काशीपुर ।रोडवेज की कार्यशाला परिसर में तीन बसों के जलने का मामला रहस्यमय होता जा रहा है। जिन परिस्थितियों में बसें जली हुई हैं वह किसी साजिश की ओर इशारा कर रहीं हैं। प्रथम दृष्टि में शार्ट सर्किट माना जा रहा है लेकिन वहाँ पर जली हुई दो बसों में बैटरी ही नहीं थी। सबसे बड़ी बात यह है कि जली हुई बसों के पास ही टायरों का ढेर पड़ा हुआ था। जिनमें आग नहीं लगी यही नहीं जली हुई बसों के टायर भी सुरक्षित रहे। सिर्फ सीटें और खिड़कियां जली। बसों में डीजल था लेकिन बस के डीजल टैंक तक आग नहीं पहुंची। बड़े ही योजनाबद्ध ढंग से बसें जली। क्या ये सिर्फ इत्तफाक था? यह सवाल भी है।
बसें तीन घंटों तक जलती रही या सुलगती रही। आग लगने का मतलब लपटें उठती और तब तुरंत पता चल जाता कि आग लगी। सुलगती बसों का यह मामला अपने आप में रहस्यमयी कहानी की ओर इशारा कर रहा है।
क्या स्थानीय डिपो को बदनाम करने के लिए इस साजिश को अंजाम दिया गया? यदि हां, तो किसने? परिवहन विभाग को कई लाख रुपये की चपत लगाकर कौन अपने मंसूबे पूरा करना चाहता है।
उधर मंडलीय प्रबंधक मुकुल पंत ने शब्द दूत से कहा कि इस मामले में प्रथम दृष्टि से चौकीदार की लापरवाही सामने आ रही है। उन्होंने कहा कि चौकीदार सुरक्षा के लिए रखा जाता है। मंडलीय प्रबंधक की बातों से स्पष्ट होता है कि बसों के जलने की पहली गाज चौकीदार पर गिर सकती है। मंडलीय प्रबंधक ने कहा कि इस मामले में बिंदुवार गहन जांच की जायेगी। हालांकि बसों के जलने के पीछे किसी साजिश के संबंध में उन्होंने कहा कि अभी बिना जांच पूरी हुये कुछ नहीं कहा जा सकता है।
बहरहाल ये मामला परिवहन विभाग में चर्चा का विषय बना हुआ है। और पूरे विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों में हड़कंप मचा हुआ है।