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श्रीकृष्ण की रक्षक देवी का जन्म दिन भी है

 

मथुरा में उस कन्या का मंदिर कंकाली देवी के नाम से है

भारत में पुरुष प्रधान मनोवृत्ति कभी नहीं बदल पायेगी। और इस बात के प्रमाण हैं। पूरे देश में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की धूम मची हुई है। पर आज ही के दिन श्री कृष्ण के जन्म के साथ ही एक और बालिका का जन्म हुआ था। जिसका जन्म दिन कोई नहीं मनाता। यह तो सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण को मारने के लिए कंस तैयार था। यशोदा के गर्भ से उत्पन्न इसी कन्या को देवकी के पास छोड़ दिया गया था। जिसे कि देवकी की संतान बता कर कंस को इसलिए सौंप दिया गया ताकि कंस इस कन्या की हत्या कर दे। और हुआ भी यही कंस ने उस कन्या को पकड़ कर शिला पर पटक कर मारने का प्रयास किया लेकिन वह कन्या उसके हाथ से छूट कर आसमान में चली गयी। कोई नहीं मनाता उस कन्या का जन्म दिन। श्री कृष्ण की रक्षा करने वाली उस कन्या के नाम पर   मथुरा मे कंकाली टीला पर कंकाली देवी का मन्दिर स्थापित है।मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान के पश्चात द्वितीय महत्वपूर्ण प्राचीन स्थल यही है, जहां देव निर्मित स्तूप एवं नर वाहना कुबेरा देवी मन्दिर जैसे प्राचीन देव स्थानों के अतिरिक्त जैन , बौद्ध धर्म के मन्दिर, मठ और देवालय थे।

हूणों के आक्रमण काल में इस महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल की बड़ी क्षति हुई है। इस समय यहाँ स्थापित देवी प्रतिमा को मथुरा की प्रसिद्ध चार देवियों में से एक माना गया है।

कंकाली टीला को जैनी टीला भी कहा जाता है। मथुरा में यह भूतेश्वर योगमाया परिक्रमा मार्ग, भूतेश्वर और बी.एस.ए. कालेज के बीच में स्थिति है। वर्तमान में यहाँ कंकाली देवी एवं हनुमान मन्दिर है। यहाँ एक अष्टकोणीय चबुतरायुक्त कुआ है जो भगवान कृष्ण के समय का बताया जाता है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तमाल किया गया है।

काली के विकराल रूप जिसे कंकाली कहा जाता है, के नाम पर यह टीला है। लोककथा के अनुसार कंकाली देवी कंस द्वारा पूजी जाती थीं। पुरातत्त्व उत्खनन के अनुसार यहाँ एक प्राचीन जैन स्तूप स्थित होने के प्रमाण मिले। यहाँ मिली सभी वस्तुऐं जैनकालीन है। इसके सबसे पुराने अवशेष ई.पू. प्रथम शताब्दी के माने जाते है और सबसे नये 1177 ई. के माने जाते हैं। लखनऊ संग्रहालय में स्थित एक अभिलेख के अनुसार यहाँ के बौद्धस्तूप में प्रतिमा की स्थापना का विवरण 157 ई. का है। नये उत्खनन के अनुसार जो कि सड़क के किनारे वाले टीले का हुआ है जो बौद्ध विहार होने का संकेत देता है। साथ ही ईंटों के बने एक चौकोर कुण्ड भी है जिसकी सम्भावना कृष्ण कालीन होने की हैं।

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