Breaking News

न छौंक,न बघार, जिंदगी लाचार@आटा गीला दाल पतली जीरा महंगा, मुद्दे की बात वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की कलम से

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

वो भी क्या जमाना था जब कहा जाता था कि ‘दाल,रोटी खाओ,प्रभु के गुण। गाओ ‘.वक्त के साथ सब बदल रहा है। दाल और रोटी लगातार परेशानी का सबब बने हुए हैं।आटा पहले से गीला और दाल पतली थी,अब दाल में छौंक बघार के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जीरा भी मंहगा हो गया है।
कहते हैं कि एक तरफ अरहर की दाल की जमाखोरी रोकने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। दूसरी ओर बाजार में अरहर की कीमतें पिछले दो महीने में ही 10 से लेकर 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक की वृद्धि हो गई है। जिससे रसोई का बजट बढ़ता जा रहा है। दाल और साग में तड़का लगाने वाले जीरे की कीमतें भी आसमान छू रही हैं। बाजार में जीरे की कीमत सीधे 300 से 400 हो गई है। सौंफ की कीमत 150 के पार हो गई है।

अब,कब किस चीज के दाम बढ़ जाते हैं पता ही नहीं चलता। लगता है कि अब हर चीज के दाम डीजल -पेट्रोल की तरह कोई अंतरराष्ट्रीय संस्था तय करती है। सरकार का किसी भी चीज के दामों पर कोई नियंत्रण नहीं है। यानि सब कुछ बेकाबू है। सरकार का कीमत बढ़ाने वालों का पता होता तो मुझे यकीन है कि जनहित में ऐसे लोगों को मुठभेड़ में मार गिराती।
दरअसल मुठभेड़ स्थिति नियंत्रण का शार्टकट फार्मूला है।यूपी के इस कामयाब फार्मूले से दाल और जीरे की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ रहा।अब आप बताएं कि इस सबके पीछे कौन है?

हम भारतीय अरहर की दाल के रह नहीं सकते। हमारे यहां अरहर की खेती तीन हजार वर्ष पूर्व से होती आ रही है हालांकि अरहर की गर्भनाल अफ्रीका में है। अफ्रीका के जंगलों में इसके पौधे पाये जाते है।
डाक्टर कहते हैं कि दलहन प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है जिसको आम जनता भी खाने में प्रयोग कर सकती है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। यदि प्रोटीन की उपलब्धता बढ़ानी है तो दलहनों का उत्पादन बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्नतशील प्रजातियां और उनकी उन्नतशील कृषि विधियों का विकास करना होगा।

हमारी सरकार ने अरहर की दाल का उत्पादन बढ़ाने का उत्पादन बढ़ाने के बजाय प्रोटीन की गोलियों का उत्पादन बढा दिया।जरूरी है कि जनता अरहर की दाल ही खाए।दाल वैसे भी गलती भी देर से है और उसमें काला पड़ने की आशंका भी ज्यादा रहती है। इसलिए दाल की बजाय प्रोटीन पिल्स,शेक,पावडर बापरिए। प्रभु के गुण प्रोटीन के साथ गाइए।

एक दाल ही है जिसके साथ कितने ही मुहावरे और कहावतें जुड़ी है। किसी से हालचाल पूछो तो मुंह बनाकर कहेगा -‘दाल पतली है यार!. कोई कहेगा -‘दाल गल नहीं रही इन दिनों ‘.कोई कहेगा ‘यार ! दाल में कुछ काला है ?.अब आप ही बताइए कि ऐसी दाल को हम कैसे आसानी से छोड़ सकते हैं।हम जितना संघर्ष लोकतंत्र को बचाने के लिए करते हैं उससे ज्यादा संघर्ष दाल को बचाने के लिए कर सकते हैं।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि अरहर दाल के बिना घर के खाने की कल्पना करना बेइमानी सी लगती है. कई लोगों को अरहर की दाल पसंद होती है ।खाने की थाली में अगर अरहर की दाल ना हो तो खाना अधूरा सा लगता है. अरहर की दाल सेहत के लिए फायदेमंद भी होती है क्योंकि इसमें अच्छी खासी मात्रा में प्रोटीन होता है जो बच्चों से लेकर घर के बड़ों तक की सेहत का ख्याल रखता है.लेकिन

जिन लोगों का यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है. उन्हें अरहर की दाल नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इसमें प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है. जिससे यूरिक लेवल अनियंत्रित हो जाता है. साथ ही इस बीमारी में हाथ पैर और जोड़ों में सूजन भी आ सकती है।
जिन लोगों को किडनी की समस्या है उन लोगों को इस दाल से परहेज करना चाहिए. अरहर की दाल में पोटैशियम पाया जाता है जो किडनी की समस्या को बढ़ा देता है. इसके सेवन से हमें पथरी जैसे रोग से भी लड़ना पड़ सकता है. जो लोग एसिडिटी की बीमारी से ग्रसित हैं उन्हें तो अरहर की दाल रात में नहीं खाना चाहिए. दरअसल अरहर की दाल को पचने में टाइम लगता है, जिसके चलते खट्टी डकार, पेट दर्द, गैस होने लगती है. जिससे कुछ लोगों को सिर दर्द भी होने लगता है।
बहरहाल दाल और बघार पर नजर रखिए,इन दोनों को किसी की नजर मत लगने दीजिए। यही भारतीयता है। यही राष्ट्रीयता है।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

Website Design By Mytesta +91 8809666000

Check Also

उत्तराखंड :मुख्यमंत्री उदीयमान खिलाड़ी उन्नयन योजना और खिलाड़ी प्रोत्साहन योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन शुरू

🔊 Listen to this @शब्द दूत ब्यूरो (15 मार्च 2025) देहरादून। उत्तराखंड में खेल प्रतिभाओं …

googlesyndication.com/ I).push({ google_ad_client: "pub-
02:27