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बदलते आदर्श: “तुम होते कौन हो “मेरे बेटे की शिकायत करने वाले,जाओ अपने काम से काम रखो”, देखिए वीडियो इक्कीसवीं सदी का

@शब्द दूत ब्यूरो (03 जून 2023)

हमारी आज की नौजवान पीढ़ी क्या सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भुला रही है? ये आज का ज्वलंत प्रश्न है। हालांकि सारे युवाओं को हम इसके लिए दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। आज भी कुछ युवाओं में बड़े बुजुर्गो के प्रति सम्मान और आदर है। लेकिन कहीं कहीं इसका अभाव है।

अब सवाल यह भी है कि दोषी है कौन? यदि हम सीधे सीधे युवाओं को ही इसका जिम्मेदार ठहरा देते हैं तो ये युवा पीढ़ी पर अन्याय होगा। दरअसल देखा जाए तो हम खुद बहुत हद तक इसके लिए जिम्मेदार हैं। आज जो बदलते आदर्श हैं उन्हें विद्रूप और अनैतिक बनाने में परिवार के बड़े बूढ़े भी बराबर के जिम्मेदार हैं। बदलते आदर्श एक छोटी सी कार्टून फिल्म है लेकिन इस फिल्म में एक संदेश जरूर है जो विशाल और वृहद है। फिल्म बहुत कुछ कहती है। हमें उसे स्वीकारना होगा। लेकिन वहीं यह फिर बता दें कि सभी इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

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