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आयुष्मान योजनाः अफसरों ने खुद ही उड़ाईं एमओयू की धज्जियां, मरीजों की कोई सुध नहीं ली गई

विनोद भगत

काशीपुर।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शीर्ष प्राथमिकता वाली आयुष्मान योजना की उत्तराखंड के अफसरों ने  ही पलीता लगा दिया।  खुद को पाक साफ दिखाने की खातिर अपने की एमओयू की धज्जियां उड़ा दी। अफसरों का रुख इतना गैरजिम्मेदाराना रहा कि इलाज करा रहे मरीजों के बारे में सोचा तक नहीं।
सरकार ने इस योजना के तहत राज्य़भर में तमाम निजी अस्पतालों को भी सूचीबद्ध किया था। ऐसा करते समय योजना के अफसरों ने अस्पताल प्रबंधन के साथ एक एमओयू (अनुबंध पत्र) भी हस्ताक्षरित किया है। इसमें साफ लिखा है कि अस्पताल में मिलने वाली किस तरह की गड़बड़ी के लिए क्या-क्या सजा या जुर्माना देना होगा।

इस एमओयू में चार तरह की गड़बड़ियों जैसे ओवर बिलिंग आदि का जिक्र किया गया है। इसमें साफ लिखा गया है कि पहली बार गड़बड़ी मिलने पर अस्पताल को पूरा पैसा वापस करना होगा और तीन गुनी राशि मुआवजे के रूप में देनी होगी। पहली बार अलग-अलग गड़बड़ियों पर तीन से आठ गुना तक जुर्माने का प्रावधान है। दूसरी बार गड़बड़ी सामने आने पर अलग-अलग मामलों में क्लेम राशि पांच से 16 गुना राशि के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही क्लेम की रिजेक्ट कर दिया जाएगा। तीसरी बार गड़बड़ी पकड़े जाने पर सूचीबद्धता को खत्म करके काली सूची में डालने और अन्य कानूनी कार्रवाई (एफआईआर) का एमओयू हस्ताक्षरित किया गया है।

योजना के अफसरों ने गड़बड़ी करने वाले अस्पतालों पर हड़बड़ी में कार्रवाई कर दी। पहली बार गड़बड़ी मिलने पर ही क्लेम निरस्त करने, जुर्माना लगाने, काली सूची में डालने और एफआईआर जैसी सभी कार्रवाई एक साथ ही करके अपने ही एमओयू की धज्जियां उड़ा दी। इस जल्दबाजी में अफसरों ने यह भी नहीं सोचा कि काली सूची में डाले जा रहे अस्पतालों में मरीजों का इलाज चल रहा है, उनका क्या होगा? 

सूचीबद्धता खत्म होने का मेल मिलते ही अस्पतालों ने मरीजों का इलाज तत्काल ही रोक दिया।ऊधमसिंह नगर जिले में तो अचानक ही इलाज बंद होने से दो मरीजों की मौत तक हो गई। लेकिन अफसरों ने इसके बाद ही इन मरीजों की सुध नहीं ली।

सवाल तो कई हैं पर सबसे महत्वपूर्ण तो यह बात है कि निरीक्षण के दौरान क्यों नहीं पकड़ी  गई गड़बड़ियां? योजना के सूचीबद्ध अस्पतालों का समय-समय पर निरीक्षण करने का भी नियम है। विभागीय अफसरों ने तमाम अस्पतालों का निरीक्षण करके उनके काम को सराहा। उस वक्त किसी अफसर की पकड़ में ये गड़बड़ियां क्यों नहीं आईं। या तो हवाई निरीक्षण किया गया या फिर मिलीभगत से खेल चलता रहा।

नैनीताल हाईकोर्ट में दाखिल एक पीआईएल दाखिल कर कहा गया था कि अफसरों की मिलीभगत से सरकारी पैसे का बंदरबांट चल रहा है। इसमें योजना के अफसरों को भी पार्टी बनाया गया था। इससे अफसरों में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में तमाम अस्पतालों को नोटिस जारी करके तत्काल की सख्त कार्रवाई करके हाईकोर्ट को अगवत कराया गया कि विभाग ने अपना काम ईमानदारी से किया है।

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