चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से तक पहुंचना हमारे वैज्ञानिकों की अद्भुद सफलता है। एक तो विज्ञानं प्रयोग सतत चलते रहते हैं और इनका किसी सरकार के आने और जाने से कोई सम्बन्ध नहीं होता- फिर दुनिया के अधिकांश देशों में इस तरह के स्पेस साइंस के प्रयोग बेहद गोपनीय होते हैं — जब कार्य पूर्ण हो जाता है तब उसकी घोषणा होती हैं , विकसित देश अपनी तकनीक और प्रयोगों को यथासंभव गोपनीय रखते हैं। हालांकि चन्द्र यान जैसे प्रयोग पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोपनीय रखना संभव नहीं होता लेकिन फिर भी इसे जनता के बीच बेवजह सस्ती लोकप्रियता से बचना चाहिए था।
यह भी जान लें कि भले ही हमारे उपकरण चाँद की सतह पर पहुँचने में अभी अफल होते प्रतीति नहीं हो रहे, लेकिन इस अभियान के नब्बे प्रतिशत परिणाम तो हमें मिलेंगे ही। भारत के चंद्रमा कि सतह को छूने वाले “विक्रम” के भविष्य और उसकी स्थिति के बारे में भले ही कोई जानकारी नहीं है कि यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया या उसका संपर्क टूट गया, लेकिन 978 करोड़ रुपये लागत वाला चंद्रयान-2 मिशन का सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने के अनुरोध के साथ बताया, ‘मिशन का सिर्फ पांच प्रतिशत -लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर- नुकसान हुआ है, जबकि बाकी 95 प्रतिशत -चंद्रयान-2 ऑर्बिटर- अभी भी चंद्रमा का सफलतापूर्वक चक्कर काट रहा है।’
अभी पूरी सम्भावना है कि ऑर्बिटर एक साल तक चंद्रमा की कई तस्वीरें लेकर इसरो को भेज सकता है। ये तस्वीरें भी हमारे अन्तरिक्ष विज्ञान के लिए बहुत बड़ी सीख व उपलब्धि होंगी।
यह तो आप जानते हीन हैं कि चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान में तीन खंड हैं -ऑर्बिटर (2,379 किलोग्राम, आठ पेलोड), विक्रम (1,471 किलोग्राम, चार पेलोट) और प्रज्ञान (27 किलोग्राम, दो पेलोड)। विक्रम दो सितंबर को आर्बिटर से अलग हो गया था। चंद्रयान-2 को इसके पहले 22 जुलाई को भारत के हेवी रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हिकल-मार्क 3 (जीएसएलवी एमके 3) के जरिए अंतरिक्ष में लांच किया गया था।
इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क केंद्र के स्क्रीन पर देखा गया कि विक्रम अपने निर्धारित पथ से थोड़ा हट गया और उसके बाद संपर्क टूट गया। लैंडर बड़े ही आराम से नीचे उतर रहा था, और इसरो के अधिकारी नियमित अंतराल पर खुशी जाहिर कर रहे थे। लैंडर ने सफलतापूर्वक अपना रफ ब्रेकिंग चरण को पूरा किया और यह अच्छी गति से सतह की ओर बढ़ रहा था। आखिर अंतिम क्षण में ऐसा क्या हो गया? इसरो के एक वैज्ञानिक के अनुसार, लैंडर का नियंत्रण उस समय समाप्त हो गया होगा, जब नीचे उतरते समय उसके थ्रस्टर्स को बंद किया गया होगा और वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया होगा, जिसके कारण संपर्क टूट गया।
यह एक छोटी सी निराशा है लेकिन विज्ञान का सिद्धांत है कि हर असफलता भी अपने-आप में एक प्रयोग होती हैं बिजली बल्ब बनाने वाले थॉमस अल्वा एडिशन ने तीन सौ से ज्यादा बार असफल हो कर बल्ब बनाया, तब एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि मेरे शोध का परिणाम है कि इन तीन सौ तरीकों से बल्ब नहीं बनता।
यह भी जानना जरुरी है कि जान लें कि भारत के अंतरिक्ष विज्ञान विभाग की यह उपलब्धि कोई एक-दो साल का काम नहीं है। इसका महत्वपूर्ण पहला पायदान कोई ग्यारह साल पहले सफलता से सम्पूर्ण हुआ था। भारत ने 22 अक्तूबर, 2008 को पहले चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान-1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। इस मिशन से पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के रहस्यों को जानने में न सिर्फ भारत को मदद मिली बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों के ज्ञान में भी विस्तार हुआ। प्रक्षेपण के सिर्फ आठ महीनों में ही चंद्रयान-1 ने मिशन के सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल कर लिया। आज भी इस मिशन से जुटाए आँकड़ों का अध्ययन दुनिया के वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस मिशन से दुनिया भर में भारत की साख बढ़ीथी।
भारत सरकार ने नवंबर 2003 में पहली बार भारतीय मून मिशन के लिये इसरो के प्रस्ताव चंद्रयान -1 को मंज़ूरी दी।चन्द्र्रयान-1 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, यानी PSLV-C 11 रॉकेट के ज़रिये सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया था। पाँच दिन बाद 27 अक्तूबर, 2008 को चंद्रमा के पास पहुँचा था। वहाँ पहले तो उसने चंद्रमा से 1000 किलोमीटर दूर रहकर एक वृत्ताकार कक्षा में उसकी परिक्रमा की। उसके बाद वह चंद्रमा के और नज़दीक गया और 12 नवंबर, 2008 से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर से हर 2 घंटे में चंद्रमा की परिक्रमा पूरी करने लगा।
हमारे वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। काश इसे चुनाव किस्म की गतिविधि बनाने से बचा जाता। सफलता के बाद सारा देश जश्न मनाता ही। हमारा विज्ञानं और वैज्ञानिक विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं, हमें जल्द ही सफलता मिलेगी।