शब्द दूत ब्यूरो
देहरादून। देहरादून के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एमएम पांडेय की अदालत में पूर्व सहायक कृषि अधिकारी के प्रार्थनापत्र पर मुख्यमंत्री के ओएसडी जेसी खुल्बे के खिलाफ एक शिकायत दर्ज हुई थी । न्यायालय ने इस मामले में सरकार को किसी सक्षम अधिकारी से जांच कराने के आदेश भी दिए थे । मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ओएसडी जेसी खुल्बे समेत चार पूर्व तथा वर्तमान अधिकारियों के खिलाफ विभिन्न योजनाओं में 70 लाख रुपये का गबन करने के आरोप थे। सितंबर 2018 में पूर्व सहायक कृषि अधिकारी रमेश चंद चौहान ने अदालत में कृषि विभाग से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई को प्रार्थनापत्र दाखिल किया था।
शिकायत के अनुसार 2015 में आईडब्ल्यूएमपी (समेकित जलागम प्रबंधन कार्यक्रम) और राष्ट्रीय जलागम विकास योजना के तहत विभिन्न कार्य किए जा रहे थे। ये दोनों योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा पोषित हैं। मुख्यमंत्री के ओएसडी जेसी खुल्बे उस वक्त कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी चकराता के पद पर तैनात थे। तत्कालीन सहायक कृषि अधिकारी ओमवीर सिंह, कृषि निदेशक गौरी शंकर और मुख्य कृषि अधिकारी विजय देवराड़ी उनके साथ मिले हुए थे।लेकिन गबन के इस आरोप की जांच का क्या हुआ। कोई नहीं जानता? और न कोई बताने को तैयार है। आश्चर्य की बात तो यह है कि विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले कुछ दिनों से लगातार विवादों में हैं। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत हुए खुलासे के बाद रावत एक बार फिर चर्चा में हैं।
हल्द्वानी निवासी आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया द्वारा पूछे गए सवालों के बाद यह जानकारी सामने आई थी । गोनिया ने आरटीआई के तहत प्रदेश सरकार से मुख्यमंत्री के कितने ओएसडी और उनके पीआरओ की खर्चे की सूचना मांगी थी।
जवाब में पता चला कि प्रदेश भर में मुख्यमंत्री के ओएसडी और पीआरओ की 10 लोगों की टीम बनी हुई है। जिनकी मासिक तनख्वाह 60 हजार से लेकर अधिकतम डेढ़ लाख रुपये तक है। यानी सालाना यह तनख्वाह टैक्स सहित 1 करोड़ से अधिक पहुंच जाती है।
आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया ने कहा कि जहां एक ओर पहाड़ से पलायन जारी है और राज्य कर्ज के बोझ तले दबा है। वहीं मुख्यमंत्री 10 लोगों को लाखों रुपए सैलरी के रूप में बांट रहे हैं।
हेमंत गोनिया ने कहा कि पूर्व में भी जो सरकारें रही हैं उनके मुख्यमंत्रियों ने भी इतने ओएसडी और पीआरओ नहीं रखे। जबकि रावत अपने लोगों को खपाने के लिए ओएसडी और पीआरओ के पद पर तैनात कर रहे हैं। हेमंत गोनिया ने इस तरह की फिजूलखर्ची पर रोक लगाने की मांग की है।