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तो क्या चिदंबरम के बाद अगला नंबर अहमद पटेल का है

वेद भदोला

नई दिल्ली। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों एक सवाल तैर रहा है कि क्या पी चिदम्बरम के बाद अगला नंबर अहमद पटेल का है। प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी अहमद पटेल के बेटे फैसल पटेल से दो मर्तबा पूछताछ कर।चुका है। दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अहमद पटेल दोनों गुजरात के ही हैं। अमित शाह अभी नरेंद्र मोदी सरकार में निर्विवाद नंबर दो पर हैं। भारतीय जनता पार्टी भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते भी वे 2014 से लगातार ताकतवर रहे हैं।

उनके मुकाबले गुजरात के ही अहमद पटेल न तो कभी केंद्र में गृह मंत्री बने और न ही कभी अपनी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष, लेकिन फिर भी कांग्रेस में वे काफी समय से बहुत रसूख वाले रहे हैं। दस साल की मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर अहमद पटेल इतने ताकतवर थे कि उनके बारे में कहा जाता था कि उनकी सहमति के बगैर कोई मंत्री नहीं बन सकता था।

सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटने के बाद जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने तो लगा कि अहमद पटेल कमजोर होंगे।लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राहुल के कार्यकाल में भी अहमद पटेल ताकतवर बने रहे। अब एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी की वापसी हुई है तो अहमद पटेल का रसूख बढ़ना स्वाभाविक ही है।

इन दिनों अहमद पटेल थोड़ी मुश्किल में हैं। उनकी परेशानी की वजह है उनके बेटे फैसल पटेल के खिलाफ चल रही प्रवर्तन निदेशालय की जांच। स्टर्लिंग बायोटेक मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने फैसल पटेल से दो बार पूछताछ की। पिछले महीने अहमद पटेल के दामाद इरफान सिद्दीकी से भी इसी मामले में पूछताछ की गई थी।

सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम से अपना हिसाब बराबर करने के बाद अब अहमद पटेल के साथ भी वही कर रहे हैं। अमित शाह, उनके समर्थकों और उनकी पार्टी भाजपा का मानना है कि जब चिदंबरम गृह मंत्री ​थे तो उन्हें फर्जी मामले में फंसाने की कोशिश की गई थी।

चिदंबरम के बारे में तो फिर भी समझ में आता है कि केंद्र में मंत्री होने के नाते वे अमित शाह के खिलाफ चल रही जांच को प्रभावित करने की स्थिति में थे। लेकिन अहमद पटेल से अमित शाह की क्या खुन्नस है?

इसमें सबसे अहम घटना के तौर पर अगस्त, 2017 में हुए राज्यसभा चुनाव का जिक्र किया जाता है। उस वक्त अहमद पटेल का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ था और गुजरात में तीन सीटों पर राज्यसभा चुनाव हो रहे थे। इन तीन में से दो सीटें भाजपा के खाते में जानी तय थीं।  तीसरी सीट पर जीत हासिल करके अ​हमद पटेल पांचवीं बार राज्यसभा में आने की तैयारी कर रहे थे। भाजपा की ओर से एक सीट पर खुद अमित शाह उम्मीदवार थे और दूसरी सीट पर मोदी सरकार की प्रमुख मंत्री स्मृति ईरानी। लेकिन भाजपा ने तीसरी सीट पर भी उम्मीदवार उतार दिया। कहा जाता है कि इसके बाद अमित शाह की शह पर भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का काम शुरू किया।

लेकिन पूरे भारत में राजनीतिक चाणक्य की छवि बनाने वाले अमित शाह की रणनीति फिर भी कामयाब नहीं हो सकी थी और अहमद पटेल चुनाव जीत गए। उस समय तक दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों के अलावा कहीं भी अमित शाह की रणनीति नाकाम नहीं हुई थी। तब अहमद पटेल की जीत को अमित शाह की हार के तौर पर भी काफी लोगों ने देखा। कहा गया कि अपने गृह राज्य गुजरात में ही अमित शाह मात खा गए।

कहा जाता है कि अमित शाह उस वक्त गुजरात को लेकर असहज महसूस कर रहे थे और उन्हें लग रहा था कि अहमद पटेल की वजह से वे एक मुश्किल राजनीतिक स्थिति में पड़ गए हैं। अभी जिस तरह से अहमद पटेल के बेटे के खिलाफ जांच में तेजी आई है, उसे इसी वजह से अमित शाह और उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

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