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आखिर क्या है आईएनएक्स केस और इसमें कैसे फंसे चिदम्बरम

-वेद भदोला

नई दिल्ली। साल 2006 में आईएनएक्स कंपनी मीडिया के दिग्गज पीटर मुखर्जी और उनकी पत्नी इंद्राणी मुखर्जी लेकर आए थे। नोएडा के सेक्टर 3 में इसका दफ्तर था। कंपनी के लिए इन्हें FDI यानी विदेशी निवेश की ज़रूरत थी। क्योंकि मामला मीडिया का था तो इसके लिए उस वक्त के कानून के हिसाब से FIPB यानि फोरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड की इजाजत की ज़रूरत थी। इन्होंने FIPB से दो इजाज़त मांगी, एक तो विदेशी निवेश की दूसरा विदेश से आने वाले निवेश का 26 फीसदी हिस्सा डाउन स्ट्रीम इन्वेस्टमेट करने की। यानि जब FDI का कुछ पैसा अपनी ही किसी और कंपनी में डाला जाता है तो उसे डाउनस्ट्रीम इन्वेस्टमेंट कहा जाता है। ये 26 फीसदी पैसा आईएनएक्स अपनी सिस्टर कंपनी आईएनएक्स न्यूज़ में डालना चाहती थी।

उस समय की तत्कालीन यूपीए सरकार ने इन्हें बतौर एफडीआई सिर्फ 4.62 करोड़ रुपये लेने की मंजूरी दी, और डाउनस्ट्रीम इन्वेस्टमेंट की इजाजत देने से इंकार कर दिया। अब तक सब ठीक था। लेकिन, असली घपला इसके बाद हुआ। परमिशसन सिर्फ 4 करोड़ 62 लाख एफडीआई लेने की थी, लेकिन पीटर और इंद्राणी ने लिए पूरे 305 करोड़। इतना ही नहीं इन 305 करोड़ में से 26 परसेंट आईएनएक्स न्यूज़ में भी डाल दिए।

इसकी खबर जब इनकम टैक्स विभाग को लगी तो उन्होंने जांच शुरू कर दी। जब FIPB को इस घपले का पता चला तो उसने भी भौंहें तरेरीं। जब पीटर और इंद्राणी को लगा कि फंस जाएंगे तो अब उन्होनें बचने का जुगत लगाई। इसके लिए ज़रूरत थी किसी प्रोफेशनल दलाल (लाइज़नर) की। तो वो मिले कार्ती चिदंबरम के तौर पर। कार्ती के पिता पी चिदम्बरम वित्त मंत्री थे। लिहाजा, काम आसानी से हो जाना था। तो पीटर और इंद्राणी ने कार्ती की कंपनी चेस मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को कंसलटेंट रख लिया। इस दौरान रेवेन्यू डिपार्टमेंट पीटर और इंद्राणी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा था। लेकिन वित्त मंत्रालय ने इजाज़त नहीं दी।

वित्त मंत्रालय ने पीटर और इंद्राणी को सलाह दी कि फिर से एफडीआई और डाउन स्ट्रीम इन्वेस्टमेंट की परमीशन वित्त मंत्रालय से मांगें। कार्ती के प्रताप से पीटर और इंद्राणी ने परमिशन मांगी और वो मिल भी गई। लेकिन पैसा तो इससे पहले ही आ चुका था। यानि जुर्म तो पहले ही हो चुका था। इसके बदले कार्ती को क्या मिला साढ़े तीन करोड़। इल्ज़ाम भी यही है कि पीटर की कंपनी ने कार्ती को बतौर मेहनताना साढ़े तीन करोड़ रुपये दिए, और इसी इल्ज़ाम में कार्ति को एक महीना जेल भी काटनी पड़ी थी 2018 में।

लेकिन कार्ती ने ये 3.5 करोड़ सीधे नहीं लिए। वो जानते थे कि अगर पैसा सीधा उनकी कंपनी में आया तो वे फंस जायेंगे। लिहाजा, एक बेनामी कंपनी एडवांडेट स्ट्रैटेजी को पैसा दिया गया। जब इसकी जांच शुरू हुई तो कार्ती की 54 करोड़ की संपत्ति का खुलासा हुआ। जिसका हिसाब उनके पास नहीं है। इंद्राणी से पूछताछ हुई तो उसने भी बताया कि उसने कार्ती और चिदंबरम को पैसे देकर अपना काम करवा लिया। इंद्राणी सरकारी गवाह बनी तो चिदंबरम फंस गए।

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