विनोद भगत
पिछले कुछ दिनों से यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि केन्द्र सरकार नये राज्य गठन करने जा रही है। चर्चाएं गलत नहीं हैं। यह इस बात से समझा जा सकता है कि सरकार की ओर से इस बारे में कोई खंडन या बयान नहीं आया है।
सूत्र बताते हैं कि यह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। उत्तराखंड हरियाणा दिल्ली आदि प्रदेश इस पुनर्गठन में प्रभावित होंगे। सबसे ज्यादा नुकसान उत्तराखंड को उठाना पड़ सकता है।
उत्तराखंड राज्य का गठन ही एक अवधारणा के तहत हुआ था। पर्वतीय राज्य बनाने का उद्देश्य यही था कि इस राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार बड़ा राज्य होने की वजह से उत्तर प्रदेश में शामिल उत्तराखंड क्षेत्र का समुचित विकास हो सके। तथा सुदूर पर्वतीय दुर्गम इलाके के लोग भी जनप्रतिनिधि बनकर अपने क्षेत्र के विकास की पहल कर सकें। पहले इन दुर्गम क्षेत्रों के विकास के लिए मैदानी क्षेत्र के नेताओं पर निर्भर रहना पड़ता था।
विकास से कोसों दूर अविकसित होने की पीड़ा झेल रहे लोगों ने इस अवधारणा को साकार करने के लिए तमाम आंदोलन किये और यहाँ तक कि अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। उन शहीदों के नाम पर राजनैतिक दलों के नेताओं ने अपनी रोटियां सेंकने के अलावा कुछ नहीं किया। आपको याद दिला दें कि कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्व नारायण दत्त तिवारी ने तो यहाँ तक कहा था कि उत्तराखंड राज्य बना तो उनकी लाश पर बनेगा। तब कांग्रेस को उत्तराखंड राज्य के प्रबल विरोधी का तमगा मिला था। हालांकि बाद में वह इसी राज्य के मुख्यमंत्री भी बने।
भाजपा नेता व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उत्तराखंड राज्य बनाने का श्रेय जाता है। पर लगता है कि भाजपा के ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस राज्य की अवधारणा को समाप्त करने का श्रेय मिलेगा। दरअसल उत्तराखंड राज्य की मूल पर्वतीय अवधारणा को समाप्त करने के लिए मोदी की लोकप्रियता को भुनाया जायेगा। लोकप्रिय होने की वजह से राज्य के लोग शायद ही इसका विरोध करें। लेकिन राज्य की मूल अवधारणा के साथ विश्वासघात को क्या राज्य के लोग पचा पायेंगे?
अभी पिछले दिनों एक कुलपति के बयान के बाद मचे घमासान को देखा जा सकता है। उनके बयान के बाद लोगों ने भी सिर्फ बयानबाजी ही की। वहीं यह भी गौरतलब है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी एक बार सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाने की वकालत कर चुके हैं। ऐसे में उत्तराखंड के लोगों को फिर एक बार छलने की तैयारी हो रही है।
सूत्र तो यहाँ तक बताते हैं कि नये छह राज्यों के गठन का मसौदा लगभग तैयार है। शब्द दूत को एक नक्शा इन प्रस्तावित छह राज्यों का मिला है। हालांकि शब्द दूत इस नक्शे की पुष्टि नहीं करता पर फिर भी यह कहा जा सकता है नये राज्य गठन को लेकर कहीं कुछ होने वाला है। सीधा सा मतलब है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र का विकास एक बार फिर मैदानी क्षेत्र के हाथों में आने वाला है। क्योंकि नये प्रस्तावित परिसीमन में एक बार फिर इस राज्य में मैदानी जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ सकती है। यहाँ यह भी बिडम्बना है कि वर्तमान में इस राज्य के अधिकांश नेता अपने परंपरागत क्षेत्र को छोड़कर मैदानी इलाकों में में सक्रिय ही नहीं वहाँ से चुनाव भी लड़ रहे हैं।