विनोद भगत
क्या अपने ही द्वारा लागू किए गये नये मोटर व्हीकल एक्ट 2019 से सरकार खुद पीछे हटने जा रही है? सवाल का जबाब हां में होगा। ये हम नहीं कह रहे। एक सितंबर से देशभर में लागू भारी-भरकम जुर्माने की राशि को लेकर जो विरोध हो रहा है और देश के अनेक हिस्सों से प्रतिक्रिया आ रही है। उसने केन्द्र सरकार को चेता दिया है।
यहां एक बात गौर करने लायक है कि केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के अलावा किसी अन्य मंत्री या प्रदेश के मुख्यमंत्री ने नये वाहन अधिनियम को लेकर प्रतिक्रिया नहीं दी है। अलबत्ता मुख्यमंत्रियों ने अपने अपने राज्यों में अब केंद्र के इस नियम को लेकर जुर्माने की राशि में कटौती करने के फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। इसकी सबसे पहले शुरूआत प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य गुजरात से हुई है। मतलब केन्द्र के फैसले का सीधा विरोध भी कहा जा सकता है।
दरअसल देश के विभिन्न हिस्सों से चालान को लेकर पुलिस के साथ दुर्व्यवहार की दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें सामने आ रही है। जो काफी चिंताजनक है। केन्द्र ने जब यह एक्ट लागू किया था तो ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी। हालांकि यातायात नियमों का पालन जरूरी है ये भी अपने आप में अनिवार्य है। लेकिन भारी भरकम जुर्माना लगाकर इसे कम करना अदूरदर्शी निर्णय साबित हो रहा है। केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के पुत्र की गाड़ी का चालान इस बात का उदाहरण है कि अपने ही नियम अपने लिए भारी पड़े। कई स्थानों पर राजनैतिक दलों के नेताओं की गाड़ियों का चालान कर अधिकारी अपनी फजीहत करा चुके हैं।
गुजरात सरकार के बाद अन्य राज्यों में भी चालान को लेकर नये फैसले आ रहे हैं। संभवतः आज उत्तराखंड सरकार भी चालान की दरों पर राहत देने की घोषणा कर सकती है। केन्द्र सरकार के संशोधित नये मोटर व्हीकल एक्ट में अब राज्य सरकारें संशोधन करेंगी। यदि ऐसा होता है तो केन्द्र द्वारा लागू एक्ट महज एक कागज पर लिखे नियम बन कर रह जायेंगे।
वैसे नये मोटर व्हीकल एक्ट से क्या आम जनता की ही जेब ढीली हो रही है? जी नहीं राज्य और केंद्र सरकार को भी भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। जहाँ ये नियम सख्ती से लागू हो रहे हैं। उन राज्यों में पेट्रोल की बिक्री पर भारी असर पड़ रहा है।उड़ीसा राज्य से जो आंकड़े आ रहे हैं वह राज्य और केंद्र दोनों के लिए चिंता का सबब बन गये हैं। समझा जाता है कि शायद इसी वजह से अब सरकार इस अधिनियम से पीछे हटने का मन बना रही है। हालांकि सीधे तौर पर पर नहीं बदला जायेगा। इसके लिए राज्य सरकारों को छूट देने के लिए कहा जायेगा।
उड़ीसा में पेट्रोल और डीजल मिलाकर, साढ़े 16 लाख लीटर ईंधन की बिक्री में कमी आई है।इसकी वजह से सरकारी खजाने को करीब पांच करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। मोटर वीइकल ऐक्ट, 2019 के लागू होने के कारण हर दिन 4,08,000 लीटर पेट्रोल और 12,45,000 लीटर डीजल की बिक्री कम हुई है। राज्य को पेट्रोल पर हर रोज़ 58 लाख रुपये के राजस्व का घाटा हो रहा है। 81 लाख रुपये की एक्साइज ड्यूटी का भी नुकसान हो रहा है।डीजल में राज्य सरकार को रोज़ाना 1,78,00,000 रुपये और केंद्र सरकार को 1,97,00,000 रुपये का घाटा हो रहा है।
और यह तो सिर्फ एक राज्य का आंकड़ा है। यदि पूरे देश में राज्यों के आंकड़ों को देखा जाये तो केन्द्र और राज्य सरकारों को भारी राजस्व का नुकसान नजर आयेगा। और यही चिंता सरकार की है। ध्यान रहे कि पेट्रोल और डीजल सरकारी राजस्व का भारी-भरकम स्रोत है और उसी का उपयोग करने वालों पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जा रहा है।