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आयकर दायित्व में गिरावट, सरकारी राजस्व घटने की आशंका

 सत्येन्द्र हेमंती 

यूं तो किसी स्थानीय स्तर का डेटा पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व तो नहीं करता लेकिन फिर भी उनसे कुछ क्रूड निष्कर्ष तो निकाले ही जा सकते हैं। व्यवसायिक करदाताओं (2 करोड़ से अधिक की टर्नओवर) को छोड़कर 31 अगस्त   आयकर रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तिथि थी। इस  तिथि तक भरे आयकर रिटर्नस् को देखकर कुछ बातें अब साफ नजर आ रही हैं।

पहला ये कि लोगों के आयकर दायित्व में 15 से 20 फीसदी की गिरावट आई है। बड़ी संख्या में आयकर रिटर्न भरे जाने लायक टर्नओवर भी दर्ज नहीं हो सकी है। जबकि पहाड़ों में मंदी का असर मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले काफी कम है। मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, कंप्यूटर, रेडीमेड गारमेंट्स, फुटवियर आदि व्यवसायों की बिक्री में 30 से 40 और कुछ कुछ मामलों में 50 फीसदी से अधिक की कमी दर्ज हुई है। निर्माण सम्बन्धी सामग्री, और आवश्यक खाने पीने की वस्तुओं में भी 20 से 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है। उत्तराखंड में ठेकेदारों पर सबसे अधिक असर देखने को मिला है। यहां पर लगभग 12 से 15 हजार पंजीकृत ठेकेदार हैं तो निजी मकान बनाने वाले ठेकेदारों की संख्या भी 8 से 10 हजार के बीच होने की संभावना है जो कहीं भी पंजीकृत नहीं हैं। सरकारी ठेकेदारों में अधिकांश को पिछले वर्ष कोई काम ही नहीं मिल पाया। कुछ ने GST की भारी लेट फीस जमा करने के बाद पंजीकरण निरस्त करवाया। कई मध्यम वर्ग के ठेकेदार श्रम कानूनों की चपेट में आ गए। कई छोटे ठेकेदार इन कठोर रेगुलेशनस् को झेल नहीं पाए और ठेकेदारी को तौबा कर गए।

दूसरा ये कि लोगों में आयकर को लेकर जो भय का माहौल नोटबन्दी के बाद बना था अब लगभग समाप्ति की ओर है लेकिन लोगों की चिंता अभी भी कम नहीं हुई है। अब व्यापारियों और ठेकेदारों की चिंता GST कंप्लायंस को लेकर है। कई लोगों ने इन कंप्लायंस से आजिज आ कर अपनी आनुषंगिक फर्मों को बंद कर दिया है। मसलन कई लोगों द्वारा मुख्य एजेंसी के अतिरिक्त अन्य सहायक एजेंसियों का काम छोड़ दिया है। व्यवसाय विस्तार का कोई भी प्रस्ताव दूर दूर तक नहीं देखा जा रहा है। अधिकांशतः क्या शतप्रतिशत लोगों में अपने कोर व्यवसाय को बचाने या उस तक सीमित रहने की जदोजहद साफ नजर आ रही है।

तीसरा ये कि सरकार की टैक्स रेवेन्यू में अब गिरावट का दौर आना अवश्यम्भावी लग रहा है जिस कारण सरकार को न केवल विकास कार्यों में मुश्किलें आएंगी बल्कि वेतन भत्तों के भुगतान में भी कठिनाइयां आ सकती हैं। जिससे बाजार की प्रभावी मांग और कम होगी। सरकार ने घरेलू काले धन के नाम पर भारी मात्रा में टैक्स वसूली की है जिससे लोगों की जेब से धन सरकार की जेब में चला गया। सरकार द्वारा भारी मात्रा में वसूली गई इस राशि को जॉबलेस ग्रोथ में खर्च करने से ये धन कुछ बड़े ठेकेदारों और नेताओं की जेब में चला गया और वो धन वापस बाजार में लौट नहीं पाया। नोटबन्दी से पहले बाजार में 1528000 करोड़ की नकदी थी जो आज 21 लाख करोड़ तक पंहुच गई है लेकिन बाजार में लिक्विडिटी क्राइसेस है। जब 1528000 करोड़ नकद पर भारी लिक्विडिटी थी तो आखिर 21 लाख करोड़ पर नकदी का संकट कैसे?

कारण साफ है पहले निचले स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण ये भ्रष्ट पैसा बाजारों में घूमता था तो बाजार में चहल पहल थी जबकि आज ये पैसा ऊँचे स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण कुछ हाथों में सीमित हो कर रह गया है जिनका भरपूर खर्च भी बाजार के हिसाब से सीमित है इसलिए अधिकांश पैसा तिजोरियों में बंद पड़ गया है और बाजार में मांग का संकट उत्पन्न हो गया है।

सरकार को नई परिस्थितियों में आम जनता से टैक्स वसूलने के नए तरीकों पर विचार करना होगा ताकि उनसे बचा खुचा पैसा भी निकाला जा सके। उसके लिए सरकार ने कई तरीकों पर पूर्व में कार्य भी किया है मसलन भारी मात्रा में लेट फीस और पेनाल्टी की वसूली। अगर आपसे आयकर या GST की वसूली सम्भव न हो तो लेट फीस ले कर सरकार अपनी आय बढ़ा रही है। अब जब लोग रिटर्न भी समय पर भरने लगे हैं तो नए तरीकों पर विचार करना होगा। सरकार लोगों की बचत पर टैक्स लगा कर ठीकठाक मात्रा में रेवेन्यू अर्जित कर सकती है या फिर सभी तरह के नकद और डिजिटल लेनदेनों पर थोड़ी बहुत फीस लेकर लोगों की जमा राशि में सेंध लगा सकती है। वेतन के एक बड़े खर्च को कम करने के लिए अनावश्यक कर्मचारियों की अनुपालन संबंधी कोई भी कठोर व कठिन शर्त लगाकर छंटनी कर सकती है।

अगले दो वर्ष आम जन जीवन में कठोर साबित होंगे लेकिन उसके बाद सुबह भी होगी। और यकीन मानिए इसके लिए आपको किसी हॉवर्ड वाले की तलाश करनी होगी क्योंकि देश दुनिया का जालिम समाज और सिस्टम हार्डवर्क को ज्यादा तवज्जो  नहीं देता। नहीं तो देश में मजदूरों और किसानों की स्थिति चालाक और शातिर बिचौलियों से कई बेहतर होती।(सत्येंद्र हेमंती की फेसबुक वाल से साभार)

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