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बैंक अधिकारी संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बोले- विलय के दुष्प्रभाव झेलने पड़ेंगे

लखनऊ।  आल इंडिया बैंक आफिसर्स कन्फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पवन कुमार ने आज केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय और उससे देश पर पड़ने वाले प्रभाव के संदर्भ में शब्द दूत से विस्तार से वार्ता की। 
  पवन कुमार  कहते हैं कि आर्थिक सुधार के नाम पर देश की आर्थिक स्थिति और खस्ता हाल करने के लिए सरकार ने लिया एक तुगलकी निर्णय कि अब तक 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको का आपस में विलय कर 04 बडे बैंक बनायेगी सरकार। जिससे अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटकर 12 रह जायेगी।
     मोदी सरकार की इस नीति का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला पर भारी दुष्प्रभाव होंगे। जिनमें बैंकों की शाखाएं बंद होना तथा कर्मचारियों व अधिकारियों की छंटनी होना तय है।मतलब देश में रोजगार घटेंगे। 

  पवन कुमार  का मानना है कि बीमारू बैंकों (जिनका एनपीए तुलनात्मक रूप से ज्यादा है) का स्वस्थ बैंक में विलय करने से स्वस्थ बैंक भी बीमार होगा तथा उसका परफार्मेंस तुलनात्मक रूप से काफी कम हो जायेगा। क्योंकि पिछले 5वर्षों में एनपीए 4.25 लाख करोड़ माफ करने के बाद भी 8.50 लाख करोड़ है।

      शब्द दूत से विस्तार से चर्चा करते हुए पवन कुमार ने कहा कि अब स्वस्थ बैंक में अस्वस्थ बैंक जैसे देना बैंक को विजय बैंक और अब यूनाइटेड बैंक और PNB को OBC में जोड़ कर 18 से घटाकर 12 सार्वजनिक बैंक बनायेगी किन्तु 8.50 लाख रुपयों के एनपीए की वसूली करने की मंशा नहीं है। सरकार का एनपीए की वसूली पर जोर नहीं रहा है वरना सरकार उपरोक्त एनपीए के डिफॉल्टर्स के नाम बता देती। जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था तथा बैंकों की स्थिति सुधरने वाली नहीं है। क्योंकि इस मर्जर से केवल मंदी से कुछ दिन के लिए देश का ध्यान सिफ्ट होगा और कुछ नहीं।

  बैंक जब कई बैंकों को मिलाकर बड़ा होगा तो उसके अत्याधिक क्षेत्रविस्तार के कारण कुशल प्रबंधन नहीं हो सकेगा। क्योंकि सरकार बैंक का खर्च कम करने के गर्ज से कम मानव शक्ति संवर्धन से ज्यादा काम लेना चाहेगी जिसके तमाम दुष्परिणाम सामने आयेंगे जिसमें कर्मचारियों व अधिकारियों के स्वास्थ्य व परिवार पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, जिससे अवसाद की स्थिति तथा आत्महत्या के परिणाम सामने आयेंगे।  अब बैंक की प्रफारमेंस के आधार पर अधिकारियों तथा कर्मचारियों की वेतन निर्भर करेगी, जिससे उक्त वेतन भोगियों का जीवन अनिश्चित होगा।

    पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार ने बैंकों के कर्मचारियों तथा अधिकारियों का वेतन रिव्यू नहीं किया है और अब प्रफारमेंस को आधार बनकर मोदी सरकार बैंकर्स का वेतन पहले की तुलना में और कम कर देगी।

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