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उत्तराखंड- प्रधानमंत्री की भी नहीं सुनते अधिकारी, 8 सालों से स्वीकृत सड़क का निर्माण नहीं हो सका शुरू

नैनीडांडा । एक तरफ सरकारें उत्तराखंड के गांवों से पलायन का रोना रोती है। बाकायदा इसके लिए पलायन आयोग बना कर जनता को आश्वासन का झुनझुना थमा दिया गया है। पर हकीकत में सरकारें उत्तराखंड के लोगों से छलावा ही करती आई हैं। और इस छलावे में प्रधानमंत्री भी हिस्सेदार हैं।

स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने जिस समस्या को हल करने का वादा किया वह अभी तक जस की तस है।  बात हो रही है पौड़ी जिले के नैनीडांडा ब्लाक के पतगाँव की। यहाँ एक सड़क 2011 में स्वीकृत हुई थी। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्व0 मस्तराम सुंदरियाल के इस गांव की ये सड़क पिछले आठ सालों में फाइलों में ही उलझकर रह गई है। पहले इस समस्या के लिए कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराया जाता रहा। बाद में भाजपा की सरकार आने पर गांव के लोगों को उम्मीद जगी कि अब काम करने वाली सरकार आयी है और सड़क का सपना पूरा हो जाएगा।

इस सड़क निर्माण की सभी औपचारिकताएं पूरी हैं। 10 अक्टूबर 2011 को स्वीकृति मिलने के बाद लोक निर्माण विभाग अदालीखाल ने दिसंबर 2011 से 2012 के दिसंबर तक इस सड़क का सर्वे कार्य भी किया और फिर लोनिवि बैजरो की ओर से सड़क निर्माण के लिए निविदा भी जारी कर दी गई।

स्व0 मस्तराम सुंदरियाल के परिवार के सदस्य यशपाल सुन्दरियाल बताते हैं कि कि पिछले 8 सालों से वह इस सड़क के लिए सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन नतीजा शून्य है।

सड़क को लेकर दो साल पहले प्रधानमंत्री ने दिया

यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उन्होंने लिखा और प्रधानमंत्री ने भी जबाब में सड़क की समस्या सुलझाने का आश्वासन दिया। दो साल पहले प्रधानमंत्री मोदी का यह आश्वासन खोखला आश्वासन ही बन कर रह गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उत्तराखंड के इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गांव तक सड़क पहुंचाने में असफल साबित हो गये। कारण अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के आश्वासन को भी फाइलों में उलझा दिया।

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