बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों के पहले गुरु एक थे आचार्य प्रद्युम्न। जो खानपुर, हरियाणा में गुरुकुल चलाते थे। आचार्य अब वृद्ध हो गये हैं और रामदेव, बालकृष्ण के साथ उनके हरिद्वार स्थित आश्रम में ही रहते हैं।
बालकृष्ण के पिता जय वल्लभ उत्तराखंड के एक आश्रम में सिक्योरिटी गार्ड थे। बाद में वह अपने देश नेपाल वापिस लौट गए। जय वल्लभ और सुमित्रा की छह संताने हुई। उनमें से एक हैं बालकृष्ण। बालकृष्ण की पैदाइश के कुछ बरस बाद जय वल्लभ गांव लौट गए और खेती करने लगे। उसके कुछ बरस बाद 12 वर्ष की उम्र में बालकृष्ण पढ़ने के लिये हरियाणा आ गए। उन्हें शुरुआत से ही योग के आहार पक्ष और जड़ी बूटियों में खास दिलचस्पी थी।
बीच में कुछ बरस रामदेव और बालकृष्ण अलग रहे। रामदेव एक दूसरे गुरुकुल में पढ़ने चले गए। जबकि बालकृष्ण जड़ी बूटियों का अध्ययन करने गंगोत्री की तरफ निकल गए। कुछ बरस बाद रामदेव भी वहां पहुंच गये।
1993 में रामदेव और आचार्य बालकृष्ण वापिस हरिद्वार लौटे। रामदेव ने योग सिखाना शुरू किया, जबकि बालकृष्ण आयुर्वेदिक चूरण बनाने लगे।
पहली सफलता मिली दो साल बाद, मधुसूदन चूर्ण के जरिए। रामदेव और बालकृष्ण इसे बेचने असम गए। उन दिनों बोडोलैंड की मांग कर रहे चरमपंथी संगठन के असर वाले जिलों में कालाजार और मलेरिया फैला था। दोनों वहां काम में जुट गए। शुरू में बोडो लोगों को लगा कि ये दोनों केंद्र सरकार के एजेंट हैं। इसाई मिशनरी भी इन्हें अपना दुश्मन मानने लगीं। जब चूर्ण का असर दिखने लगा, तो बोडो चरमपंथियों का रुख बदल गया।
इधर, रामदेव छोटे स्तर पर देश भर में घूमकर योग शिविर करने लगे थे। उधर बालकृष्ण हरिद्वार के पास सही जगह और माकूल स्थितियों की तलाश में थे। साल 1997 में उनकी मुलाकात हुई पंडित देवी दत्त और उनके बेटे अखिलेश से। इन दोनों ने बालकृष्ण को एक भस्म दी। वे हरिद्वार के पास कनखल में उससे दवाइयां बनाने लगे। मगर, बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने गुरुनिवास आश्रम के छत्रपति स्वामी दास से उधार लिया। जल्द ही उनकी दवाइयां मशहूर होने लगीं।
5 जनवरी 1995 को रामदेव और बालकृष्ण ने दिव्य फार्मेसी नामक कंपनी रजिस्टर करवाई.। कनखल में चार कमरों में टिन शेड के तले पहला कारखाना बना। यहां दवाइयां बनतीं और चार वैद्यों वाला अस्पताल चलता.। अब ये चार कमरे चार मंजिल की बिल्डिंग में बदल चुके हैं। दवाइयों के बाद जो पहला प्रॉडक्ट यहां से लॉन्च हुआ, वह था च्यवनप्राश।
रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। इसके मुताबिक रामदेव, बालकृष्ण और आचार्य कर्मवीर मिले हरिद्वार के त्रिपुर योग आश्रम में। यहां तीनों दवाइयां तैयार करने में आश्रम प्रबंधन की मदद करते थे। फिर उनकी मुलाकात कृपाल बाग आश्रम के स्वामी शंकर देव से हुई। चारों ने मिलकर दिव्य योग मंदिर नामक ट्रस्ट स्थापित किया। नौ महीने बाद बालकृष्ण ने दो कारोबारियों को बाहर कर दिया। कहा गया कि गलत काम करते हैं। फिर 1997 में साध्वी कमला को निकाल दिया गया। फिर कर्मवीर को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। अब बचे तीन। उसमें भी शंकर देव ने लिख दिया कि ट्रस्ट के बंटवारे की स्थिति में ट्रस्ट की संपत्ति इसी नीयत के साथ बने दूसरे ट्रस्ट को सौंप दी जाए।
साल 2007 में रामदेव के तीसरे और आखिरी गुरु स्वामी शंकर देव रहस्मय परिस्थितियों में गायब हो गए। बकौल रामदेव उन्हें कई बीमारियां थीं और वे तकलीफ में थे। एक दिन आश्रम से सुबह की सैर के लिए निकले और फिर नहीं लौटे। फौरन एफआईआर दर्ज कराई गई लेकिन उनका आज तक पता नहीं चला।गुरु की गुमशुदगी के चलते रामदेव और बालकृष्ण पर कई इल्जाम लगे।
2006 में पतंजलि आर्युवेद की स्थापना की रामदेव और बालकृष्ण ने। इसके लिए गोविंद अग्रवाल ने 1 करोड़ दिए और पप्पुल पिल्ली ने 7 करोड़. शुरुआत में दवाई और डेरी प्रॉडक्ट बने। ब्रिटेन के रहने वाले सरवन और सुनीता पोद्दार ने 50 करोड़ दिए। बैंक ने भी 2007 में 10 करोड़ लोन दिया। उसके बाद बालकृष्ण 94 फीसदी के मालिक बने और बाकी छह फीसदी का मालिक पोद्दार परिवार। समूह ने अगले तीन सालों में 250 करोड़ का निवेश पाया। समूह की नई कंपनियों में रामदेव के भाई रामभरत का भी कुछ मालिकाना हक है।
फोर्ब्स के मुताबिक 25600 करोड़ रुपये के मालिक हैं बालकृष्ण। देश के 48वें सबसे अमीर आदमी।