस्त कृष्ण कुमार की मृत्यु होने के बाद उसके घर गया था उस की किताब मैंने किसी गरीब बच्चे को दिलवा दी। 
हेलमेट देना मेरे लिए नशा जैसा हो गया और मैं अपने कार्य में आगे चलता गया। एक दिन मेरे फोन पर एक कॉल आई  एक मां की जो कह रही थी जो  किताब मैंने उसके बेटे को दी उससे पढ़कर उसका बेटा  पूरे जिले में प्रथम स्थान लाया है।  यह सुनकर मुझे बहुत खुशी मिली।  मैं यह सोच रहा था एक मां का बेटा चला गया इस दुनिया से उसके चेहरे पर कभी खुशी नहीं दिखती। और उसके बेटे की  किताब  एक मां के बेटे के लिए खुशी का खजाना बन गई। 
मैंने सोचा क्यों ना लोगों से पुरानी किताब लेकर हेलमेट दो और भारत के कोने कोने तक एक अभियान के तहत सड़क सुरक्षा और शिक्षा दोनों मैं जागरूकता करूं।  फिर अपने कार्य में जो लोग मुझे पुरानी किताब देते हैं उसके बदले में मैं उनको हेलमेट देता हूं। 
अब तक भारत के नौ राज्य में कार्य कर चुका हूं। और अपने कार्य के द्वारा 25000 हेलमेट बांट चुका हूं और 2 लाख बच्चों तक इस अभियान से किताब दे चुका हूं। इस कार्य में जो भी अभी तक खर्च हुआ है उसको मैंने अपनी जेब से शुरुआत किया था और फंड की कमी की वजह से कहीं से सहायता नहीं मिली  मैंने अपना दिल्ली में मकान रहने के लिए लिया था उसे भी बेच दिया। क्योंकि इस कार्य के द्वारा काफी आर्थिक  समस्या आ रही थी। लेकिन मेरे जीवन में कुछ भी असर नहीं हुआ और मेरे पास आज भी खुशियों की बारिश है। इस कार्य में मेरे अंदर नशा हो गया है लोगों को हेलमेट देना और किताब देना। 

मैंने  अपने अभियान द्वारा यह सोच लिया है कि  भारत के 70 साल आजादी के बाद भी 100% लोग साक्षर नहीं हुए आज भी 30% लोग शिक्षित नहीं है। मैं यह चाहता हूं जो शिक्षित लोग हैं वह समाज में देखें कौन सा बच्चा शिक्षा से वंचित हो रहा है उस की ओर  ध्यान देकर उसे  साक्षर करें और उसे जागरूक करें। इससे हमारा भारत सशक्त और शक्तिशाली बनेगा क्योंकि तब  हमारे देश का  हर नागरिक एक अच्छे नागरिक के रूप में होगा। 

 जिन गरीब बच्चों को किताबें नहीं मिलती उनके लिए बॉक्स बनाये हैं। इस बॉक्स की खासियत है आपके पास कोई भी पुरानी किताब है उसको बॉक्स में डाल दीजिए। जब यह बॉक्स भर जाता है उसमें से  किताब निकाल कर हम लोग क्लास अलग अलग पुस्तक की बंडल बनाते हैं और सिक्स क्लास से ट्वेल्थ क्लास के बच्चों को निशुल्क देते हैं।

आपको किसी भी क्लास की किताब लेनी है आप अपने पिछले क्लास के किताब दें और जरूरत की किताब ले जाएं। अभी ऐसे बॉक्स दिल्ली महानगर में हरिद्वार फरीदाबाद बनारस यूपी बिहार की राजधानी पटना में भी लगा हुआ है। राघवेन्द्र बताते हैं कि वह अपने कार्यक्रम को ER11 बुक बैंक के नाम से चलाते हैं। । अभी तक किसी ने मुझे आर्थिक सहायता नहीं दी है।  लेकिन मैं राज्य सरकार द्वारा मदद चाहता हूं इस कार्य में  मदद करें।  बच्चे उन तक जागरूकता के साथ साथ जो किताब खरीदने में असमर्थ है उन तक ये किताबें पहुंच सकें। 
 

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