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उत्तराखंड – अक्टूबर में बदलाव की सुगबुगाहट, हाईकमान क्यों है नाराज – एक विश्लेषण

 

शब्द  दूत डेस्क 

देहरादून। वैसे तो दिल्ली से देहरादून की दूरी मात्र २५० किमी है, पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और भाजपा आलाकमान में दूरियां इतनी बढ़ गयी है कि  अब लगता है त्रिवेंद्र सिंह रावत की रवानगी तय है। हालात यह हैं कि  भाजपा के मुख्यालय में बैठे शीर्ष नेताओं को त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कामकाज के बारे में बात करने मैं कोई रूचि नहीं है, लगता है जैसे वह तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों का इंतज़ार कर रहे है। जिसके बाद अक्टूबर अंत में उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन कर प्रदेश की सरकार और संगठन में नयी जान फूँक सकें।

और ये सब अटकलें निराधार नहीं हैं। केंद्रीय भाजपा में सूत्र ये बताते हैं की न सिर्फ संघ और विहिप के शीर्ष नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आलाकमान से त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा लिए गए निर्णयों की भारी आलोचना की है, अपितु खुद प्रधानमंत्री और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यप्रणाली से काफी नाखुश हैं। यही कारण है की त्रिवेंद्र सिंह रावत के बार बार दिल्ली दरबार में चक्कर लगाने के बाद भी उन्हें अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने की हरी झंडी नहीं मिल पा रही है।

उनकी कैबिनेट के शीर्ष मंत्री प्रकाश पंत के निधन को अब काफी समय हो गया है, पर अभी तक उनका विकल्प सरकार को नहीं मिल पाया है, जबकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के कैबिनेट सहयोगियों की नाराज़गी किसी से छुपी हुई नहीं है। कुछ वरिष्ठ विधायक भी उनकी सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाने को लेकर खासे नाराज़ बैठे हैं।  उनकी नाराज़गी इससे भी है की त्रिवेंद्र सिंह रावत उनकी उपेक्षा करके कुछ छुटभैया नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा है जिससे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में काफी रोष है।हालांकि विज्ञापन और मीडिया का इस्तेमाल कर मुख्यमंत्री को महिमामंडित जरूर किया जा रहा है। मुख्यमंत्री का फेसबुक पेज देखकर आयी टिप्पणियां बता रही हैं कि उनको लेकर जन सामान्य में क्या धारणा है। 

अगर पार्टी हाईकमान की बात करें तो वह त्रिवेंद्र सिंह रावत की दो फैसलों से काफी नाराज़ हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा उत्तराखंड में शराब की फैक्ट्रियों की बाढ़ सी ले आना और भांग की खेती को बढ़ाना — ये ऐसे दो निर्णय हैं जिसकी शिकायत संघ और विहिप के शीर्ष नेताओं ने सीधे प्रधानमन्त्री और पार्टी आलाकमान से की है। भाजपा के पुराने नेता जैसे उमा भारती ने तो प्रधानमंत्री को त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के खिलाफ देवप्रयाग में आमरण अनशन की धमकी तक दे डाली। केंद्रीय नेतृत्व का कहना है कि जहाँ एक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड की देवभूमि की गरिमा बढ़ाने में लगे हुए हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत देवभूमि को शराबभूमि बनाने में लगे हुए हैं।

देवप्रयाग, जहाँ से गंगा जी बनती हैं, वहां पर शराब की फैक्ट्री लगाने को ले कर प्रदेश और देश में काफी विरोध है। इसके अलावा देवभूमि में 6 और शराब की फैक्ट्रियों का खोलना भी भाजपा हाईकमान को नागवार गुज़रा है। इसी प्रकार ऋषिकेश में गंगाजी से महज 50मीटर की दूरी पर एक बार खुलवाकर उत्तराखंड की जनता से छल किया है।

इससे पहले जो त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने औली की सुरम्य वादियों में साउथ अफ्रीका से फ्रॉड करके भागे गुप्ता बंधुओं की पारिवारिक शादी में जा कर किया उससे देश ही नहीं विदेश में भी खुद जगहंसाई हुई । प्रमुख विदेशी और देशी पत्रिकाओं ने इस शादी से हुए पर्यावरण को नुक्सान की काफी आलोचना की और उत्तराखंड बी त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को आड़े हाथों लिया। ये सब भी प्रधानमंत्री और शीर्ष भाजपा नेतृत्व को काफी नागवार गुजरा है। प्रधानमंत्री ने अपनी नाराजगियाँ त्रिवेंद्र सिंह रावत को बार बार महसूस कराई है। उनके कॉर्बेट पार्क की यात्रा या केदारनाथ की यात्रा के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत को बैरंग लौटना किसी से छुपा नहीं है।

एक और महत्वपूर्ण पहलू  ये है कि हाईकमान ने विगत दिनों दो इंटरनल सर्वे कराये जिसमे त्रिवेंद्र सिंह रावत कार्यकाल को लोगों और कार्यकर्ताओं ने सिरे से नकार दिया।

खबर तो ये है की त्रिवेंद्र सिंह रावत अब तक के भाजपा मुख्यमंत्रियों में सबसे अलोकप्रिय निकले। ऐसे में शीर्ष भाजपा नेतृत्व भी स्तब्ध है। भाजपा के मुख्यालय के सूत्र बताते हैं की इन सब बातों के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई तीन राज्यों में होने विधानसभा वाले चुनावों के बाद तय है।

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